City Of Dreams 2 Review: कलाकारों का उम्दा अभिनय सीरीज को रोमांचक बनाता है

पॉलिटिकल ड्रामा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का पसंदीदा विषय रहा है. क्वीन,पाताललोक,मिर्जापुर 2,तांडव,महारानी जैसे कई उदाहरण रहे हैं. शायद यही वजह है कि डिज्नी प्लस हॉटस्टार महाराष्ट्र की राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी वेब सीरीज सिटी ऑफ ड्रीम्स का सेकेंड सीजन दर्शकों के मनोरजंन के लिए ले आया है.

By कोरी | August 1, 2021 7:34 AM
an image

वेब सीरीज- सिटी ऑफ ड्रीम्स 2

निर्देशक- नागेश कुकूनूर

कलाकार- अतुल कुलकर्णी, प्रिया बापट, एजाज़ खान,सुशांत सिंह,फ़्लोरा सैनी,सचिन पिलगांवकर,श्रीयम भगनानी और अन्य

प्लेटफार्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार

रेटिंग तीन

पॉलिटिकल ड्रामा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का पसंदीदा विषय रहा है. क्वीन,पाताललोक,मिर्जापुर 2,तांडव,महारानी जैसे कई उदाहरण रहे हैं. शायद यही वजह है कि डिज्नी प्लस हॉटस्टार महाराष्ट्र की राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी वेब सीरीज सिटी ऑफ ड्रीम्स का सेकेंड सीजन दर्शकों के मनोरजंन के लिए ले आया है.

वेब सीरीज का पहला सीजन जहां खत्म हुआ था दूसरा सीजन वहीं से शुरू होता है. पहले सीजन में सत्ता की लड़ाई भाई (सिद्धार्थ चंदेकर) और बहन पूर्णिमा ( प्रिया बापट) के बीच थी इस बार मुकाबला पिता ( अतुल कुलकर्णी) और पुत्री पूर्णिमा के बीच है. साहेब की वापसी हो गयी. बेटी पूर्णिमा से अपने बेटे की मौत का बदला लेने के साथ साथ साहेब सत्ता भी पाना चाहते हैं तो वही पूर्णिमा बदले नहीं बल्कि बदलाव की राजनीति करना चाहती है. ये कहानी की अहम धुरी है लेकिन इसके साथ साथ कई सब प्लॉट्स भी साथ साथ चलते हैं. अलग अलग किरदारों के अतीत जो उनके वर्तमान को प्रभावित कर रहा है।एनकाउंटर स्पेशलिस्ट वसीम खान पुलिस की नौकरी छोड़ पूर्णिमा के साथ राजनीति की शुरुआत कर रहा है.

मुस्लिमों के खिलाफ नफरत की राजनीति है।हिन्दू मुस्लिम दंगे भी हैं कहानी में. ब्रिज का टूटना और मुम्बई मेट्रो को भी शामिल किया गया है. तान्या वाला ट्रैक दिलचस्प है।वो उस युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जो सोशल मीडिया पर भाषणबाजी और हैशटैग के शोर शराबे में नहीं बल्कि काम कर बदलाव लाने में यकीन करते हैं. एक ट्रैक मीडिया के कामकाज और मीडिया से जुड़े एक शख्स पर भी तंज कसता नज़र आता है.

10 एपिसोड वाली इस सीरीज की कहानी अपने पांचवें एपिसोड से रफ्तार पकड़ती है लेकिन आखिर के तीन एपिसोड पूरी तरह से रोमांच से भरे हैं खासकर सीरीज का क्लाइमेक्स काफी शॉकिंग है. सीरीज में कई सारे ट्विस्ट है मगर नएपन की कमी है लेकिन इसके बावजूद जिस तरह से पर्दे पर इसे उकेरा गया है. वो एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है. कलाकारों का उम्दा अभिनय इस खामी को कम कर देता है.

Also Read: Raj Kundra Case LIVE Update: शिल्पा शेट्टी के समर्थन में उतरी ऋचा चड्ढा, एप से मिले 51 अश्लील फिल्में

अभिनय की बात करें तो साहेब के किरदार में अतुल कुलकर्णी ने जान डाल दी है. एक राजनेता की मक्कारी ,मौकापरस्ती,पावर के लिए किसी भी हद तक गिर जाने को उन्होंने अपने किरदार के ज़रिए बखूबी जिया है. प्रिया बापट ने भी बढ़िया अभिनय किया है. उनका किरदार ही नहीं बल्कि उनका अभिनय भी साहेब को बखूबी टक्कर देता नज़र आता है. ये कहना गलत ना है. एजाज़ ने एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से राजनेता बनने के सफर के दौरान अपने किरदार के आंतरिक संघर्ष को बखूबी जिया है.

अन्ना के किरदार में सुशांत सिंह अपनी खामोशी से एक अलग ही रंग भरते हैं हालांकि उनके हिस्से कम दृश्य आए हैं. सचिन पिलगांवकर, संदीप कुलकर्णी,श्रीयम भगनानी का अभिनय ना सिर्फ प्रभावित करता है बल्कि कहानी को मजबूती भी देता है. फ़िल्म का कैमरावर्क बढ़िया है. संवाद असरदार हैं. जो किरदारों और दृश्यों को गहरे बनाते हैं. एक राजनेता अगर मनोचिकित्सक के पास गया तो उसका राजनीति करियर खत्म वहीं किसी बाबा के पास जाता है तो उसे महान कहा जाता है.

इस सीरीज का इस ढंग से अंत हुआ है उससे तय है कि अगला सीजन भी आएगा. कुल मिलाकर यह राजनीति ड्रामा एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है.

Exit mobile version