Crakk Movie Review: स्क्विड गेम का सस्ता वर्जन बनकर रह गयी है विद्युत और अर्जुन की फिल्म क्रैक

Crakk Movie Review: मुंबई के सिद्धार्थ दीक्षित यानि सिद्धू (विद्युत जामवाल) की है,जिसे जान को जोखिम में डालकर स्टंट करना बहुत पसंद है और वह हर दिन खतरों से खेलता रहता है.

By Urmila Kori | March 6, 2024 7:20 PM
an image

फिल्म-क्रैक जीतेगा तो जिएगा
निर्देशक- आदित्य दत्त
निर्माता- विद्युत जामवाल
कलाकार- विद्युत जामवाल,अर्जुन रामपाल ,एमी जैक्सन,नोरा फतेही,विजय आनंद और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग- डेढ़

Crakk Movie Review:

हिन्दी सिनेमा के लोकप्रिय एक्टर स्टार विद्युत जामवाल अभिनेता के साथ -साथ निर्माता भी बन गये हैं. उनकी प्रोडक्शन की अगली फ़िल्म क्रैक को पहली स्पोर्ट्स ड्रामा फ़िल्म कहकर प्रचारित किया जा रहा है. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि फिल्म का एक्शन कई सीक्वेंस में हिन्दी सिनेमा को एक पायदान ऊपर भी ले जाता है, लेकिन फिल्म कहानी और स्क्रीनप्ले के मामले में औंधे मुंह गिर गयी है और फिल्म को पूरी तरह से बोझिल अनुभव बना गयी है.

अंडरग्राउंड बैटल की इस कहानी में है फैमिली ड्रामा भी

मुंबई के सिद्धार्थ दीक्षित यानि सिद्धू (विद्युत जामवाल) की है,जिसे जान को जोखिम में डालकर स्टंट करना बहुत पसंद है और वह हर दिन खतरों से खेलता रहता है. उसका सपना यूरोप के सबसे बड़े अंडरग्राउंड स्टंट गेम प्रतिस्पर्धा मैदान जाने का है ,और बड़ी इनामी राशि जीतकर अपने सभी सपनों को पूरा करने का है. मैदान प्रतिस्पर्धा का मास्टर माइंड देव (अर्जुन रामपाल) है. सिद्धू आखिरकार अपने सपनों की जगह पर पहुंचता है, तो उसे अपने भाई निहाल की मौत के बारे में चौंकाने वाला सच पता चलता है।वह भी स्टंट का सबसे बड़ा चैंपियन बनने के लिए मैदान गया था. क्या देव उसकी मौत का ज़िम्मेदार है. इसी के इर्द गिर्द आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

नेटफ़्लिक्स पर काफी सराही गई वेब सीरीज स्क्विड गेम्स की तरह फिल्म का प्लॉट शुरुआत में नजर आता है. उम्मीद की जा रही थी कि वैसा कुछ खास अलग देशी अन्दाज में देखने को मिलेगा लेकिन कहानी जैसे आगे बढ़ती है. फिल्म की लेखन टीम ने भाई की मौत,न्यूक्लियर बॉम,सट्टा बाजार, सारे मसालों को डालकर इसे बेस्वाद बना दिया. सिद्धू का किरदार को सही तरीक़े से स्थापित भी नहीं किया गया है. वह क्यों कनाडा पुलिस की अचानक से पहली मुलाक़ात में मदद करने लग जाता है. मैदान से बाहर जाना सभी के लिए मना था ऐसे में सिद्धू का किरदार नोरा फतेही के किरदार के साथ आसानी से कैसे बाहर चला जाता है.

Also Read: Junglee फिल्म की सीरीज बनाने की योजना बना रहे हैं विद्युत जामवाल

स्क्रीनप्ले है काफी कमजोर

स्क्रीनप्ले से लॉजिक पूरी तरह से नदारद है. इस अंडरग्राउंड बैटल ग्राउंड में प्रतियोगियों की मौत हो रही है और लाइव सभी इसे पूरे जोश और उत्साह से देख रहे हैं. सिद्धू की मां भी अपने बेटे को इस मौत के खेल में चीयर करती दिखती है. मुंबई पुलिस भी काम छोड़कर ये बैटल मोबाइल पर देख रही है. जो अजीब सा लगता है. बैटल ग्राउंड में भी सभी प्रतियोगियों का भाईचारा वाला दृश्य भी अखरता है. फिल्म के स्क्रीनप्ले को और ज़्यादा कमज़ोर इसके संवाद बना गए हैं. कई संवाद ऐसे हैं ,जो सिर पीटने को मजबूर कर जाते हैं. गीत – संगीत भी फ़िल्म का निराश ही करता है. फ़िल्म का एकमात्र अच्छा पहलू इसका एक्शन है. साइकिल में स्टंट हो या बिल्डिंग्स से छलांग लगाने वाला स्टंट्स यह फ़िल्म एक्शन में एक लेवल ऊपर जाती है.

कमजोर कहानी और स्क्रीनप्ले ने बनाया कलाकारों के अभिनय को भी कमजोर

अभिनय की बात करें तो विद्युत जामवाल हमेशा की तरह एक्शन में पूरे नंबर के जाते हैं. इमोशनल सीन में वह इस बार चूक गये हैं. अर्जुन रामपाल ने अपने किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की है. नोरा फतेही इस फिल्म में बतौर अभिनेत्री नजर आयी हैं ,लेकिन वह निराश करती हैं. विजय आनंद के लिए फिल्म में करने को कुछ ख़ास नहीं था.

Exit mobile version