फिल्म- डिस्पैच
निर्माता -आरएसवीपी मूवी
निर्देशक-कनु बहल
कलाकार- मनोज बाजपेयी,शहाना गोस्वामी,अर्चिता अग्रवाल ,री सेन और अन्य
प्लेटफार्म- जी 5
रेटिंग-ढाई
despatch movie review :हिंदी सिनेमा में समय -समय पर भारतीय मीडिया और पत्रकारिता पर फिल्में आती रही हैं. आज जी 5 पर रिलीज हुई डिस्पैच खोजी पत्रकारिता की दुनिया से जुड़ी जटिलताओं को सामने लेकर आती है. निर्देशक तितली फेम कनु बहल हैं, तो मामला ब्लैक एंड वाइट तो नहीं ही होगा. सब कुछ ग्रे है. किरदार, दुनिया से लेकर उससे जुड़ा ट्रीटमेंट सबकुछ लेकिन इस इन्वेस्टीगेशन क्राइम ड्रामा में थ्रिलर की जबरदस्त कमी रह गयी है, जो इसकी सबसे बड़ी जरूरत थी.मनोज बाजपेयी अपने अभिनय से फिल्म को संभालने की कोशिश करते हैं,जिससे यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है.
खोजी पत्रकारिता की दुनिया की है कहानी
फिल्म की शुरुआत इस डिस्क्लेमर के साथ होती है.फिल्म की कहानी और किरदार सभी काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई वास्ता नहीं है. अगर किसी की कहानी मिलती है,तो यह संयोग मात्र है.संयोग की बात करें तो हंसल मेहता की करिश्मा तन्ना स्टारर वेब सीरीज स्कूप अगर याद हो तो उस सीरीज की कहानी जिगना वोहरा से प्रेरित थी. जिसे पत्रकार जे डे की ह्त्या की साजिश में शामिल होने के शक पर जेल भेज दिया गया था हालांकि बाद में जिगना केस से बरी हो जाती है. डिस्पैच उसी जे डे की कहानी लगती है, हालांकि यह फिल्म अलग ही नरेटिव सामने लाती है. क्राइम रिपोर्टर जे डे जिस अख़बार में काम करते थे. उससे डिस्पैच शब्द जुड़ा हुआ था. खैर इस संयोग से मिलती जुलती कहानी पर आये तो जॉय बाग (मनोज बाजपेयी )एक क्राइम जर्नलिस्ट है. फिल्म के शुरूआती सीन में एक कांस्टेबल पूछता है कि क्या हुआ साहब आप इतने गुस्से में क्यों हैं. इसके जवाब में सीनियर ऑफिसर कहता है कि जॉय को स्टोरी चाहिए. उसके बाद उसका मूड़ ठीक हो जाएगा.इस सीन से यह बात स्थापित हो जाती है कि जॉय अपने काम के प्रति कितना जुनूनी है.पेज 1 के लिए एक एनकाउंटर स्टोरी का पीछा करते हुए जे 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले और आईपीएल के स्कैम तक की स्टोरी तक पहुंच जाता है. जिसमें कई हजार करोड़ों का घोटाला है. कई बड़े कॉर्पोरेट हाउस से लेकर ब्यूरोक्रेट्स की मिलीभगत है.सिर्फ यही नहीं अंडरवर्ल्ड भी इनकी मदद का रहा है. क्या जॉय सच्चाई को सामने ला पायेगा. इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म की खूबियां और खामियां
यह एक क्राइम ड्रामा फिल्म है. फिल्म पत्रकारिता की दुनिया से जुड़ी जटिलताओं को सामने लेकर आती है. फिल्म यह भी बताती है कि अगर कॉरपोरेट हाउसेस समाचार पत्र चलाने लगते हैं, तो कभी इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी आम लोगों तक नहीं पहुंच पाएगी. फिल्म के क्लाइमेक्स वाले सीन में डिस्पैच के अधिग्रहण करने वाली कंपनी को सवेरा को बताया जाता है, जो असल में जेडीआर ही है. जिसके खिलाफ जे की स्टोरी है. वह सीक्वेंस इस बात को हाईलाइट करता है.कुल मिलाकर डिस्पैच कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार, मीडिया की मिलीभगत और एक पत्रकार के संघर्ष और दुर्दशा को भी दिखाता है,लेकिन प्रभावी ढंग से परदे पर कुछ नहीं आ पा पाया है.शुरुआत सधे हुए ढंग से होती है, लेकिन कहानी के स्क्रीनप्ले में उतार -चढ़ाव की कमी खलती है.मनोज बाजपेयी के चेहरे और संवाद में जितना टेंशन दिखता है.वह कहानी और स्क्रीनप्ले में नजर नहीं आ पाया है. स्क्रीनप्ले कई बार कंफ्यूज भी करता है. क्रिकेट टूर्नामेंट, मनी लॉन्ड्रिंग,शैल कंपनी, 2 जी स्पेक्ट्रम सबकुछ एक साथ शामिल कर लिया गया है. दूसरे पक्षों की बात करें तो फिल्म में जमकर गालियां और बोल्ड सीन्स भी हैं.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी उम्दा है, जो कहानी और किरदारों को बखूबी सामने लेकर आते हैं.
मनोज बाजपेयी के कन्धों पर टिकी है फिल्म
अभिनय की बात करें तो मनोज बाजपेयी ने एक बार फिर अपने किरदार में रच बस गए हैं. पूरी फिल्म को वह अपने कन्धों पर अकेले उठाये हुए हैं. यह कहना गलत ना होगा. आखिर के सीन्स में जब उन्हें मालूम पड़ता है कि उनके नाम की सुपारी निकली है. अपने चेहरे के एक्सप्रेशन से वह बहुत कुछ कह जाते हैं.शहाना गोस्वामी और अर्चिता अग्रवाल सहित बाकी के कलाकारों ने अपने अभिनय के साथ न्याय करते हुए मनोज बाजपेयी को पूरी तरह से सपोर्ट किया है.