वेब सीरीज : स्कैम 1992, द हर्षद मेहता स्टोरी
निर्देशक- हंसल मेहता
कलाकार : प्रतीक गांधी, श्रेया धनवंतरी, शारिब हाशमी, निखिल द्विवेदी, रजत कपूर और अन्य
ओटी टी प्लैटफॉर्म : सोनी लिव
रेटिंग : साढ़े तीन
अलीगढ़ ,ओमेर्ता,शाहिद जैसी सत्य घटनाओं और किरदारों पर फिल्में बना चुके निर्देशक हंसल मेहता इस बार दलाल स्ट्रीट का चीता, बेताज बादशाह, शेयर मार्केट का अमिताभ बच्चन कहे जाने वाले हर्षद मेहता की कहानी को लेकर आए हैं. जिसका नाम देश के सबसे बड़े घोटालों में से जुड़ा था. जिसकी चर्चा ने वर्ष 1992 में सबके होश उड़ा दिए थे. नौ एपिसोड की इस कहानी को रोचक प्रस्तुति और उम्दा कलाकारों के ज़रिए पेश किया गया है. जो इस वेब सीरीज को उम्दा बनाता है.
खास बात है कि शेयर मार्केट में आपकी दिलचस्पी या फिर कहे जानकारी ना भी हो तो भी ये सीरीज आपको निराश नहीं करती है. इस असल कहानी के फिल्मी रूपांतरण पर आएं तो कहानी शुरू होती है हर्षद मेहता( प्रतीक गांधी ) के परिवार से, जिसके पिता का कपड़ा का व्यापार है लेकिन वह चौपट हो जाता है. घर की आर्थिक स्थिति संभालने के लिए हर्षद हर छोटे बड़े काम करने को तैयार है लेकिन उसके सपने बड़े है.
वह शेयर मार्केट की ओर रुख करता है और चीते की तरह छलांग लगाने लगता है. उसके पास इसका एक ही फार्मूला है कि कोई फार्मूला नहीं है. उसका उसूल भी एक, बस पैसा बनाना और रिस्क से उसे इश्क़. पैसे बनाने के चक्कर में कब वह बैंकों का इस्तेमाल करते करते सत्ता व्यव्स्था में बैठे लोगों द्वारा खुद इस्तेमाल होने लगता है. उसे भी पता नहीं चलता लेकिन वह अपने फायदे में खुश है. कांदिवली के चॉल से उसने मरीन ड्राइव में पेंट हाउस तक सफर उसने तय कर लिया. सबकुछ ऐसे ही चलता अगर पत्रकार सुचेता दलाल हर्षद की चालाकियों का भांडाफोड़ नहीं करती.
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इस सीरीज के पहले ही एपिसोड में इतना गहराव है कि आप कहानी और किरदार से जुड़ जाएंगे. कहानी से जुड़ा सस्पेंस धीरे धीरे कहानी पर हावी होता जाता है।जिससे आपके मन में ये सवाल आता है कि अब क्या होने वाला है. फिर चाहे हर्षद की जर्नी हो या फिर खोजी पत्रकार सुचेता द्वारा हर्षद की खबर को अखबार के पन्ने पर सही जगह दिलाने का संघर्ष. सब रोमांच को बढ़ाते हैं. यह इस सीरीज की सबसे बड़ी खासियत है. यह सीरीज शेयर मार्केट की जानकारी ना होने वाले दर्शकों को भी मार्केट से जुड़ी बातें मनी कंट्रोल और दूसरे अहम पहलू डिटेलिंग के साथ समझाते हैं.
सीरीज खत्म खत्म होते होते उस दौर की राजनीति और देश के प्रधानमंत्री पर भी सवालिया निशान छोड़ जाती है. हंसल मेहता और उनकी टीम बधाई की पात्र है. जो उन्होंने इतनी बेबाकी से कहानी को गढ़ा है. सीरीज की खामियों की बात करें तो एपिसोड्स की अवधि थोड़ी कम की जा सकती थी. अश्विन और हर्षद के फैमिली को कहानी में तवज्जो ना के बराबर मिली है. आरबीआई और सीबीआई से जुड़े पात्रों पर भी थोड़ा डिटेल वर्क किया जा सकता था लेकिन ये सब खामियां नज़रअंदाज़ की जा सकती हैं.
अभिनय पर आए तो यह इस सीरीज की सबसे बड़ी यूएसपी है. हर किरदार का अभिनय जेहन में बस जाने वाला है. प्रतीक गांधी ने हर्षद के किरदार को कमाल का निभाया है. उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी, गेटअप, सब उम्दा है. श्रेया ने खोजी पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार उम्दा ढंग से जिया है . उस दौर का पारदर्शी जर्नलिज्म ये किरदार बखूबी सामने लाता है. शारिब ने छोटी उपस्थिति में भी कमाल किया है. बाकी के कलाकारों में ललित, अनंत, रजत, निखिल द्विवेदी का अभिनय भी याद रह जाता है.
सीरीज के दूसरे पहलुओं पर आए तो वेब सीरीज के संवाद दमदार हैं. हां गाली भी है. सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है. चाय स्पॉट से लेकर स्टॉक मार्केट के पूरे माहौल को बखूबी उतारा है. 80 और 90 के दशक की छाप कहानी और किरदार दोनों पर नज़र आती है.
Posted By: Divya Keshri