I Want To Talk Movie Review :विश्वास की इस कहानी में कमाल कर गए हैं अभिषेक बच्चन

रियल लाइफ पर आधारित अभिषेक बच्चन स्टारर इस फिल्म की टिकट बुक करने से पहले, पढ़ लें इस रिव्यु को

By Urmila Kori | November 22, 2024 9:42 AM
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फिल्म : आई वांट टू टॉक
निर्माता : रॉनी लाहिरी और शील कुमार
निर्देशक :शूजित सरकार
कलाकार : अभिषेक बच्चन,अहिल्या बमरू, क्रिस्टीन,जयंत और अन्य
प्लेटफार्म :सिनेमाघर
रेटिंग :तीन

i want to talk movie review:लार्जर देन लाइफ फिल्मों की थिएटर में भीड़ के बीच निर्देशक शूजित सरकार की आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई फिल्म आई वांट टू टॉक एक सुकून का एहसास करवाती है. यह एक सर्वाइवल स्टोरी है, जो दुख नहीं भरोसा देती है.शूजीत सरकार ने जिस तरह से इस कहानी को ट्रीटमेंट दिया है और उस पर अभिषेक बच्चन का अभिनय इस फिल्म को और खास बना गया है,जिस वजह से यह फिल्म एक बार तो देखी जानी चाहिए.

रियल लाइफ वाली है यह कहानी

आई वांट टू टॉक अमेरिका में बसे अर्जुन सेन की कहानी है, जो शूजित सरकार के दोस्त भी है. यह फिल्म उन्ही के असल जिंदगी की कहानी है. फिल्म के स्क्रीनप्ले की बात की जाए पहले ही सीन में यह बात स्थापित कर दी जाती है कि अर्जुन सेन (अभिषेक बच्चन ) एक मार्केटिंग जीनियस है. अगले ही सीन में निजी जिंदगी के बारे में भी बता दिया जाता है कि उसका अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है, वे अपनी इकलौती बेटी रेया के को पेरेंट्स हैं. बेटी हफ्ते के तीन दिन पिता के साथ और बाकी के चार दिन अपनी मां के साथ रहती है. यह सब चल ही रहा होता है कि एक दिन ऑफिस मीटिंग में अर्जुन की तबीयत ख़राब हो जाती है और उसे मालूम पड़ता है कि उसे लैरिंजियल कैंसर है. उसके पास अब बस 100 दिन है. जानलेवा बीमारी के अलावा इस बीच उसे यह भी पता चलता है कि उसकी बेटी और उसके रिश्ते में बहुत दूरियां हैं. इसके बाद अर्जुन ना सिर्फ अपनी मौत से लड़ता है बल्कि अपनी बेटी और अपने बीच की दूरियों को भी कम करने का फैसला लेता है. क्या उसको उसकी बीमारी उसे इतना समय देगी. किस तरह से से वह अपनी बीमारी से लड़ते हुए अपने बेटी के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करता है. यही आगे की कहानी है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

जिंदगी की क्षणभंगुरता और रिश्तों की जटिलता की कहानी वाली यह फिल्म उम्मीद की भी कहानी है. फिल्म मौत से जूझ रहे एक आदमी की कहानी है. जिसके शरीर में अब तक 20 से अधिक सर्जरी हुई है. उसके शरीर में कई अंग नहीं है,लेकिन फिल्म में रोना धोना या निराश करने जैसा कुछ नहीं है. यह फिल्म आपको उम्मीद देती है कि हर चुनौती को इंसान अपने हौंसले से पार कर सकता है फिर चाहे जानलेवा बीमारी ही क्यों ना हो. इस कहानी को स्लाइस ऑफ़ लाइफ के ट्रीटमेंट के जरिये कहा गया है. जिसमें शुरुआत में एक मरीज को अपनी जानलेवा बीमारी का पता चलने के बाद उसे इस कदर टूटते हुए दिखाया है कि वह आत्महत्या तक करने की सोच लेता है,लेकिन फिर वह किस तरह से खुद को संभालते हुए अपने जिंदगी के रिश्तों को संभालता है. जो आंखों को हल्का नम भी करती है और कभी मुस्कान भी जोड़ जाती है. फिल्म के शीर्षक में ही टॉक है तो इसके संवाद भी खास होने ही चाहिए थे और यही हुआ भी है. यह गहराई से फिल्म के मूल मकसद को रखते हैं.गीत संगीत वाला पहलु कहानी के अनुरूप है.फिल्म के प्रोस्थेटिक और मेकअप टीम की तारीफ भी बनती है क्योंकि अभिषेक बच्चन के लुक में उसने अहम रोल अदा किया है.फिल्म देखते हुए आपको कुछ चीजें अधूरी सी भी लगती है. फिल्म के स्क्रीनप्ले में अर्जुन और उनकी पत्नी के रिश्ते बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा गया है. नर्स नैन्सी जो सभी का इतना ख्याल रखती थी. आखिरकार उसने आत्महत्या क्यों की.जो हमारा इतना ख्याल रखते हैं उनको भी कई बार केयर की जरूरत होती है. फिल्म में इस बात को थोड़ा और प्रभावी ढंग से कहने की जरूरत थी.इसके अलावा फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो भी रह गया है. कई दृश्यों में दोहराव है. फिल्म कई मौकों पर पीकू और अक्टूबर की भी याद दिलाता है.

कमाल कर गए हैं अभिषेक बच्चन

यह फिल्म अभिषेक बच्चन की है. फिल्म की शुरुआत से आखिरी फ्रेम तक फिल्म में वहीं है और उन्होंने अपने जबरदस्त परफॉरमेंस से शुरू से आखिर तक बांधे रखते हैं. अपने किरदार के लिए जिस तरह से उन्होंने अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट किया है. वह भी अभिनय के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है. फिल्म में अर्जुन सेन की बेटी की भूमिका में बाल कलाकार हो या युवा कलाकार अहिल्या दोनों ही दिल जीत ले जाते हैं. अहिल्या का मोनोलोग वाला दृश्य उनके परिपक्व अभिनय को दर्शाता है.यह कहना गलत ना होगा. जयंत कृपलानी की भी तारीफ बनती है. अभिषेक और उनके बीच के सीन अच्छे बन पड़े हैं. एक अरसे बाद जॉनी लीवर को परदे पर देखना अच्छा है. बाकी के कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.

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