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Janhit Mein Jaari Movie Review: नुसरत भरुचा की फिल्म जनहित में जारी एंटरटेनमेंट और मैसेज दोनों देती है

Janhit Mein Jaari Movie Review: नुसरत भरुचा की फिल्म जनहित में जारी सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. फिल्म का विषय जितना गंभीर है, इसका ट्रीटमेंट उतना ही हंसने और हंसाने वाला किया गया है.

फ़िल्म- जनहित में जारी

निर्माता-विनोद भानुशाली और राज शांडिल्य

निर्देशक-जय बसन्तु सिंह

कलाकार- नुसरत भरुचा,अनुद सिंह ढाका, विजय राज,टीनू आनंद, परितोष त्रिपाठी,बिजेंद्र कालरा और अन्य

प्लेटफार्म-सिनेमाघर

रेटिंग-तीन

Janhit Mein Jaari Movie Review: पेंडेमिक से पहले दर्शकों का सिर्फ मनोरंजन करने वाली ही नहीं बल्कि एक प्रभावशाली मैसेज देने में सक्षम फिल्मों का चलन टिकट खिड़की पर जोरों पर था. पेंडेमिक के बाद बॉक्स आफिस पर रिलीज फिल्मों में एंटरटेनमेंट ही हावी नज़र आया है लेकिन इस शुक्रवार रिलीज हुई फ़िल्म जनहित में जारी एंटरटेनमेंट और मैसेज दोनों खुद में लिए है.

फ़िल्म की कहानी

फ़िल्म की कहानी चंदेरी की रहने वाली मनु (नुसरत भरुचा) की है. जिसे शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होना है मतलब आत्मनिर्भर बनना है. घरवाले उसे एक महीने की मोहलत देते हैं, अगर तब तक नौकरी नहीं मिली, तो फिर उसे शादी करनी पड़ेगी. नौकरी मिलना आसान नहीं है और हालात ऐसे बन जाते हैं कि उसे एक कंडोम बेचने वाली कम्पनी में सेल्स गर्ल के तौर पर काम करने लगती है. कहानी में ट्विस्ट तब आता है कि जब उसको अपनी शादी और इस जॉब में से किसी एक को चुनने की नौबत आ जाती है. वह अपने जॉब को चुनती है क्यों?उसकी शादी का क्या होगा. क्या मनु,रूढ़िवादी समाज और अपने ससुराल के लोगों की सोच को बदल पाएगी.

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फिल्म का ट्रीटमेंट

ये सब सवालों के जवाब जानने के लिए आपको यह फ़िल्म देखनी होगी. यह फ़िल्म सुरक्षित सेक्स के अहम और गंभीर मुद्दे को सामने लेकर आती है. यह फ़िल्म आंकड़े रखती है कि भारत में हर साल कई लड़कियां गर्भपात की वजह से अपनी जान गंवा देती है. फ़िल्म का विषय जितना गंभीर है, इसका ट्रीटमेंट उतना ही हंसने और हंसाने वाला किया गया है. फ़िल्म सुरक्षित सेक्स की बात करती है. फ़िल्म इस बात पर भी ज़ोर देती है कि जिस तरह से पैड खरीदना लड़कियों की ज़रूरत है, उसी तरह कंडोम खरीदना भी , लेकिन बिना अश्लील हुए. यही बात इस फ़िल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले को खास बनाती है. खामियों की बात करें तो फ़िल्म सेकेंड हाफ में थोड़ी स्लो हो गयी है. फ़िल्म की एडिटिंग पर थोड़ा काम कर इसे क्रिस्पी बनाया जा सकता था. इसके साथ ही अनुद सिंह ढाका का किरदार हो या विजय राज के किरदार का हृदय परिवर्तन ,जिस तरह के संवादों और दृश्यों की वजहों से उनमें बदलाव आते हैं ,वह फ़िल्म में उतने प्रभावी नहीं बन पाए हैं,जितनी की कहानी की ज़रूरत थी.

कैसी है एक्टिंग

अभिनय के पहलू पर आएं, तो इस फ़िल्म की यह एक अहम यूएसपी है. अभिनेत्री नुसरत भरुचा के कंधों पर यह फ़िल्म थी और उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है. अनुद सिंह ढाका की बतौर लीड पहली फ़िल्म है ,लेकिन वे फ़िल्म में पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने किरदार को जीते नज़र आते हैं. विजय राज, टीनू आनंद,विजेंद्र कालरा,इस्तियाक खान जैसे अभिनय के विश्वसनीय नामों ने अपनी मौजूदगी से फ़िल्म को और खास बनाया है. अभिनेता परितोष त्रिपाठी का काम उल्लेखनीय हैं, जब भी वे स्कीन पर दिखें हैं,उन्होंने जमकर हंसाया है. बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.

दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म के संवाद सुनने लायक हैं. ये किरदारों के साथ साथ पूरी फ़िल्म को और मनोरंजक बना गया है।फ़िल्म का गीत संगीत और सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है.

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