Kuch Khattaa Ho Jaay Review: खट्टा नहीं बल्कि कड़वा अनुभव है सिंगर से एक्टर बने गुरु रंधावा की यह फिल्म
Kuch Khattaa Ho Jaay Review: फिल्म की कहानी हीर चावला (गुरु रंधावा) की है, जिनकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य इरा (साईं मांजरेकर) से प्यार करना है और इरा के जिंदगी का उद्देश्य अपने मरे हुए पिता के सपने को पूरा करने के लिए आईएएस बनना है.
फिल्म- कुछ खट्टा हो जाए
निर्माता-अमित भाटिया और लवीना भाटिया
निर्देशक-जी अशोक
कलाकार- गुरु रंधावा, साईं मांजरेकर, अनुपम खेर, परितोष त्रिपाठी, इला अरुण, परेश, अतुल श्रीवास्तव और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग- डेढ़
Kuch Khattaa Ho Jaay: सिंगर से एक्टर बनने का हिंदी सिनेमा में इतिहास रहा है. इस शुक्रवार फिल्म कुछ खट्टा हो जाए से पंजाबी के स्टार सिंगर गुरु रंधावा ने हिन्दी सिनेमा में अपने अभिनय की शुरुआत की है, लेकिन इस फिल्म में वह अपने अभिनय से सिंगर एक्टर की उस खास फेहरिस्त में शामिल नहीं हो पाए हैं, जिसमें किशोर कुमार से आयुष्मान खुराना का नाम शामिल है. उनके अभिनय के साथ साथ कमजोर स्क्रीनप्ले और लचर निर्देशन इस फिल्म को कड़वा अनुभव बना गया है.
कनफ़्यूजन वाली है कहानी
फिल्म की कहानी हीर चावला (गुरु रंधावा) की है, जिनकी जिंदगी का एकमात्र उद्देश्य इरा (साईं मांजरेकर) से प्यार करना है और इरा के जिंदगी का उद्देश्य अपने मरे हुए पिता के सपने को पूरा करने के लिए आईएएस बनना है. कहानी में ऐसा मोड़ आ जाता है कि हीर और इरा की शादी हो जाती है. हीर के दादा (अनुपम खेर) इस जोड़ी पर जल्द से जल्द मम्मी पापा बनने का दबाव डालने लगते हैं, लेकिन इरा को आईएएस बनना है. हीर, इरा की प्रेग्नेंसी का झूठा प्लान बनाता है. उसके बाद कहानी में क्या मोड़ आते हैं. यही आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां खामियां
फिल्म की कहानी में एक अच्छी कॉमेडी के साथ-साथ संदेश देने का भी माद्दा रखती थी, अगर फिल्म के स्क्रीनप्ले और संवाद पर मेहनत की गयी होती थी. हीर का किरदार अचानक से क्यों इरा से नाराज हो जाता है. यह बात कहानी में प्रभावी ढंग से सामने नहीं आ पाया है. इरा के पिता और उसके परिवार पर थोड़ा और फोकस करने जी जरूरत थी. साउथ की फिल्म भागमती और उसका हिंदी रिमेक दुर्गामती बना चुके जी अशोक इस बार पूरी तरह से चूक गये हैं. फिल्म के इमोशनल सींस में हंसी आती है, जिससे इस बात को समझा जा सकता है कि लेखन का स्तर कितना कमज़ोर रह गया है. फिल्म एडिटिंग में भी सतही रह गयी है. फिल्म का ट्रीटमेंट बीते दौर दस लगता है. फिल्म आख़िर में एडॉप्टेशन और परिवार की अहमियतकी सीख देती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है.फिल्म पूरी तरह से एक कड़वा अनुभव दे चुकी होती है. फिल्म का एकमात्र अच्छा पहलू इसका गीत-संगीत है.
अभिनय के सही सुर लगा नहीं पाए गुरु रंधावा
सिंगर गुरु रंधावा ने इस फिल्म से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की है. उनके अभिनय को देखकर यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि अभिनय में आने से पहले उन्हें खुद पर काम करने की जरूरत थी. सात से आठ मिनट के म्यूजिक वीडियो में एक्सप्रेशन देना अलग बात है और ढाई घंटे की फिल्म में ख़ुद को एक्सप्रेस करना अलग बात है. पूरी फिल्म में उनके एक्सप्रेशन एक जैसे ही है फिर चाहे सिचुएशन कोई भी हो. उनके संवाद अदाएगी भी कमजोर रह गयी है. साईं मांजरेकर फिल्म में प्यारी लगी हैं, लेकिन अभिनय में उन्हें खुद पर और काम करने की जरूरत है. फिल्म में अनुपम खेर जैसे मंझे हुए कलाकार भी हैं, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले उनके अभिनय को भी निखरने का मौका नहीं देता है. इला अरुण का किरदार लाउड ज़्यादा हो गया है. बाकी के कलाकारों ने अपना अभिनय ठीक ठाक किया है. साउथ के पॉपुलर कॉमेडियन एक्टर ब्रह्मानंद भी फिल्म का हिस्सा हैं, लेकिन फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले उनके साथ भी न्याय नहीं कर पाया है.
रिपोर्ट- उर्मिला कोरी