Madam Chief Minister Review : रिचा और सह कलाकारों के शानदार परफॉर्मेंस से सजी है ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’

फ़िल्म- मैडम चीफ मिनिस्टर निर्देशक -सुभाष कपूर निर्माता -भूषण कुमार कलाकार -रिचा चड्ढा,मानव कौल, अक्षय ओबेरॉय, सुभाष शुक्ला, शुभराज्योति ,निखिल विजय और अन्य रेटिंग -ढाई

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 22, 2021 2:58 PM
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फ़िल्म- मैडम चीफ मिनिस्टर

निर्देशक -सुभाष कपूर

निर्माता -भूषण कुमार

कलाकार -रिचा चड्ढा,मानव कौल, अक्षय ओबेरॉय, सुभाष शुक्ला, शुभराज्योति ,निखिल विजय और अन्य

रेटिंग -ढाई

Madam Chief Minister Review: फिक्शन पर घमासान इनदिनों चर्चा में है. वेब सीरीज तांडव और पाताललोक के साथ साथ निर्देशक सुभाष कपूर की फ़िल्म मैडम चीफ मिनिस्टर भी विवाद में रही है. फ़िल्म की अभिनेत्री रिचा चड्ढा के अम्बेडकर के टीशर्ट पहनने पर बवाल हो गया था. कहा जा रहा था कि फ़िल्म की कहानी दलित नेता मायावती पर आधारित है. इन सब विवादों से बचने के लिए फ़िल्म की शुरुआत में ही डिस्क्लेमर के ज़रिए इस बात की पुष्टि की गयी है कि फ़िल्म के पात्र,घटनाएं और कहानी सभी काल्पनिक है. वैसे यह काल्पनिक कहानी राजनीति में वर्ग संघर्ष के असल मुद्दे को छूती है इसके साथ ही यह फ़िल्म इस स्याह सच को भी उजागर करती है कि पावर आपको आखिरकार आपको भ्रष्ट बना ही देता है.

80 के शुरुआती दशक से कहानी शुरू होती है. फ़िल्म के पहले ही दृश्य में यह दिखाया जाता है कि दलित दूल्हे की बारात घोड़ी पर निकलने पर ऊंची जाति के लोगों को इतना नागवार गुजरता है कि मामला पूरी तरह से खून खराबे वाला हो जाता है. एक दलित आदमी रूप राम की हत्या हो जाती है. उसके कुछ समय पहले उसके घर में एक बेटी हुई है. उसकी दादी बच्ची को जहर चटाकर मारने की बात कह रही होती है. फिर कहानी 2005 तक आगे बढ़ जाती है. तारा (रिचा चड्ढा) बिंदास लड़की है, जो अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीती है. जिसके लिए वह परिवार और समाज सभी के खिलाफ जा सकती है. तारा रूपराम की ही बेटी है.

प्यार में धोखा खाने के बाद वह ज़िन्दगी में कुछ कर गुजरने की ठान लेती है. एक दलित नेता (सौरभ शुक्ला) तारा की मदद करता है और उसको राजनीति से जोड़ता है. हालातों के समीकरण कुछ ऐसे बनते हैं कि तारा राज्य सरकार में मुख्यमंत्री के शीर्ष ओहदे तक पहुंच जाती है, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है. विश्वासघात,साजिशें,रंजिशें भी हैं. इसके साथ ही राजनीति में जातिवाद समाज में लिंगभेद का घिनौना चेहरा भी सामने आता है. फ़िल्म का विषय जितना प्रभावी है कहानी वह प्रभाव परदे पर नहीं ला पायी है. फ़िल्म का फर्स्ट हाफ ट्विस्ट एंड टर्न से भरा है.

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सेकेंड हाफ में कहानी बिखरने के साथ साथ स्लो भी हो जाती है. फंस गए रे ओबामा,जॉली एलएलबी, जॉली एलएलबी 2 जैसी व्यंग और कटाक्ष इस फ़िल्म से नदारद है. हालांकि राजनीति से जुड़े छोटे छोटे लेकिन अहम पहलुओं को कहानी से जोड़ा गया है. किस तरह से राजनीति अच्छे इंसान को भी बदल देती है. रैली वाला दृश्य जिसमें तारा का किरदार हीरा पहने हुआ है. जिस तरह के संवादों के साथ पूरे दृश्य को नरेट किया गया है. वह ज़रूर अच्छा बन पड़ा है.

संवाद ज़रूर असरदार है. सत्ता में रहकर सत्ता की बीमारी से बचना मुश्किल है. यूपी में जो मेट्रो बनवाता है वो हारता है मंदिर बनवाने वाला जीतता है. अभिनय पर आए तो दलित और शोषित लड़की से प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के सफर को अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने अपने अभिनय से शानदार ढंग से परदे पर परिभाषित किया. हमेशा की तरह मानव कौल एक बार फिर अपने किरदार में छाप छोड़ जाते हैं. सौरभ शुक्ला भी दिल जीतते हैं. सौरभ शुक्ला और रिचा चड्ढा की ऑन स्क्रीन केमिस्ट्री अच्छी बन पड़ी है.

अक्षय ओबेरॉय, शुभराज्योति सहित बाकी के बाकी के किरदार भी अपनी भूमिका में परफेक्ट रहे हैं. गीत संगीत की बात करें तो चिड़ी चिड़ी गाना कहानी के अनुरूप ज़रूर है लेकिन गीत संगीत पर और काम करने की ज़रूरत है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी को विश्वसनीय बनाती है. कुलमिलाकर यह पॉलिटिकल ड्रामा फ़िल्म कलाकारों के उम्दा परफॉर्मेंस की वजह से एक बार देखनी तो बनती है.

Posted By: Divya Keshri

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