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Shehzada Movie Review: कार्तिक आर्यन की शहजादा… टाइमपास फैमिली एंटरटेनर

Shehzada Movie Review: कार्तिक आर्यन की मोस्ट अवेटेड फिल्म शहजादा आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. कार्तिक आर्यन अपनी इस फिल्म से मास एंटरटेनर के तौर पर अपनी पहचान को और ज्यादा पुख्ता कर गए हैं. रोमांस, कॉमेडी, इमोशन के साथ -साथ इस बार उन्होंने एक्शन का परफेक्ट डोज अपने अभिनय में मिलाया है.

फ़िल्म- शहजादा

निर्माता- टी सीरीज

निर्देशक- रोहित धवन

कलाकार- कार्तिक आर्यन, कृति सेनन, परेश रावल, सनी हिंदुजा, मनीषा कोइराला, रोनित रॉय, सचिन, अली असगर, राजपाल यादव और अन्य

प्लेटफार्म- सिनेमाघर

रेटिंग- ढाई

Shehzada Movie Review: बीते साल की सबसे कमाई करने वाली फिल्मों में से एक भूल भुलैया का चेहरा रहे कार्तिक आर्यन की फिल्म शहजादा ने टिकट खिड़की पर आज दस्तक दे दी है. उनकी फिल्म भूल भुलैया ने पोस्ट पेंडेमिक 250 करोड़ का आंकड़ा पार किया था. उस वक्त जब बड़े से बड़े स्टार की फिल्में टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिर रही थी. कार्तिक ने भूल भुलैया से एक अहम चुनौती पार कर दी थी. आज रिलीज हुई शहजादा से उन्होंने खुद को एक और बड़ी चुनौती दे दी है. शहजादा 2020 में रिलीज साउथ सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की तमिल फिल्म अला वैकुंठपुरमलो की हिंदी रिमेक है. इस फिल्म को अल्लू अर्जुन के स्वैग ने ब्लॉकबस्टर बनाया था. यह बात किसी से छिपी नहीं है. पागलपन विद मस्ती वो भी फुल ऑन अल्लू अर्जुन की स्टाइल में. कार्तिक आर्यन, अल्लू अर्जुन वाला जादू परदे पर भले ही नहीं ला पाए हैं, लेकिन उनकी कोशिश अच्छी रही है. उन्होंने भी इस फिल्म को पूरी तरह से अपने कंधों पर उठाया है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले की वजह से यह फिल्म ब्लॉकबस्टर मसाला फिल्म नहीं बन पायी है, लेकिन परफेक्ट फैमिली एंटरटेनर जरूर बन गयी है.

कहानी वही है पुरानी

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि यह फिल्म 2020 में रिलीज अल्लू अर्जुन की तमिल फिल्म अला वैकुंठपुरमलो हिंदी रिमेक है, लेकिन असल में कहानी 80 के दशक वाली है. बच्चों की अदला-बदली के पॉपुलर फार्मूले पर कहानी टिकी है. कंपनी में काम करने वाला एक मामूली कर्मचारी बाल्मीकि (परेश रावल) अपने बेटे (अंकुर राठी) को अपनी कम्पनी के मालिक (रोनित रॉय) के बेटे बंटू (कार्तिक आर्यन) से बदल देता है ताकि उसका बेटा शहजादों वाली जिंदगी जिए. यही होता भी है. बंटू अभावों में जिंदगी जीते हुए पलता और बढ़ता है और कहानी भी बढ़ जाती है, लेकिन बंटू को मालूम पड़ जाता है कि वह बाल्मीकि का नहीं बल्कि जिंदल का बेटा है. बंटू क्या अपने परिवार को अपनी असलियत बता पाएगा. क्या उसका परिवार इस बात को मानेगा. यह सब कैसे होगा. यही फिल्म की आगे की कहानी है, जो हिंदी फिल्मों का दर्शक 70 के दशक से देखता आ रहा है.

स्क्रीनप्ले में ये थी खूबियां और खामियां

फिल्म की कहानी औसत है. फिल्म का फर्स्ट हाफ कमजोर रह गया है. उसमे कहानी को जबरदस्ती खिंचा गया है. सेकेंड हाफ में कहानी रफ्तार पकड़ती और यही से फिल्म में रोचकता भी बढ़ जाती है. फिल्म का सेकेंड हाफ मजेदार है, लेकिन क्लाइमेक्स कमजोर रह गया है. फिल्म के स्क्रीनप्ले के साथ-साथ इसका नरेटिव भी कमजोर है. मेकर्स ने ओरिजिनल फिल्म के कुछ यादगार सीक्वेन्स को हटाया है. उनका यह फैसला थोड़ा अजीब सा लगता है, लेकिन इस कहानी और स्क्रीनप्ले में वह कुछ खास जोड़ नहीं पाए हैं. वह नए तरीके से इस कहानी को अपने अंदाज में कहने की कोशिश कर सकते थे, जो कि सही तरीका होता था, लेकिन मेकर्स ने लगभग वैसे ही फिल्म को पेश कर दिया है. एडिटिंग पर भी काम करने की जरूरत थी. फर्स्ट हाफ में कई सीन जरुरत से ज्यादा लंबे बन गए हैं. यह एक फॅमिली ड्रामा है. जिसमें इमोशन की बहुत गुंजाईश थी, लेकिन मेकर्स ने इमोशन को उसकी जरुरत के हिसाब से स्क्रीनप्ले में कम ही दर्शा पाए हैं. फिल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं. कुछ वन लाइनर्स मजेदार बने हैं.

यह पहलू हैं खास

गीत-संगीत की बात करें तो प्रीतम का म्यूजिक अच्छा है. रोमांटिक से लेकर डांस नंबर्स सभी तरह के गाने हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के अनुसार है तो सिनेमाटोग्राफी प्रभावी है. एक्शन दृश्य भी अच्छे बन पड़े हैं.

कार्तिक और परेश रावल की दमदार परफॉरमेंस

अभिनय की बात करें तो कार्तिक आर्यन अपनी इस फिल्म से मास एंटरटेनर के तौर पर अपनी पहचान को और ज्यादा पुख्ता कर गए हैं. रोमांस, कॉमेडी, इमोशन के साथ -साथ इस बार उन्होंने एक्शन का परफेक्ट डोज अपने अभिनय में मिलाया है. इस फिल्म में भी वह अपने मोनोलॉग वाले अवतार को फिर दोहराते हैं. कार्तिक के बाद जिस किरदार ने फिल्म में अपनी खास छाप छोड़ी है. वह परेश रावल हैं. उनकी और कार्तिक की केमिस्ट्री अच्छी बन पड़ी है. कृति सेनन फिल्म में बहुत खूबसूरत दिखी हैं क्यूंकि फिल्म में इसके अलावा उनके करने को कुछ नहीं था. रोनित रॉय अपनी भूमिका में जमे हैं.एक अरसे बाद मनीषा कोइराला को परदे पर देखना अच्छा लगा, हालांकि उनके करने के लिए ज्यादा कुछ खास नहीं था. राजपाल यादव फिल्म में चंद दृश्यों में नज़र आए हैं, लेकिन वह चेहरे पर मुस्कान बिखेर जाते हैं. बाकी के किरदारों ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करने की कोशिश की है.

देखें या ना देखें

अगर आप टाइमपास मसाला फिल्मों के शौकीन हैं, तो यह फैमिली ड्रामा फिल्म आपको पसंद आएगी.

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