फ़िल्म-शिव शास्त्री बलबोआ
निर्देशक -अजयन वेणुगोपाल
कलाकार -अनुपम खेर, नीना गुप्ता, शारीब हाशमी, नरगिस फाखरी, जुगल हंसराज और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -तीन
बीते कुछ समय से एक आदर्श बदलाव के तहत रुपहले पर बुजुर्ग कलाकारों को केंद्रीय भूमिकाओं में रखकर फ़िल्में बनायीं जा रही है. इसी की अगली कड़ी फिल्म शिव शास्त्री बलबोआ है.फिल्म के पोस्टर और शीर्षक को देखकर लगता है कि कहानी बॉक्सिंग पर होगी,लेकिन यह फिल्म हॉलीवुड की सुपरहिट रॉकी की फिलोसॉफी पर है कि सवाल ये नहीं है कि तुम कितनी ज़ोर से गिरते हो. सवाल ये है कि जिंदगी में गिरने के बाद तुम उठकर खड़े होते हो या नही. फिल्म की कहानी में नएपन की कमी है, लेकिन फील गुड वाली कहानी कलाकारों के उम्दा परफॉरमेंस की वजह से चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर दे जाती है. यह फिल्म जिंदगी और अपने सपनों से उम्र के हर पड़ाव पर प्यार करने की अहम सीख भी देती है.
फिल्म की कहानी मध्यप्रदेश के रहने वाले शिव शास्त्री बालबोआ ( अनुपम खेर )की है. हॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म रॉकी से वह बहुत प्रभावित है. उस फिल्म ने उसकी जिंदगी बदल दी थी. जिस वजह से उसने मध्यप्रदेश में एक बॉक्सिंग क्लब की स्थापना भी की है. वह खुद तो बॉक्सर नहीं बन सका, लेकिन देश को कई चैंपियन बॉक्सर दिए हैं. अब वह अपनी बाकी की रिटायरमेन्ट के बाद वाली जिंदगी अपने डॉक्टर बेटे (जुगल हंसराज ) के पास अमेरिका में रहने वाला है. उसका अब बस एक ही सपना है कि वह फिल्डेलफिया में रॉकी स्टेप्स पर दौड़ते हुए एक वीडियो बनाए, लेकिन अमेरिका पहुंचकर उसे मालूम पड़ता है कि अपने बेटे के साथ फिलेड़ेल्फिया जाना उसके लिए आसान नहीं है, क्योंकि उसका बेटा पूरी तरह से जिंदगी की आपाधापी में उलझा हुआ है. जिससे शिव शास्त्री भी अपने एकलौते सपने को मारकर जिंदगी जीना शुरू कर देता है.
उसकी मुलाक़ात हाउस हेल्पर एलसा (नीना गुप्ता )से होती है. आठ साल से वह अपने मालिकों द्वारा वहां कैद है.उसका बस एक ही सपना है कि वह अपनी नातिन के पास हैदराबाद चली जाए.वह शिव शास्त्री से मदद मांगती है. शिव शास्त्री जो अपने एक सपने को पूरा नहीं कर पा रहे हैं क्या वह एलसा की मदद कर पाएंगे. एलसा के साथ -साथ क्या वह अपने सपने को भी पूरा कर पाएंगे. इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
फिल्म की कहानी स्लाइस ऑफ़ लाइफ है.रिटायरमेन्ट के बाद बुगुर्गों से एक तरह का जीवन जीने के समाज के नियम को यह फिल्म पूरी तरह से नकारती है. जिंदगी को उम्र के किसी भी पड़ाव पर भरपूर जीने और अपने सपने को पूरा करने की यह फिल्म सीख देती है. फिल्म की कहानी एक एडवेंचर ट्रिप पर ले जाती है. जहाँ पर ड्रामा के साथ -साथ चेहरे पर मुस्कान लाने के बहुत मौके भी दे जाती है. इसके अलावा फिल्म विदेशों में होने वाले नस्लभेद, विदेश में घरेलू कामों में काम करने वालों के लोगों के हालात, एकाकी जीवन, बच्चों के स्वार्थी रवैये को भी छूती है. अच्छी बात ये है कि बिना किसी भाषणबाज़ी और मेलोड्रामा के यह फिल्म अपनी बात को रखती है.
पिछले कुछ समय से उम्र के दूसरे पड़ाव में पहुंच चुके किरदारों की कहानियों लगातार आ रही है, जिस वजह से फील गुड वाली इस कहानी में नयापन नहीं है.फिल्म में क्या होगा ये आपको पता होता है इसके साथ फिल्म थोड़ी स्लो भी है. फिल्म की लम्बाई को थोड़ा काटा जा सकता था.
अभिनय की बात करें तो यह फिल्म पूरी तरह से अनुपम खेर के कंधों पर है. वे फिल्म के पोस्टर बॉय भी हैं. उन्होने अपने कंधों पर इस जिम्मेदारी को सहजता के साथ निभाया है. उन्होने अपने किरदार की पूरी बारीकी के साथ जिया है. फिल्म में अभिनेत्री नीना गुप्ता भी अहम उपस्थिति दर्शाती है. उनकी और अनुपम खेर कि केमिस्ट्री बेहद खास है.कुछ दृश्यों में हैदराबाद के लहजे को पकड़ती हैं और कुछ दृश्यों में नहीं.इस बात के साथ -साथ फिल्म में वह डिजाइनर हैंडलूम वाली साडियों में भी दिखी है.ये पहलू थोड़ा अखरते हैं. शारीब हाशमी अपने मौजूदगी से फिल्म को खास बनाते हैं. जुगल हंसराज भी अपनी भूमिका के साथ न्याय कर गए हैं. नरगिस फाखरी के लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था.
स्लाइस ऑफ़ लाइफ वाली यह कहानी पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है.