Loading election data...

Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review: मनोज बाजपेयी के अभिनय का एक और मास्टरस्ट्रोक सिर्फ एक बंदा काफी है

Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review in Hindi: फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है रेप जैसे एक बहुत ही संवेदनशील विषय पर है, जो कि स्वयंभू संत आसाराम बापू के मामले पर आधारित है, जिसने लगभग एक दशक पहले पूरे देश की आस्था को झकझोर दिया था. इसी घटना को कोर्टरूम ड्रामा के जरिए इस फिल्म में दिखाया गया है.

By कोरी | May 23, 2023 9:06 AM
an image

फ़िल्म – सिर्फ एक बंदा काफी है

निर्माता – विनोद भानुशाली फिल्म्स

निर्देशक – अपूर्व सिंह कार्की

कलाकार – मनोज बाजपेयी,विपिन शर्मा,सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, प्रियंका सेठिया,अजय सोनी, निखिल पांडे और अन्य

प्लेटफार्म – जी 5

रेटिंग – साढ़े तीन

फिल्म सिर्फ एक बंदा काफी है रेप जैसे एक बहुत ही संवेदनशील विषय पर है, जो कि स्वयंभू संत आसाराम बापू के मामले पर आधारित है, जिसने लगभग एक दशक पहले पूरे देश की आस्था को झकझोर दिया था. इसी घटना को कोर्टरूम ड्रामा के जरिए इस फिल्म में दिखाया गया है. आमतौर पर हमारी फिल्मों में कोर्ट रूम ड्रामा का मतलब ओवर द टॉप ट्रीटमेंट और किरदारों का लार्जर देन लाइफ हो जाना होता आया है, लेकिन यह फिल्म अपराध को सनसनीखेज बनाने के बजाय कहानी को पूरी संवेदशीलता के साथ बयां करती है. जो इस फिल्म को सभी के लिए जरूरी फिल्म बना देती है और मनोज बाजपेयी का दमदार अभिनय इस फिल्म को और खास बनाने के लिए तो है ही.

वास्तविक घटना से प्रेरित है कहानी

फ़िल्म की कहानी वकील पीसी सोलंकी की है, जिसने 2018 में आशाराम बापू को एक नाबालिग के साथ बलात्कार करने के जुर्म में जेल भिजवाया था. यह फ़िल्म उन्हें के दृढ़ता, साहस और समझदारी की कहानी है. फ़िल्म में अभियुक्त का नाम आशाराम बापू भले नहीं है, लेकिन वकील के किरदार का नाम ( पीसी सोलंकी ) ही है और फ़िल्म देखते हुए यह बात साफ हो जाती है कि यह फ़िल्म उसी वास्तविक घटना पर आधारित है. किस तरह से पांच साल के लम्बी लड़ाई के बाद पीसी सोलंकी बाबा को जेल के सालाखों तक पहुंचा पाए थे. जिसमें पीसी सोलंकी को केस से हटाने के लिए साम, दाम, दंड और भेद सभी का इस्तेमाल किया गया, लेकिन सोलंकी सच के साथ डटे रहें. इसी जर्नी को फिल्म की कहानी में दिखाया गया है.

स्क्रिप्ट की खूबियां और खामियां

यह सत्य घटना पर आधारित फ़िल्म है. एक हाई प्रोफाइल केस जिसके बारे में हर कोई परिचित है, लेकिन फ़िल्म को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि यह आपको शुरुआत से आखिर तक बांधे रखता है. इसके लिए फ़िल्म के लेखन और निर्देशन टीम की तारीफ करनी होंगी. आखिर में मनोज बाजपेयी की क्लोज़िंग स्पीच फ़िल्म को एक लेवल और ऊपर लेकर चली गयी है. फ़िल्म के ट्रीटमेंट में सोलंकी के किरदार में कई लेयर्स भी जोड़े है. आमतौर पर ऐसे किरदारों को पूरा हीरो वाला ट्रीटमेंट फिल्मों में दिया जाता रहा है. सोलंकी यहां भी हीरो है, लेकिन किरदार का ट्रीटमेंट रियलिस्टिक है. वो रिश्वत नहीं लेता है. मासूम बच्ची और उसके परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए वह उनसे कोई फीस भी नहीं ले रहा है.

फिल्म ने बारीकी से सोलंकी के किरदार को दिखाया

सिर्फ यही नहीं उसने इंसाफ की इस लड़ाई में अपने साथ -साथ अपने परिवार की जान को भी जोखिम में डाल दिया है,लेकिन एक आम आदमी की तरह अपना और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए वह परेशान रहता है. वह कोर्ट में किसी से भिड़ सकता है, लेकिन सड़क पर भिड़ंत होने पर वह भागने में यकीन करता है. वह बाबा का बचाव करने आए नामी गिरामी वकीलों से प्रभावित है. उनके साथ फोटो भी लेना चाहता है, लेकिन वक़्त आने पर उनके खिलाफ डटकर खड़ा भी होता है. फिल्म ने बारीकी से सोलंकी के किरदार को परदे पर लाया है. फ़िल्म यह भी मजबूती से दिखाती है कि हमारा क़ानून इतना मजबूत है कि अगर कोई इसका सही जानकार हो, तो वह बड़े से बड़े गुनाहगार को उसके अंजाम तक पहुंचा सकती है. खामियों की बात करें, तो फिल्म बीच में थोड़ी भटकती है. दृष्यों में थोड़े दोहराव भी आते है, लेकिन फिल्म जल्द ही ट्रैक पर लौट आती है. फिल्म में बच्ची के इमोशन पर थोड़ा और फोकस करने की जरूरत थी.

मनोज बाजपेयी के जबरदस्त अभिनय से सजी फिल्म

हिंदी सिनेमा के उम्दा कलाकारों में शुमार मनोज बाजपेयी ने बीते कुछ सालों में ओटीटी में अपने अभिनय से जमकर वाहवाही बटोरी है. एक बार फिर वह इस फ़िल्म में भी जबरदस्त रहे है. पीसी सोलंकी के किरदार को उन्होने पूरी बारीकी के साथ जिया है. संवाद से लेकर बॉडी लैंग्वेज सभी में उन्होने किरदार को आत्मसात कर लिया है. अदिति सिंह अंद्रीजा ने अपने किरदार से जुड़े दर्द और आक्रोश दोनों को बखूबी बयां किया है. विपिन वर्मा भी याद रह जाते है. बाकी के किरदारों ने भी अपनी -अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. इस फिल्म की अहम यूएसपी में इसकी कास्टिंग है.

ये पहलू भी है खास

यह एक कोर्ट रूम ड्रामा है और इस तरह की फिल्मों की सबसे बड़ी जरूरत संवाद होते है और इस फिल्म के संवाद दमदार हैं. जो दिल को झकझोरते हैं, तो कई बार चेहरे पर मुस्कान भी ले आते हैं. फिल्म की सिनेमाटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. गीत – संगीत का पहलू भी असरदार है.

Exit mobile version