फिल्म :द साबरमती रिपोर्ट
निर्माता :एकता कपूर
निर्देशक :धीरज सरना
कलाकार :विक्रांत मैसी, रिद्धि डोगरा,राशि खन्ना और अन्य
प्लेटफार्म : सिनेमाघर
रेटिंग : दो
the sabarmati report movie review :फिल्म द साबरमती रिपोर्ट ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है. फिल्म के ट्रेलर लांच के बाद से फिल्म विवादों में आ गयी थी .फिल्म के एक्टर विक्रांत मैसी ने यह बयान देकर विवाद को और गहरा दिया कि उन्हें ट्रेलर लांच के बाद लगातार धमकियां मिल रही हैं. विक्रांत ने यह भी कहा कि 28 फ रवरी को गुजरात में हुए दंगों के बारे में पूरी दुनिया जानती है , लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले साबरमती एक्सप्रेस में क्या हुआ था. इस सच्चाई अभी तक नहीं पता है. यह फिल्म उसी सच्चाई को लाती है.वैसे विक्रांत की यह बात आंशिक रूप से सही है. साबरमती एक्सप्रेस में आग दुर्घटना थी या सुनियोजित योजना इस सच को अब तक कई रिपोर्ट सामने ला चुकी है. इसी साल 19 जुलाई को रिलीज हुई फिल्म एक्सीडेंट ऑर कांस्पीरेसी गोधरा चैप्टर में भी इस साजिश को सामने लाया गया था.ऐसे में द साबरमती रिपोर्ट इस संवेदनशील मुद्दे में कुछ ऐसा जोड़ नहीं पाती है. जो नया हो. इसके साथ ही स्क्रीनप्ले की खामियों की वजह से फिल्म इमोशनल लेवल पर भी कमजोर रह गयी है, जो इस फिल्म की सबसे बड़ी जरूरत थी.
मीडिया के नजरिये से गोधरा कांड की कहानी
साल 2002, 27 फरवरी की सुबह गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन के कुछ ही दूरी पर साबरमती एक्सप्रेस की दो बोगियों को आग के हवाले कर दिया गया था क्योंकि उसमें अयोध्या से आ रहे कारसेवक थे, जिसमें 59 लोगों की जिन्दा जलने से मौत हो गयी थी. यह फिल्म उसी घटना पर है,लेकिन इस कहानी को मीडिया की नजर से कहा गया है. इस फिल्म के स्क्रीनप्ले की बात करें तो एक बड़े से न्यूज़ चैनल में फिल्म बीट पर काम कर रहे समर (विक्रांत मैसी ) को गोधरा के पास ट्रैन में लगी आग में चैनल की स्टार जर्नलिस्ट मनिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा ) के साथ बतौर कैमरामैन भेज दिया जाता है. जहां पर वह खुद से कुछ पीड़ितों के बयान भी रिकॉर्ड कर लाता है, लेकिन सच की कीमत पहले ही उसके चैनल की स्टार जर्नालिस्ट ने लगा ली है. ऐसे में समर को भारी कीमत अदा करनी पड़ती है.उसका सबकुछ उससे छीन जाता है और कहानी पांच साल आगे बढ़ जाती है. नाना कमीशन की वजह से एक बार फिर गोधरा का मुद्दा चर्चा में आ जाता है. मनिका अपना नाम बचाने के लिए एक नयी कहानी गढ़ने का फैसला करती है, जिसके लिए वह ट्रेनी अमृता (राशि खन्ना )को गोधरा भेजती है , लेकिन अमृता के हाथ समर के द्वारा ली गयी वह फुटेज लग जाती है.अमृता क्या सच का पता लगाएगी। समर को किस तरह से वह फिर इसमें शामिल करती है.क्या समर मनिका राजपुरोहित के साथ साथ गोधरा के सच को सामने ला पायेगा। यही आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
फिल्म का पहला भाग गोधरा कांड और उस भयावह हादसे को मीडिया द्वारा छिपाने पर फोकस किया गया है. फिल्म का दूसरा भाग इस सच को ढूंढने की पड़ताल करता है,फिल्म का पहला भाग ठीक है. दूसरे भाग में कहानी स्लो हो जाती है. फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले कमजोर रह गया है. जिसने इस फिल्म के विषय के साथ न्याय नहीं किया है. इसी साल रिलीज हुई फिल्म गोधरा ने इस विषय पर डिटेल में अपनी कहानी को दिखाया था हालांकि संसाधनों की कमी की वजह से वह फिल्म प्रभावी नहीं बन पायी थी, लेकिन गोधरा के सच को वह फिल्म पूरी डिटेल के साथ सामने लेकर आयी थी. इसके अलावा पब्लिक डोमेन में इस विषय पर इतना कुछ अब मौजूद है कि द साबरमती रिपोर्ट ऐसा कुछ भी सामने नहीं ला पाती है. जो चौंकाता हो. फिल्म का क्लाइमेक्स भी कमजोर रह गया है.फिल्म मीडिया के कामकाज पर भी सवाल उठाती है. हिंदी बनाम अंग्रेजी की जंग भी दिखाती है,लेकिन कई बार फिल्म मुद्दे से हटकर दो पत्रकारों के बीच में वर्चस्व की लड़ाई सी दिखाई देती है. फिल्म में दो समुदायों के अनबन को दिखाने के साथ – साथ कौमी एकता दिखाकर फिल्म में उसे बैलेंस करने की भी कोशिश की गयी है.फिल्म के गीत संगीत में राजाराम को छोड़कर कुछ प्रभावी नहीं लगता है.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और संवाद विषय के साथ न्याय करते हैं.
विक्रांत मैसी की एक और जानदार परफॉरमेंस
विक्रांत मैसी अभिनय का वह नाम बन चुके हैं, जो किसी भी किरदार में आसानी से ढल जाते हैं.इस फिल्म में भी वह अपने किरदार में पूरी तरह से रचे बसे दिखते हैं. सच को सामने लाने की उनकी जद्दोजहद परदे पर हर सीन में दिखती है. रिद्धि डोगरा ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. उन्होंने अपने अभिनय से नकारात्मक शेड्स को बखूबी उभारा है. राशि खन्ना ने भी ट्रेनी जर्नलिस्ट के किरदार के साथ न्याय किया है.