फ़िल्म -तू झूठी मैं मक्कार
निर्देशक -लव रंजन
कलाकार -रणबीर कपूर, श्रद्धा कपूर, डिंपल कपाडिया, बोनी कपूर, अनुभव सिंह बस्सी,मोनिका चौधरी, हसलीन कौर और अन्य
प्लेटफार्म – सिनेमाघर
रेटिंग -तीन
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में त्यौहार के आसपास बड़ी फ़िल्में रिलीज करने का ट्रेंड रहा है. इसी के तहत लव रंजन ने होली के दिन अपनी फ़िल्म तू झूठी मैं मक्कार सिनेमाघरों में रिलीज कर दी है. रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर स्टारर यह फ़िल्म भले ही रोमांटिक कॉमेडी फ़िल्म कही जा रही है, लेकिन यह असल में यह पारिवारिक कहानी है. फर्स्ट हाफ में फ़िल्म टाइमपास सी लगती रहती है, लेकिन सेकेंड हाफ में कहानी जिस तरह से टर्न होती है. यह जबरदस्त इंटरटेनर बन जाती है. लव रंजन की चित परिचित दुनिया की यह फ़िल्म नयी पीढ़ी के साथ -साथ पुरानी पीढ़ी को भी लुभाएगी.
फ़िल्म की कहानी मिकी (रणबीर कपूर) की है. अमीर परिवार से ताल्लुक रखता है.अपने फैमिली बिजनेस को संभालने के साथ- साथ वह अपने दोस्त(अनुभव बस्सी) के साथ मिलकर जोड़ी ब्रेकर्स का भी काम करता है. वें पैसे लेकर ऐसे लोगों की मदद करते हैं, जो अपने प्यार के रिश्ते को प्यार से ही खत्म करना चाहते हैं. ये सब मजे से चल रहा है और मिकी खुश है.इसी बीच मिकी और टिनी (श्रद्धा कपूर) की मुलाक़ात होती है और थोड़ी बहुत से सच्चा वाला प्यार हो जाता है.
दोनों के परिवार वाले भी मान जाते हैं. सबकुछ परदे पर अच्छा चल रहा है. अचानक से टिन्नी जोड़ी ब्रेकर्स सर्विस वालों को फ़ोन करती है कि उसे अपना रिश्ता तुड़वाना है.मिकी को मालूम पड़ता है कि उसे अपना ही रिश्ता तुड़वाना है. टिन्नी मिकी से क्यों अलग होना चाहती है? क्या मिकी अपने ही रिश्ते को तोड़ने में मदद करेगा? यह सब आगे की कहानी है. जिसके लिए आपको यह फ़िल्म देखनी होगी.
फ़िल्म के ट्रेलर को देखकर जिस तरह की यह फ़िल्म समझ आ रही थी. उस तरह की यह फ़िल्म नहीं हैं. भले ही फ़िल्म के पहले भाग में स्पेन की खूबसूरस्त वादियों के हर फ्रेम में नायक नायिका बीच वियर में फ़िल्म की खूबसूरती को और बढ़ा रहे हैं. फ़िल्म के थोड़े -थोड़े अंतराल पर गाने भी आते हैं , लेकिन इंटरवल से ठीक पहले कहानी में ट्विस्ट आ जाता है और फ़िल्म की कहानी का जॉनर ही बदल जाता है और यही इस फ़िल्म को खास बना देता है.
युवा दर्शकों पर लव रंजन की पकड़ अच्छी है. पहला हाफ उनको समर्पित है. सेकेंड हाफ में पारिवारिक फिल्म यह बन जाती है. लव रंजन द्वारा द्वारा रचा गया फैमिली ड्रामा सूरज बड़जात्या और करण जौहर से अलग हैं. मां, पापा, दादी, बहन और भांजी का किरदार भी बिल्कुल अलग है. फ़िल्म परिवार के महत्व को समझाती है, लेकिन कोई ज्ञान या इमोशनल बहसबाज़ी नहीं करती है. फ़िल्म की स्क्रिप्ट युवा परेशानियों को एड्रेस करती हैं. शादी के बाद पर्सनल स्पेस, इंडिपेंडेंस या पति के प्यार बांटने के नाम पर परिवार से दूरी कितनी है जरूरी है और युवा रिश्तों में संवाद की कमी पर भी फ़िल्म अपनी बात रखती है.
इस फ़िल्म के लिए रणबीर कपूर और श्रद्धा का चुनाव निर्देशक का साहसिक कदम करार दे सकते हैं, क्योंकि यह दोनों की दुनिया से अलग तरह की दुनिया है. मिकी के किरदार की दुनिया कार्तिक आर्यन की है, जिसमें उन्होंने कई सुपरहिट फ़िल्में दी है. रणबीर कपूर बखूबी इस दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है आख़िरकार उनका नाम मौजूदा दौर के बेहतरीन एक्टर्स में यूं ही नहीं शुमार है. उन्होंने अपने किरदार को भोलेपन और चालाकी दोनों के साथ जिया है.
फ़िल्म में वह सहजता से मोनोलॉग्स से भरे डायलॉग बोलते हैं.दिल टूटने के दर्द को वह परदे पर अपने खास ढंग से बयां करते हैं. वह फ़िल्म में बेहद हैंडसम भी नजर आएं हैं.अभिनेत्री श्रद्धा कपूर की बात करें तो वह भी अपनी पिछली फिल्मों के मुकाबले श्रद्धा कपूर इस फ़िल्म में ज्यादा आकर्षक लगी हैं. उन्होने टिन्नी का किरदार बखूबी निभाया है. फ़िल्म के क्लाइमैक्स से पहले उन्होने अपने अभिनय क्षमता को बखूबी उस इमोशनल सीन में जाहिर की है. डिंपल अपनी मौजूदगी से फ़िल्म में अलग रंग भरती हैं. फ़िल्म के आखिरी बीस मिनट में अपने अभिनय से वह फ़िल्म को एक पायदान ऊपर ले जाती हैं.फ़िल्म निर्माता बोनी कपूर ने इस फ़िल्म से अपने अभिनय की शुरुआत की है. वें अपने किरदार में जंचे हैं. फ़िल्म के बाकी के किरदारों ने भी अपनी छाप छोड़ी है. कार्तिक आर्यन का कैमियो शानदार है. नुसरत भरुचा भी यादगार परफॉरमेंस छोटी सी भूमिका में दे गयी हैं.
फ़िल्म के दूसरे पहलुऑ की बात करें, तो संगीतकार प्रीतम और गीतकार अमिताभ भट्टाचार्या का जादू इस बार भी चल गया है. तेरे प्यार में गीत पहले से ही लोगों के जुबाँ पर चढ़ गया है. इसके अलावा फ़िल्म का गीत ओ बेदर्दया भी अच्छा बन पड़ा है. फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी में भव्यता का पूरी तरह से ख्याल रखा गया है. देशी हो या विदेशी हर फ्रेम में भव्यता है. फ़िल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं. पंचेस की भरमार है. जो पूरी फ़िल्म के दौरान आपको हंसाते हैं खासकर क्लाइमैक्स के संवाद शानदार हैं.
फ़िल्म की एडिटिंग थोड़ी फ़िल्म की लम्बाई को यदि थोड़ा छोटा रखते थे, तो और बेहतर होता था. खासकर फ़िल्म के फर्स्ट हाफ में कहानी थोड़ी खिंच गयी है. उसमें दस से पंद्रह मिनट कहानी को कम किया जा सकता था. बेहतरीन एडिटिंग से फ़िल्म को और मनोरंजक बनाया जा सकता था. मोनोलॉग लव रंजन की फिल्मों की पहचान हैं, लेकिन एक वक़्त के बाद आपको फ़िल्म में इसकी अति महसूस भी होती हैं खासकर फर्स्ट हाफ में.