Singer Mukesh: म्यूजिक के लिए छोड़ दी थी पढ़ाई, गायकी ऐसी कि राज कपूर ने कहा था, मैं जिस्म तो मुकेश मेरी आत्मा

Mukesh 100 Birth Anniversary: 22 जुलाई 1923 को जन्मे स्वर्गीय मुकेश की आज 100 वीं जन्म जयंती है. सन् 1945 में उन्होंने संगीत की दुनिया में कदम रखा था. जिसके बाद कई सुपरहिट गानों में अपनी आवाज दी. उनके ‘दिल जलता है तो जलने दे’, ‘धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले’ जैसे गीत आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं.

By Ashish Lata | July 22, 2023 7:41 AM

Singer Mukesh 100 Birth Anniversary: जब आप मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के बारे में बात करते हैं, तो दूसरा नाम जो तुरंत दिमाग में आता है वह है मुकेश का. 22 जुलाई 1923 को जन्मे स्वर्गीय मुकेश की आज 100 वीं जन्म जयंती है. सन् 1945 में उन्होंने संगीत की दुनिया में कदम रखा था. जिसके बाद कई सुपरहिट गानों में अपनी आवाज दी, जिसे आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं. हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्ण युग के कई दिग्गजों के बीच जो बात उन्हें अलग करती थी, वह थी उनकी नाक की खनक. उनके बिना तामझाम के गायन में एक उदासी भरा गुण था, जो श्रोताओं के दिलों को झकझोर देता था. आज भी आप आनंद के ‘कहीं दूर जब दिन ढल जाए’, ‘कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल’ और मेरा नाम जोकर के ‘जीना यहां मरना यहां’ की करुणा को महसूस कर सकते हैं. मुकेश चंद्र माथुर कहा करते थे, कि उनके सामने दस हल्के गीत हों और एक उदासी से भरा गाना हो, तो वह दस गीत को छोड़कर उदास गाने को चुनेंगे.

मुकेश ने 10वीं के बाद छोड़ दी थी पढ़ाई

मुकेश का जन्म दिल्ली में एक माथुर कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता ज़ोरावर चंद माथुर पेशे से एक इंजीनियर थे, वहीं मां चंद्रानी माथुर गृहिणी थी. वह दस बच्चों वाले परिवार में छठे बच्चे थें. उनके घर में बहन को संगीत सिखाने के लिए शिक्षक आते थे. वहीं मुकेश दूसरे कमरे में बैठकर संगीत सीखा करते थे. जिसके बाद उन्होंने 10वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ दिया और कुछ समय के लिए लोक निर्माण विभाग में काम किया. उन्होंने दिल्ली में अपनी नौकरी के दौरान वॉयस रिकॉर्डिंग के साथ प्रयोग किया और धीरे-धीरे अपनी गायन क्षमताओं और संगीत वाद्ययंत्र कौशल को भी विकसित किया.

इस शख्स की वजह से महान गायक बने मुकेश

दिवंगत दिग्गज सिंगर मुकेश की आवाज पर सबसे पहले उनके दूर के रिश्तेदार मोतीलाल की नजर पड़ी थी, जब उन्होंने अपनी बहन की शादी में गाना गाया था. मोतीलाल उन्हें मुंबई ले गये और पंडित जगन्नाथ प्रसाद से गायन की शिक्षा दिलवाई. इस अवधि के दौरान मुकेश को एक हिंदी फिल्म, निर्दोष (1941) की पेशकश की गई थी. अभिनेता-गायक के रूप में नीलकंठ तिवारी द्वारा लिखित ‘निर्दोश’ के लिए उनका पहला गाना “दिल ही बुझा हुआ हो तो” था. पार्श्व गायक के रूप में उनका पहला हिट गाना “दिल जलता है तो जलने दे” था.

राज कपूर की आवाज बन गये थे मुकेश

मुकेश गायक के.एल. सहगल के इतने बड़े प्रशंसक थे कि अपने पार्श्व गायन के शुरुआती वर्षों में वह उनके आदर्श की नकल किया करते थे. हालांकि बाद में मुकेश ने संगीत निर्देशक नौशाद अली की मदद से अपनी खुद की गायन शैली बनाई. मुकेश एक फिल्म में दिलीप कुमार की भूतिया आवाज थे और मोहम्मद रफी ने राज कपूर के लिए गाना गाया था. उन्होंने नौशाद के लिए कई हिट फ़िल्में दीं, जिसमें अनोखी अदा (1948), मेला (1948), अंदाज़ (1949) शामिल है. इसके अलावा “जीवन सपना टूट गया” जैसे हिट गानों में महान दिलीप कुमार के लिए मुकेश की आवाज का इस्तेमाल किया गया. मुकेश ने शंकर-जयकिशन के लिए सबसे ज्यादा 133 गाने रिकॉर्ड किए. बता दें कि अपने करियर में, मुकेश ने राज कपूर के लिए 110 गाने, मनोज कुमार के लिए 47 गाने और दिलीप कुमार के लिए 20 गाने गाए थे. एक वक्त था जब राज कपूर कहा करते थे कि ‘मैं तो शरीर हूं मेरी आत्मा तो मुकेश है’.

सरल त्रिवेदी को दिल दे बैठे थे मुकेश

मुकेश ने करोड़पति रायचंद त्रिवेदी की बेटी सरल त्रिवेदी से शादी की थी. हालांकि उतने अमीर नहीं होने की वजह से सरल के पिता शादी के लिए नहीं मान रहे थे. जिसके बाद दिवंगत सिंगर और सरल को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. 22 जुलाई 1946 को, मुकेश ने अपने 23वें जन्मदिन पर, एक मंदिर में शादी कर ली. हालांकि इतने सक्सेसफुल होने के बावजूद भी उनके काफी संघर्ष करना पड़ा था. एक समय था जब ‘ये मेरा दीवानापन है’ हिटमेकर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे और उन्हें अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिए अपने घर के पास एक सब्जी विक्रेता से कर्ज लेना पड़ा था. ये खुलासा खुद उनके बेटे नितिन मुकेश ने एक रियलिटी शो में किया था.

एक्टर के रूप में भी काम कर चुके हैं मुकेश

मुकेश ने अपने करियर की शुरुआत एक अभिनेता गायक के रूप में साल 1941 में फिल्म निर्दोष से की, जिसमें नलिनी जयवंत उनकी अभिनेत्री थीं. उनकी दूसरी फिल्म 1943 में अदब अर्ज़ थी. उन्होंने 1953 में राज कपूर की फिल्म ‘आह’ में कैमियो भूमिका निभाई. उन्होंने 1953 में फिल्म ‘माशूका’ में सुरैया के साथ और फिल्म ‘अनुराग’ में नायक के रूप में काम किया था. उनके ‘दिल जलता है तो जलने दे’, ‘धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले’, ‘ईचक दाना, बीचक दाना, दाने ऊपर दाना’, ‘रमैया वस्तावैय्या’, ‘आवारा हूं’ और ‘मेरा जूता है जापानी’ जैसे गीत सुपरहिट हुए थे.

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