Nail Polish Review
फ़िल्म : नेल पॉलिश
निर्देशक : बग्स भार्गव
कलाकार : अर्जुन रामपाल,मानव कौल, रजित कपूर,मधु, आनंद तिवारी और अन्य
रेटिंग : तीन
प्लेटफार्म : ज़ी 5
जुर्म तो दिमाग करता है, इंसान पर तो सिर्फ इल्ज़ाम लगता है. फ़िल्म का यह संवाद ही असल में फ़िल्म ‘नेल पॉलिश’ की कहानी का मूल भाव है. यह फ़िल्म एक साइको थ्रिलर फिल्म है. फ़िल्म की कहानी को नए प्रयोग के साथ कहा गया है जिसके लिए इसकी तारीफ करनी होगी लेकिन कहानी का अंत जिस तरह से ओपन छोड़ दिया गया है. वह कईयों को निराश कर सकता है क्योंकि आमतौर पर हिंदी फिल्मों के दर्शक फ़िल्म के अंत में परिणाम चाहते ही हैं. अगर सीक्वल फ़िल्म का बनता है तो अलग बात है.
फ़िल्म की कहानी असल घटनाओं से प्रेरित बतायी गयी है. प्रसिद्ध निठारी कांड से फ़िल्म थोड़ी प्रभावित भी लगती है. लगातार छोटे बच्चों के शोषण और उनकी हत्या से उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन परेशान है और सवालों के घेरे में लखनऊ क्रिकेट कोचिंग के कोच वीर सिंह (मानव कौल) आ जाता हैं जो सेना के लिए अंडर कवर एजेंट भी रह चुका है.
बच्चों के शोषण और हत्या से जुड़े जो भी सबूत मिलते हैं उनका कनेक्शन किसी ना किसी तरह वीर सिंह से जुड़ा होता है. सारे सबूत वीर सिंह के खिलाफ है. वीर सिंह जेल पहुँचता है और वहां कैदियों से मारपीट में वह घायल हो जाता है. अस्पताल में इलाज के दौरान वह खुद को चारु रैना कहने लगता है. कौन है चारु रैना. यही सवाल के जवाब आगे की कहानी में है. कहानी परतदार है जिस वजह से बांधे रखती है.
क्या वीर सिंह का चारु रैना बन जाना, उसके अपराध का बोझ है या खुद को सजा से बचाने के लिए शातिर चाल यह निर्देशक दर्शकों के विवेक पर ही छोड़ देते हैं. फ़िल्म का जिस तरह से अंत होता है. उसके बाद यह सवाल जेहन में आता है कि अगर इस कहानी को वेब सीरीज के फॉरमेट में बनाया जाता तो इसके साथ बेहतरीन तरीके से न्याय हो पाता था.
फ़िल्म के सबप्लॉट्स पर भी काम किया जा सकता था. मधु के एल्कोहलिक होने और उसके समाधान को फ़िल्म में बहुत सतही तौर पर छुआ गया है. अर्जुन रामपाल के किरदार को अपने पिता से इतनी परेशानी क्यों थी इस ट्रैक को भी उभारा जाना था. फ़िल्म में कानून के कमज़ोरियों का भी बखूबी इस्तेमाल हुआ है. किस तरह से फोरेंसिक रिपोर्ट ज्योतिष से कम नहीं है हमारे कानून में. फ़िल्म इसका भी जिक्र करती है.
अभिनय पक्ष पर आए तो यह इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत है. आमतौर पर हम जिस तरह का हिंदी सिनेमा देखते आए हैं. उससे यह बिल्कुल अलग है लेकिन फ़िल्म के कलाकारों ने अपने अभिनय से कहानी को प्रभावी बना दिया है. अर्जुन रामपाल, रजित कपूर, आनंद तिवारी, मधु शाह सभी की तारीफ करनी होगी, लेकिन मानव कौल बाज़ी मार ले जाते हैं.
आखिरी के एक घंटे में फ़िल्म पूरी तरह से उनकी हो जाती है. वह अपराधी है या निर्दोष उनका अभिनय शुरू से अंत तक इस संकेत को दिखाने तो कभी छुपाने में पूरी तरह से कामयाब रहे हैं. वीर सिंह के किरदार के बाद उन्होंने जिस तरह से आगे की फ़िल्म में चारु रैना के किरदार को जिया है.वह उनकी बेमिसाल अदाकारी की ही मिसाल है.
फ़िल्म का संवाद अच्छा बन पड़ा है. सिनेमेटोग्राफी औसत है. कुलमिलाकर अगर आप साइको थ्रिलर फिल्में पसंद करते हैं तो यह फ़िल्म आपको एंटरटेन करने की पूरी क्षमता रखती है.
Posted By : Budhmani Minj