Exclusive: जिनकी भाषा बची है, उनके सिनेमाघर भी बचे हैं: नितिन नीरा चंद्रा

निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा इन दिनों अपनी मैथिली फिल्म ‘जैक्सन हॉल्ट’ को लेकर चर्चा में है. उन्होंने बताया कि कैसे ‘जैक्सन हॉल्ट’ की कहानी उनके जेहन में आयी. उन्होंने कहा, आज से छह-सात साल पहले हम दोस्त लोग मिलकर कुछ डिस्कस कर रहे थे.

By कोरी | April 16, 2023 12:08 PM
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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा इन दिनों अपनी मैथिली फिल्म ‘जैक्सन हॉल्ट’ को लेकर सुर्खियों में हैं. मैथिली सिनेमा में वह इस फिल्म को नया प्रयोग करार देते हैं, क्योंकि थ्रिलर जॉनर की कहानी अब तक इस सिनेमा का हिस्सा नहीं बन पायी है. इस फिल्म की जर्नी और उससे जुड़ी चुनौतियों पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

‘जैक्सन हॉल्ट’ की कहानी किस तरह से आपके जेहन में आयी ?

आज से छह-सात साल पहले हम दोस्त लोग मिलकर कुछ डिस्कस कर रहे थे. थ्रिलर फिल्मों की बात चल रही थी कि बिहारी भाषा में मलयालम जैसा ऐसा कुछ बन सकता है क्या. आमिस एक बांग्ला फिल्म है, जहां एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को इंसानों को मारकर उसका मांस खिलाता है, क्योंकि उसकी प्रेमिका को वो पसंद है. ये सब सोचते-देखते लॉकडाउन के वक्त जब समय मिला, तो मैंने ‘जैक्सन हॉल्ट’की कहानी लिख डाली.

फिल्म की शूटिंग कहां हुई है?

फिल्म की कहानी पूरी तरह से मधुबनी में सेट है और हमने शूट भी वहीं के भवानीपुर में की है. मुश्किल होता है. महंगा भी पड़ता है, लेकिन यह जरूरी है कि वहां के लोगों को भी काम मिले. फिल्म के एक्टर्स और कैमरामैन को छोड़ दें, तो हम 25 लोग जिसमें लाइट बॉय, स्पॉटबॉय, असिस्टेंट, कुक ये सारे लोग चार कमरे के घर में चालीस दिन तक साथ में रहे, क्योंकि हमारा लक्ष्य था कि बिहार की भाषा में अच्छी फिल्म बनाना है. हमने वहां के लोकल लोगों को प्रशिक्षण दिया. उन्हें अपने साथ जोड़ा. हमारे तीनों एक्टर्स बिहार से ही हैं, लेकिन मुंबई में वह सालों से काम कर रहे हैं. ऐसे में जिस कम्फर्टेबल माहौल में वह काम करते हैं, हम वो नहीं दे पाएं. सेट पर एक तंबू में ही उन्हें बैठना पड़ता था. ढाई साल इस फिल्म को बनने में लगे हैं. हमारे सिनेमा के लिए कोई कहां पैसा देगा, क्योंकि आप बंजर जमीन में खेती करने चले हैं, पर हम लोग भी जिद्दी लोग हैं. इसमें 25 लोग को-प्रोडयूसर हैं. कोई 75 हजार दिया, कोई डेढ़ लाख, तो किसी ने दो लाख दिया है.

कास्ट एंड क्रू का कितना सपोर्ट मिला.पैसे के अलावा और क्या दिक्कतें थीं?

बहुत ज्यादा. मैं बताना चाहूंगा कि इस फिल्म में हम लोगों ने एक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है ‘डेज और नाइट’,जिसमें दिन में ही रात का सीन कर देते थे. जो भी रात का सीन आपको फिल्म में दिख रहा है, वह असल में दिन है. सब वीएफएक्स से किया गया है. इसमें बहुत खर्च हो जाता था, पर मधुबनी के सुजीत चौधरी ने मदद की. बाहर में जिस काम का 100 रुपये लगता था, उसको उन्होंने 20 रुपये में कर दिया है, तो अच्छे लोग मिल जाते हैं.

फिल्म की कास्टिंग के बारे में कुछ बताइए और वो मैथिली में कितना सहज थे

दुर्गेश की कास्टिंग इस फिल्म के लिए दो साल पहले से हो रखी थी, क्योंकि मैंने उनके साथ पहले काम किया है. वो उस वक्त पंचायत के लिए फेमस भी नहीं हुए थे. बाकी दोनों जो एक्टर्स हैं, वो ऑडिशन के जरिये आये.स्टेशन मास्टर सुपौल से हैं. जो हीरो हैं निश्चल अभिषेक, वो सीतामणि के हैं. दुर्गेश दरभंगा से हैं, तो भाषा की कोई दिक्कत नहीं थी. ये सभी मैथिली बोल और लिख, दोनों लेते हैं. वैसे एक महीने पहले इनकी तैयारी शुरू हो गयी थी. जून में जब शूटिंग शुरू हुई थी, उस वक्त 38 डिग्री तापमान था. जो हमारा सेट था, बारिश की वजह से हमने उसे प्लास्टिक से कवर किया था. उस सेट के कमरे में जब हम शूटिंग के लिए घूसते थे, ऐसा लगता था जैसे भट्टी में हमको डाल दिया गया हो. उसमें हम लोगों ने किस तरह से शूटिंग की है, वो हम ही जानते हैं.

लगातार आप भोजपुरी में फिल्में बना रहे हैं, क्या बदलाव पाते हैं ?

हालात अभी भी बहुत मुश्किल है. अब ‘गमक घर’ भी आंचल ने बनाया न. बहुत नाम हुआ था, कहां है वो फिल्म आप बताइए, जहां आप उसे देख सकती हैं. आप कहीं नहीं देख सकते हैं. सिनेमाघर बंद हो चुके हैं. दरभंगा में एक सिनेमाघर है, जबकि 2008 में 8 से 9 की संख्या थी. पूरे मधुबनी में एक सिनेमाघर है. पटना को छोड़ दें, तो बिहार के किसी भी जिले में दो से अधिक सिनेमाघर नहीं होंगे. आपने लोकल भाषा में कुछ अच्छा बनाया होता, तो आपके सिनेमाघर भी आबाद होते. जिनकी भाषा बची है, उनके सिनेमाघर भी बचे हैं. महाराष्ट्र, पंजाब, बंगाल को देख लीजिए. उनकी फिल्मों को ओटीटी भी महत्व दे रहा है. सिंपल है, आप अपनी चीजों को देंगे, तो दुनिया भी देगा.

अभिनेत्री नीतू चंद्रा इस फिल्म की निर्मात्री भी हैं. इस फिल्म से जुड़ी जर्नी पर उनके साथ खास बातें. अपना ओटीटी शुरू करने का फैसला कैसे लिया? जब बड़े-बड़े ओटीटी प्लेटफॉर्म ने हमारी नेशनल अवॉर्ड फिल्म ‘मिथिला मखान’ को लेने से मना कर दिया, तो नितिन और मैंने मिलकर अपना ही ओटीटी चैनल बिहार की भाषाओं वाला अंग्रेजी सबटाइटल के साथ शुरू कर दिया और उसी प्लेटफॉर्म पर सात मई को हमारी फिल्म ‘जैक्सन हाल्ट’ रिलीज होने जा रही है. मैंने अपने कोरियन मेकर्स, चाइनीज डिस्ट्रीब्यूटर और मेरी हॉलीवुड फिल्म के प्रोड्यूसर डेविड को भी यह फिल्म भेजा, उन सभी को यह फिल्म बहुत पसंद आयी. अच्छे काम को सब सराहते हैं, लेकिन हमारे यहां के ओटीटी वालों ने सपोर्ट नहीं किया.

‘मिथिला मखान’और अब ‘जैक्सन हाल्ट’ को ओटीटी ने रिजेक्ट कर दिया, रिजेक्शन के बावजूद मोटिवेशन कहां से मिलता है?

लोग जब मुझे रिजेक्ट करते हैं, तो वो मुझे इंस्पायर करता है. मुझे लगता है कि अच्छा है कि इतनी छोटी सोच के लोगों के साथ मैं काम नहीं कर रही हूं. इससे मेरा विजन और बड़ा हो जाता हैं. मैं खुद ही मौका बना लेती हूं. चंपारण टॉकीज फिल्म लिखता है, डायरेक्ट करता है और प्रोडयूस भी, इसलिए हमने खुद का ओटीटी भी शुरू कर लिया. हम हर तरह से खुद ही सक्षम रहेंगे.

दर्शकों से क्या अपील करेंगी?

12 साल से अपनी फिल्मों के जरिये हम बिहार को पॉजिटिव तरीके से दिखाते आये हैं. आप लोग ‘जैक्सन हाल्ट’ को नीतू और नितिन की फिल्म समझकर मत देखिये, बल्कि ट्रेलर देखकर ही आप फिल्म देखने का तय करिये. ट्रेलर अच्छा लगा, तो फिल्म जरूर देखिये, क्योंकि इससे हमारी हिम्मत और अच्छी फिल्म बनाने को लेकर बढ़ेगी.

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