Naushad Ali Death anniversary: नौशाद अली को आज कौन नहीं जानता. वह हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार रह चुके हैं. उन्हें फिल्म उद्योग में शास्त्रीय संगीत के उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए जाना जाता है. वह सबसे महान और अग्रणी संगीत निर्देशकों में से एक थे. नौशाद ने एक से बढ़कर एक सुपरहिट गानों में संगीत दिया था. उनका जन्म 25 दिसंबर, 1919 को हुआ. वहीं 5 मई 2006 को उन्होंने अंतिम सांस ली. नौशाद ने अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद महज 67 फिल्मों में संगीत दिया था. हालांकि उन्होंने जिन-जिन गानों में म्यूजिक दिए, उन्हें जनता आज भी सुनना काफी ज्यादा पसंद करती हैं.
नौशाद अली को बचपन से संगीत में काफी रूचि थी. इसलिए तो महज 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चले गए थे. नौशाद ने पहली बार 1940 में ‘प्रेम नगर’ में संगीत दिया था. हालांकि कुछ कारणों की वजह से फिल्म रिलीज नहीं हो पाई. बाद में 1944 में ‘रतन’ आई, इसमें उनके म्यूजिक को सबने पसंद किया था. इसके बाद 1954 में ‘बैजू बावरा’ आई. इस फिल्म के लिए नौशाद को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था. उन्होंने छोटे पर्दे के लिए ‘द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘अकबर द ग्रेट’ जैसे धारावाहिक में भी संगीत दिया.
नौशाद अली की गिनती बेहतरीन संगीतकारों में होती है. लेकिन जब उनकी शादी हुई थी, तो किसी को पता नहीं था, कि वह संगीतकार हैं और म्यूजिक कंपोज करते हैं. मजेदार बात तो यह है कि उनकी शादी में उन्हीं के कंपोज किए गाने तक बजाये जा रहे थे. उस समय नौशाद के परिवार वालों को बताया गया था कि वह पेश से एक टेलर हैं, इसलिए खुद नौशाद भी नहीं कह पाये कि ये गाना उन्हीं का है. दरअसल उस वक्त संगीत को अच्छा नहीं माना जाता था.
Also Read: नौशाद ने महज 67 फिल्मों में दिया संगीत, बावजूद इसके क्यों है इतना बड़ा कद, जानें उनकी जीवन से जुड़ी बातें
बहुत कम लोगों को पता होगा कि नौशाद को पियानो बजाना काफी ज्यादा पसंद था. उन्होंने संगीतकार उस्ताद मुश्ताक हुसैन के ऑर्केस्ट्रा में पियानोवादक के रूप में काम भी किया. संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने उन्हें 60 रुपये प्रति माह के वेतन पर रंजीत स्टूडियोज में फिल्म कंचन के लिए अपने सहायक के रूप में लिया, जिसके लिए नौशाद बेहद आभारी रहे और कई इंटरव्यू में उन्होंने खेमचंद को अपना गुरु भी कहा था.