अमेज़न प्राइम वीडियो की लोकप्रिय वेब सीरीज पंचायत 2 ने दस्तक दे दी है. फुलेरा गांव की सरपंच मंजू देवी के किरदार में अभिनेत्री नीना गुप्ता एक बार फिर नज़र आ रही हैं. पंचायत 2 की सफलता को लेकर नीना गुप्ता किसी तरह के दबाव में नहीं है. वह साफतौर पर कहती हैं कि मुझे रिस्पॉस में कोई शक ही नहीं था क्योंकि एक साल से लोग हर दिन मुझसे पूछ रहे हैं कि अगला सीजन कब आएगा. मैं बहुत उत्साहित हूं. मुझे लगता है कि लोगों को यह सीजन भी पसंद ही आएगा. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
आपकी छवि एक शहरी महिला की रही है,मंजू देवी का किरदार आफर हुआ था तो क्या रिएक्शन था?
बहुत दिलचस्प किरदार है इसलिए खुशी हुई थी जब यह मुझे आफर हुआ था. रही बात इमेज की तो मैंने हर तरह के रोल किए हैं. इतना अरसा हो गया है एक्टिंग को. मैंने करियर में देशी,शहरी,अमीर,गरीब हर तरह के किरदार किए हैं. मीडिया इमेज बनाता है लेकिन मैं तो वो नहीं हूं. मैंने हर टाइप के रोल किए हैं. मैंने तो कबीर की मां का रोल भी किया है. एकदम गरीब जुलाहा की भूमिका वो तो कोई नहीं याद रखता है.
एक ही किरदार को फिर से निभाना कितना चुनौतीपूर्ण या उत्साहित करने वाला होता है क्योंकि एक्टर हमेशा अलग अलग किरदार करना चाहता है?
किरदार की ग्रोथ होती है इसमें, तो किरदार एक होते हुए भी बहुत कुछ अलग करने का मौका मिलता है. एक ही डायलॉग नहीं बोलती हूं. एक से सिचुएशन भी नहीं होते हैं. अलग अलग हालात होते हैं. वेब सीरीज एक लंबी फ़िल्म की तरह होती है. आधा पार्ट अभी हुआ. आधा पार्ट कुछ दिन के बाद होगा. उसमें एक्टर को कोई परेशान नहीं होती है. उसी की कंटिन्यूएशन होती है. उसी के बीच में दस और अलग किरदार मैं कर चुकी होती हूं. जिसमें अलग अलग ग्राफ होते हैं तो फिर से वही किरदार अलग सिचुएशन में करना उत्साहित करता है.
निजी जिंदगी में क्या कभी ग्रामीण परिवेश से क्या आपका जुड़ाव रहा है?
मैं गांव से नहीं हूं लेकिन गांव गयी हूं. वहां रही हूं. गांव के लोअर मिडिल क्लास लोगों के साथ उठना बैठना रहा है तो ऐसा नहीं है कि मैं मंजू देवी की दुनिया से अंजान थी.
सीरीज में मंजू देवी का किरदार प्रधान है लेकिन उसके पति प्रधानी करते हैं?
हमारे गांवों की यही हकीकत है. यह शो इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि यह हकीकत दिखा रहा है. मंजू देवी का किरदार बहुत ही संतृष्ट किरदार है. उसको प्रधानी के काम में ज़्यादा रुचि नहीं है. उसकी रुचि या कहें सारी चिंता इसी बात में है कि उसकी बेटी की शादी हो जाए. उसकी घर गृहस्थी अच्छे से चले. सबको समय पर रोटी मिले. हमारे देश की अधिकतर महिलाएं इसी में संतुष्ट हैं. वैसे मंजू देवी का किरदार पिछले सीजन के मुकाबले और ज़्यादा परिपक्व हुआ है. हर एपिसोड में लेखन टीम ने उसकी ग्रोथ की है.
आप मंजू देवी के किरदार से क्या जुड़ाव महसूस करती हैं?
(हंसते हुए)बिल्कुल नहीं ,मैं बहुत ज़्यादा महत्वकांक्षी हूं. बहुत कुछ करना चाहती हूं.
एनएसडी के दिनों के आपके दोस्त रहे रघुबीर यादव के साथ ऑफ स्क्रीन बॉन्डिंग शूटिंग के दौरान कैसी थी??
हम बहुत पुराने दोस्त हैं. सेट पर कुछ ना कुछ करते रहते थे. कभी गाना गाते थे. कभी वो बांसुरी बजाते थे. एक दिन उनका बेटा सेट पर आया था वो भी कुछ बजाने लगा था. हम मिले ना मिले लेकिन दोस्ती हमारी हमेशा बरकरार रही है.
कुछ साल पहले आपने सोशल मीडिया के ज़रिए फिल्मों में काम मांगा था क्या आप उसे अपना टर्निंग पॉइंट कहेंगी?
सोशल मीडिया पर काम मांगने से मुझे काम नहीं मिल रहा है. मुझे काम मिल रहा है बधाई हो की सफलता की वजह से. बधाई हो नहीं होती तो मैं अभी भी छोटे मोटे काम कर रही होती थी तो जो भी बदला है बधाई हो की वजह से बदला है.
अपनी सफलता को किस तरह से एन्जॉय करती हैं?
डर लगा रहता है कि ये सबकुछ खत्म ना हो जाए. चाहती हूं कि बस ये सब चलता रहे. अलग अलग तरह के रोल करने में मज़ा आ रहा है.
आप इन दिनों कई बड़े बैनर की फिल्मों का सीरीज का हिस्सा हैं क्या अपने संघर्ष को भी याद करती हैं?
बिल्कुल, अभी मैं किसी फिल्म को चुनते हुए स्ट्रांग किरदार देखती हूं. स्क्रिप्ट देखती हूं. इस फेज से पहले सारी जिंदगी सिर्फ पैसों के लिए काम किया है. ये कहूंगी तो गलत न होगा. कहां से बच्चा पाला है. वो भी अच्छे से उसको और खुद को रखा था. मैंने कितनी सारी ऐसी फिल्में की है. जो मैं चाहती थी कि भगवान ये कभी रिलीज ही न हो. शर्म आती थी कि भगवान मेरे परिचित लोग देखेंगे तो क्या बोलेंगे. एक बार मुझे याद है मैं एक फिल्म कर रही थी जिसमे घर की नौकरानी का मेरा रोल था और लीड रोल शबाना का था. मेरा शबाना के साथ एक सीन था. मैं कुछ पका रही थी. सीन के बाद शबाना ने मुझसे कहा कि तुम क्यों ये रोल कर रही हो. ऐसे रोल मत किया करो. उसके बाद तो मैं उस फिल्म के लिए भगवान से और ज्यादा प्रार्थना करने लगी और भगवान ने सुन ली और वह फिल्म पूरी बनी ही नहीं. वैसे मैंने टीवी में जीभर सशक्त किरदार निभाए हैं.
आपका सबसे पसंदीदा टीवी शो कौन सा था?
सांझ मुझे बहुत पसंद था. मैं उसकी प्रोड्यूसर,डायरेक्टर होने के साथ साथ एक्टर भी थी. कॉस्ट्यूम भी संभालती थी. वह शो के किरदार लोगों को अपने जैसे लगते थे एकदम रीयलिस्टिक सा इसलिए वह हिट थे. उस वक़्त टीवी के लेखन बहुत बढ़िया होता था क्योंकि क्वालिटी काम होता था. पंद्रह घंटे की शिफ्ट नहीं होती थी. आठ घंटे की शिफ्ट रहती थी. क्वालिटी सबसे महत्वपूर्ण था क्वांटिटी नहीं.
मौजूदा दौर में ये बहस शुरू हो गयी है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में इतना कंटेंट बन रहा है कि क़्वालिटी पर क्वांटिटी हावी हो गयी है,आपकी क्या सोच है?,
अभी तक तो मुझे ऐसा नहीं लग रहा है. आगे का मुझे पता नहीं है. देखिए ये प्लेटफॉर्म्स पैसा खर्च रहे हैं शोज को बनाने में अगर शोज नहीं चलेंगे तो ये भी तो देखेंगे कि अच्छा कंटेंट बनें ताकि चले क्योंकि आखिरकार ये है तो बिजनेस.
सोशल मीडिया पर आपके पोस्ट काफी पसंद किए जाते हैं?
दो दिन हो गए. सब डाल रहे हैं कुछ ना कुछ . मैं ही कुछ नहीं डाल रही हूं. मुझे भी डालना चाहिए. ये सोचकर मैं पोस्ट शेयर नहीं करती हूं बल्कि मुझे कुछ लगता है कि ये अच्छा है. ये शेयर करना चाहिए तो पोस्ट कर देती हूं.
आपने जिंदगी में अपने फैसलों की वजह से बहुत ही स्ट्रांग महिला की छवि बनायी है.इसका श्रेय किसको जाता है?
मेरी मां को इसका श्रेय था. वो गांधी के विचारों को बहुत मानती थी. खादी पहनती थी. मेरे नानाजी फ्रीडम फाइटर थे. मेरे मां कांग्रेस के लिए काम करती थी. हम भी जाते थे इलेक्शन टाइम में. वह बहुत ही आदर्शवादी थी. उस वजह से उनको जिंदगी में बहुत तकलीफ भी हुई लेकिन उन्होंने कभी सच्चई नहीं छोडी़. वह इमानदार नंबर वन थी. लोग अपने पैसे और ज्वेलरी उनके पास रखते थे. मेरे पिता बहुत ही प्रैक्टिकल इंसान थे तो मैंने अपने माता पिता दोनों से उनका बेस्ट लिया है. मैं इमानदार, आदर्शवादी होने के साथ साथ प्रैक्टिकल भी हूं सभी का अच्छा मिक्सर.
आपके आनेवाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं?
सूरज बड़जात्या की फ़िल्म ऊंचाई, विकास बहल की गुड बाय,अनुपम खेर के साथ शिव शास्त्री बालबोवा, एक फ़िल्म का नाम बा है. एक कुत्ते के साथ भी फ़िल्म की है. अभी तक उसका नाम तय नहीं हुआ है. कंवलजीत और मेरी जोड़ी अरसे बाद एक वेब सीरीज की एक कहानी में साथ दिखेंगे.