अभिनेत्री रतन राजपूत पिछले कुछ समय से अपने यूट्यूब ब्लॉग को लेकर सुर्खियों में हैं, जिनमे वह ना सिर्फ अपनी जिंदगी की छोटी – बड़ी चीज़ों को शेयर करती हैं, बल्कि गांवों की ज़िन्दगी की अहमियत और प्रकृति के संरक्षण को भी बताती हैं. वह प्रकृति को ही भगवान मानती हैं.इस विश्व पर्यावरण दिवस पर गांव और प्रकृति पर उनकी उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
प्यार प्रकृति के प्रति हमेशा से ही था, लेकिन एक पॉइंट आता है. जब आप पर्यावरण को लेकर जागरूक होते हैं. वो कोविड के समय आया. मैंने कोविड का पूरा वक़्त एक गांव में बिताया था. प्रकृति के बीच में रहकर उसकी खूबसूरती को ना सिर्फ सामने से महसूस किया, बल्कि ये भी समझ आया कि हम नेचर के साथ हमने क्या गलत किया है. जिसके बाद नेचर के प्रति के जिम्मेदारी का भी एहसास हुआ और लगा कि अपने ब्लॉग से ज़्यादा से ज़्यादा गांवों को जोड़ा जाया.
कोविड के बाद से मैंने गांवों को एक के बाद एक एक्सप्लोर करना शुरू किया. नेचर अब शहर और टाउन में बचा नहीं है. गांव में भी अर्बन लाइफ का धीरे – धीरे असर हो रहा है, जो गलत है. गांव गांव रहे उसी में सबकी भलाई है. यही वजह है कि मैं अपने चैनल पर ये वीडियो बनाने लगी. जिसमें मैं गांव को बचाने की बात कहने लगी. आप गांव को बचाते हैं, तो उसके साथ मिट्टी, पानी, पेड़ पौधे और जानवर सभी का संरक्षण जुड़ जाता है, क्योंकि गांव इनके मेल से ही बनता है. यही वजह है कि मैं अपने वीडियोज में बताती नहीं बल्कि दिखाती हूं कि गांव की ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है और हम इसमे क्या अपनी तरफ से जोड़ सकते हैं. गांव से जुड़ते हैं, तो वहां की प्रकृति बदले में हमें भी बहुत कुछ देती है.
प्रकृति अपने आप में आपको हील करती है. कई किताबों में ये लिखा है. हम आज़माते नहीं है. किताबों में पढ़ते हैं और फिर भूल जाते हैं. मैं अपनी अनुभव से कहूं तो मेरी कुछ समय से तबीयत ख़राब रह रही थी. ऑटो इम्यून डिस्आर्डर कुछ समय से यह बीमारी आम है. इससे मैं भी कुछ सालों से जूझ रही थी. मैंने प्रकृति के बीच रहकर खुद को ठीक किया. मेरा मन ठीक नहीं होता है, तो मैं पेड़ पौधे से भरे जगह पर चली जाती हूं, तो अच्छा महसूस करने लगती हूं. मेरा कनेक्शन बहुत ज़्यादा है.
मेरा कोई फिक्स नहीं है कि साल में दो बार जाउंगी, लेकिन हां मुझे चार्ज करने के लिए गांव की जिंदगी बहुत ज़रूरी है, अगर मैं कहूं कि मुझे एक वर्कशॉप की तरह गांव लगता है. एक हिलिंग सेंटर लगता है. एक चार्जिंग पॉइंट लगता है. यही वजह है कि अब मेरा लक्ष्य गांव में जमीन खरीदकर एक घर बनाना चाहूंगी. अभी नहीं है. प्रकृति चाहेगा, तो यह हो जाएगा. अभी तो मैं खानाबदोश की तरह किसी के भी खेत में घुसकर काम कर लेती हूं.
गांवों को एक्सप्लोर करते हुए मुझे मेरे बचपन के गांव आरा की याद आयी. वहां पिताजी के साथ सबसे अच्छा समय बिताया था, लेकिन जिंदगी की भागाभागी में वहां कभी जा ही नहीं पायी थी, जबकि पटना से आरा की दूरी बहुत कम है. मेरे पिताजी जो थे, वों सरकारी नौकरी में थे. जहां मेरा बचपन बीता वो सरकारी घर था. बहुत छोटी थी. मैं बचपन से ही थोड़ी अलग थी. पेड़ से मेरी दोस्ती सबसे पहले होती थी. आरा के घर का वह पाकड़ का पेड़ मेरा पहला मित्र है. पाकड़ का जो पेड़ है. मैं अक्सर उसी के नीचे पायी जाती थी. पत्तों के भीतर घुसी रहती थी. डांट भी बहुत खाती थी. घरवालों को डर लगता था कि कुछ काट ना लें और मैं झाड़ू से उसके पत्तों को जमा करती थी. मुझे वों बहुत पसंद था. मेरा वह पसंदीदा खेल था. बड़े होकर मुझे एहसास हुआ कि वह मेरा दोस्त था, जिसने मुझे बहुत कुछ सीखाया है. सच कहूं तो वों चीज शब्दों में नहीं बतायी जा सकती है. मैंने वहां बहुत खूबसूरत पल बिताएं हैं. कई बार बच्चे इमोशनल जब होते हैं. कुछ चीज ना मिलने पर या गुंडिया या फिर कोई और खिलौना टूट जाने पर उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे बैठ जाती थी और उससे बतिया लेती थी.
प्रकृति के प्रति योगदान की बात करुं, तो मेरे घर में बहुत सारी ग्रीनरी है. मैं बहुत पौधे लगाती हूं, लेकिन मुझे ये बात पता है कि नेचर को सिर्फ पेड़ लगाने से नहीं बचाया जा सकता है. पॉलिथिन के इस्तेमाल ना करने से भी ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. आबादी पर कण्ट्रोल करने की सबसे ज़्यादा जरूरत है क्योंकि स्थिति हमारे हाथ से निकल गयी है. मैं इस बात को गर्व से कह सकती हूं कि आबादी बढ़ाने में मेरा कोई योगदान नहीं होगा. आज के समय में जो कपल बेबी ना करने का फैसला करते हैं, वों नेचर में सबसे ज़्यादा योगदान देते हैं. वो चाहे गांव हो या शहर हो. मैं शादी और बच्चे ना करके कहीं ना कहीं अपनी तरफ से बैलेंस कर रही हूं, लेकिन लोग मुझे इसके लिए ट्रोल करते है. ट्रोल करने की जरूरत नहीं है कि अरे कब करेंगी शादी? बूढ़ी हो जाएगी, तो करेंगी क्या. अरे यार सोचा समझा है. हम जैसे लोगों को सम्मान नहीं, तो तानों की जगह थोड़ा प्यार ही दे दो. हमको सेल्फ सेंटरड नहीं होना होगा. हम अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं, लेकिन उस मां का क्या, जो इतने बच्चों को संभाले हुए हैं. हमें उसके लिए थोड़ा भार तो कम करना चाहिए कि हां मां हम तुम्हारे साथ हैं.
मैंने अपने आपको सोच समझकर ये ब्रेक दिया है. पापा के जाने के बाद कुछ करने का मन हो रहा था. सोच समझकर यह विराम दिया है. ये विराम पांच साल होने को है. निश्चित तौर पर अगले साल से मैं काम करना फिर से शुरू करूंगी.