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Pill Web Series के निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने बताया कि हर छह महीने में झारखंड चला ही जाता हूं..

pill web series के डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता ने इस इंटरव्यू में बताया कि सीरीज का थ्रिलर ही नहीं इमोशन और ड्रामा भी लोगों को पसंद आ रहा है.

pill web series इनदिनों काफी सराही जा रही हैं. इस वेब सीरीज से निर्देशक राजकुमार गुप्ता का नाम जुड़ा हैं. मूल रूप से झारखंड के हजारीबाग के रहने वाले राजकुमार गुप्ता इंडस्ट्री में किसी पहचान के मोहताज नहीं है.उनका  नाम नो वन किल्ड जेसिका, आमिर और रेड जैसी सफल फिल्मों के साथ – साथ नेशनल अवार्ड से भी जुड़ा हैं.उनकी इस वेब सीरीज,उसकी मेकिंग सहित तमाम पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश 


 आप रियलिस्टिक फ़िल्म मेकर माने जाते हैं ,पिल की कहानी कितनी रियल है ? 

रियलिस्टिक फ़िल्म मेकर बहुत ही जेनेरिक टर्म है . मेरी कोशिश होती है कि आसपास की चीजों में कहानी को पिरोते हुए दर्शकों को एंगेजिंग और एंटरटेनिंग तरीके से बताया जाए.इस सीरीज का अब तक का रिस्पांस बहुत ही अच्छा मिल रहा है .लोग इससे एंगेज भी हो रहे हैं और एंटरटेन भी  ड्रामा और इमोशन भी फील कर रहे हैं.


आपकी पिछली फ़िल्म इंडियाज़ मोस्ट वांटेड २०१९ को रिलीज़ हुई थी ,क्या वजह रही जो आपने इतना लंबा गैप लिया ?

ऐसा कुछ नहीं है कि मैंने सोच समझकर किया . दो साल तो कोविड आ गया था . (हंसते हुए )उस समय दिमाग में क्या बनेंगे से ज़्यादा क्या सर्वाइव कर पाएंगे. ये ज़्यादा चल रहा था .वैसे कोई भी क्रिएटिव इंसान नहीं चाहता है कि एक प्रोजेक्ट के बाद उसका दूसरा प्रोजेक्ट देरी से आए,लेकिन पिल का विषय बहुत सेंसिटिव था,तो उसको लिखने और बनाने में साढ़े तीन का वक़्त लगा .इसका विषय ऐसा था कि रिसर्च की ज़रूरत थी.  यह एक वेब सीरीज है . फिल्में दो घंटे की होती हैं और वेब सीरीज पांच घंटे का तो इसमें भी समय जाता है .( हंसते हुए) अब कोशिश करूंगा कि ज्यादा समय ना लूं ,लेकिन अच्छी चीजों के बनने में वक़्त लगता है.


 आमतौर पर एक सीरीज के कई सारे सीजन आते हैं, लेकिन आपने अपने इस सीरीज की कहानी 8 एपिसोड में ही खत्म कर दी है?

ओटीटी का यह चलन है कि  किसी सीरीज को हाई प्वाइंट देकर नए सीजन के लिए छोड़ दिया जाता है. मैं इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखता हूं क्योंकि मैं जिस तरह की फिल्में बनाता आया हूं. उसमें हर कहानी का एक कल्मिनेशन होता आया है.मैंनें पहले से ही तय कर लिया था कि जो सवाल है हम पहले भाग में कर रहे हैं.दूसरे भाग में उसके जवाब मिल जाए. हम दर्शकों को पूरा रोमांच देना चाहते हैं.आधा अधूरा कुछ भी करने का इरादा नहीं था.


 जैसा कि आपने कहा कि यह सीरीज बहुत ही सेंसिटिव मुद्दे पर है ऐसे में इस शो से प्रोड्यूसर या ओटीटी प्लेटफार्म जोड़ने में क्या दिक्क़ते भी पेश आयी?

 मैं बताना चाहूंगा कि इस सीरीज के निर्माता रॉनी स्क्रूवाला हैं.जिन्होंने मेरी फिल्म आमिर, नो वन किल्ड  जेसिका और घनचक्कर के भी निर्माता रह चुके हैं. हम अक्सर प्रोजेक्ट्स के डिस्कशन के लिए मिलते रहते हैं. ऐसे ही एक दिन इस सीरीज की मूल कहानी का आईडिया उन्होंने मुझसे डिस्कस किया. मैं भी उस  वक़्त फार्मा पर बहुत कुछ पढ़ रहा था. मुझे भी अपील कर गया.उसके बाद मैंने इसे डेवलप किया.जैसे ही जिओ सिनेमा ने हमारा कांसेप्ट सुना. उनको बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि हम इससे जुड़ेंगे.कहानी को लॉजिकल अंत तक लेकर जाएंगे.उन्होंने कहा कि यह बहुत ही प्रेरणादायक कहानी है. इसे कहा जाना चाहिए.हमारे लिए इस तरह की जर्नी रही है. जो अच्छी मेडिसिन्स बनाती हैं.उनके खिलाफ हमारी फिल्म नहीं है.काउंटर फेक मेडिसिन, सब स्टैंडर्ड मेडिसिन जो फार्मा कंपनी बनाती हैं,हमारी सीरीज उनके प्रति लोगों को जागरूक करती है.

इस सीरीज के लिए रितेश देशमुख आपकी पहली पसंद थे? 

रितेश एक फेबुलस एक्टर है. हमें  लगा था कि उनके साथ इस सब्जेक्ट को एक्सप्लोर करने से ये विषय और खास बन जाएगा. रितेश ने सिर्फ कॉमेडी नहीं की है. मराठी फिल्मों में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है. उन्हें भी स्क्रिप्ट पढ़कर लगा कि हम इसमें साथ में मिलकर अच्छा कर सकते हैं.

इस सीरीज से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती क्या थी ?

मेरी हमेशा से यह कोशिश रहती है कि कहानी जहां पर स्थापित है.मैं वहीं पर जाकर रियल लोकेशन पर शूटिंग करुं. सभी जानते हैं की रियल लोकेशन पर शूटिंग करना आसान नहीं होता है. बहुत तरह की दिक्कतें होती हैं. दिल्ली और चंडीगढ़ के रियल लोकेशन्स पर हमने शूटिंग की है.चूंकि  कहानी इतनी ज्यादा प्रेरणादायक थी कि हमने हर  दिक्कत को पार करके सीरीज को बनाया.

यह आपकी पहली वेब सीरीज है, फिल्मों से अलग ये दुनिया कितनी है ? 

इसका ग्रामर अलग होता है. इसकी पेसिंग भी अलग होती है. चूंकि यह मेरी पहली वेब सीरीज थी, तो मेरे लिए भी एक तरह से सीखने वाला प्रोसेस है.पांच घंटे कहानी को कहने के लिए होते हैं, तो आप किरदारों के बैकग्राउंड में जा सकते हैं.हालांकि पांच घंटे दर्शकों को एंगेज करके रखना आसान नहीं होता है.

आपके लिए संघर्ष अब कितना कम हुआ है? 

मुझे लगता है कि संघर्ष कभी खत्म नहीं होना चाहिए. संघर्ष रहता है इसलिए आप अलग-अलग विषय तलाशते .और उसे अलग करने की आप में भूख रहती है. जब करियर शुरू किया था तब संघर्ष था , फिर बीच में भी संघर्ष का दौर आया.काम लगातार मिलता रहा है.इंडिया में जब ओट आया और उसे वक्त से अब तक मुझे कई सारी सीरीज ऑफर हुई है. इस सीरीज के सब्जेक्ट से पहले तक मुझे किसी ने अपील नहीं किया था.

घनचक्कर की असफलता के बाद आपने थ्रिलर जॉनर में ही खुद को सीमित कर लिया ?

अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बन रहा हूं,लेकिन अगर आप मेरी फिल्मोग्राफी देखेंगी, तो मैंने हर जॉनर के साथ एक्सपेरिमेंट किया है.मेरी फिल्म आमिर पूरी तरह से थ्रिलर फ़िल्म थी. जेसिका थ्रिलर ड्रामा थी.रेड में तो थ्रिलर,ह्यूमर और ड्रामा सबकुछ था. इस सीरीज में आपको स्लाइस ऑफ़ लाइफ और ड्रामा भी देखने को मिलेगा. 

खबरें हैं कि आप सलमान ख़ान के साथ भी एक प्रोजेक्ट बना रहे हैं ?

मेरी अगली फ़िल्म अजय देवगन के साथ रेड 2 रहेगी.रेड के अलावा जो भी चीज़ें, जब होंगी आपको पता चल जाएंगी. फिलहाल मैं इतना ही कह सकता हूं.


झारखंड से कितना जुड़ाव अब भी रख पाते हैं ?

झारखंड मेरा घर है. मेरी जड़ें वहीँ से हैं, तो जुड़ाव रहना लाजमी है. मेरा भाई और मेरी मां हजारीबाग में रहते हैं. बहुत सारे रिश्तेदार और दोस्त रांची में रहते हैं.ये कनेक्शन इतने सालों में भी कम नहीं हुआ है.आप इस बात से समझ सकती हैं कि हर छह महीने पर वहां जाता ही हूं. दोनों ही जगह मेरा घर है,तो हजारीबाग भी जाता हूं और रांची भी. वहां का लोकल फ़ूड भी मैं बहुत एन्जॉय करता हूं.

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