मशहूर अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने टीवी सीरीयल्स को लेकर खुलकर बात की है. उनका कहना है कि ऐसा लगता है कि 2000 के दशक की शुरुआत में भारतीय टेलीविजन पर ‘सास-बहू’ शो का आना प्रगतिशील सामग्री को कम करने के लिए एक ‘‘नियोजित” कदम की तरह था. अभिनेत्री ने कहा कि 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में टेलीविजन का युग असामान्य महिला पात्रों से भरा हुआ था, लेकिन यह सब संयुक्त परिवारों की पृष्ठभूमि में बनाए गए धारावाहिकों से बर्बाद हो गया, जो ज्यादातर बालाजी टेलीफिल्म्स द्वारा निर्मित हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने टेलीविजन पर शुरुआत की और काम करना सीख रहे थे, उस समय के शो में असामान्य महिला पात्र हुआ करते थे. वे बहुत अधिक प्रगतिशील थे. बालाजी और उनके ‘सास-बहू’ शो के आने से यह सब खत्म हो गया.” ‘इधर-उधर’, ‘तारा’ जैसे शो में अभिनय कर चुकीं शाह ने कहा, ‘‘मैंने हमेशा महसूस किया कि यह सब योजनाबद्ध था. यह पहले से तय था कि वे प्रगतिशील तत्वों को कम करना चाहते हैं और उनकी जगह ‘सास-बहू’ शो लाए जाएंगे.”
65 वर्षीया अभिनेत्री ने रविवार शाम यहां बीकानेर हाउस में राजेंद्र यादव स्मृति समारोह में भारतीय सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर एक सत्र को संबोधित किया. रत्ना शाह ने कहा कि उनके जैसे अभिनेता जो इस तरह के शो से मेल नहीं खा सके, उन्होंने ‘‘रातोंरात” टेलीविजन पर काम खो दिया. अभिनेत्री ने कहा, ‘‘पहले हमारे पास ‘उड़ान’ और ‘शांति’ जैसे शो थे और फिर अचानक ‘सास-बहू’ (धारावाहिक) के शो आने लगे. हम सभी को काम मिलना बंद हो गया क्योंकि हम ‘सास-बहू’ के शो में फिट नहीं बैठ रहे थे.”
उन्होंने कहा, ‘‘शायद मेरी बात साजिश के जैसी लग रही हो, लेकिन मुझे यह सब एक नियोजित कदम की तरह लगा. इसने मुझे बहुत झकझोर कर रख दिया.” सिनेमा और थिएटर कलाकार के रूप में अपने काम के लिए समान रूप से जानी जाने वाली अभिनेत्री ने कहा कि उन्हें कभी टेलीविजन उद्योग से बहुत उम्मीदें थीं.
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उन्होंने कहा, लेकिन सब कुछ खत्म नहीं हुआ है क्योंकि कुछ ऐसे शो चल रहे हैं जो प्रगतिशील महिलाओं को छोटे पर्दे पर पेश कर रहे हैं. उन्होंने स्टार प्लस की ‘अनुपमा’ की सराहना की और ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ की अपनी सह-कलाकार रूपाली गांगुली के धारावाहिक की तुलना बासु चटर्जी के 1985 के शो ‘रजनी’ से की, जिसमें प्रिया तेंदुलकर ने अभिनय किया था.