Exclusive: मौजूदा दौर के ऑडिशन्स में मुझे बहुत रिजेक्शन्स मिलते हैं, जानिए ऐसा क्यों कहा रेणुका शहाणे ने
फिल्म गोविंदा नाम मेरा ओटीटी पर रिलीज हो गई है. फिल्म में विक्की कौशल और कियारा आडवाणी है. इसमें एक्ट्रेस रेणुका शहाणे भी अहम किरदार निभा रही है. एक्ट्रेस ने अपने रोल के बारे में खुलकर बात की.
डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर इन दिनों फिल्म गोविंदा नाम मेरा स्ट्रीम कर रही है. इस फिल्म में अभिनेत्री रेणुका शहाणे एक अलग ही तरह के किरदार में नजर आ रही हैं. रेणुका साफतौर पर कहती हैं कि गोविंदा नाम मेरा में जो मेरा किरदार है, वैसा मुझे आज तक ऑफर नहीं हुआ. महिलाओं को बहुत कम कॉमेडी ऑफर होती है. ये ऐसी चीज है, जिसे मैं करना बहुत पसंद करती हूं, लेकिन करने का मौका बहुत कम मिलता है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
इस फ़िल्म से धर्मा प्रोडक्शन का नाम जुड़ा है, इंडस्ट्री में इतने साल बीत जाने के बाद क्या बैनर का बड़ा नाम मायने रखता है?
मायने तो रखता है. हर कोई उनके उनके साथ काम करना चाहता है. धर्मा प्रोडक्शन इंडस्ट्री का बेस्ट और बड़े प्रोडक्शन हाउस में से है. नाम बड़े और दर्शन छोटे वाला मामला इनके साथ नहीं है. सेट का माहौल ऐसा होता है. सभी एक्टर्स सम्मान के साथ काम करते हैं. आपको वो सभी चीजें मुहैया हो जाती है, जो आपके लिए जरूरी है. आपको मांगने से पहले सबकुछ मिल जाता है आप बिल्कुल टेंशन फ्री होकर सेट पर जाते हो और अपना काम करते हो.आपको अपना 100 प्रतिशत देना होता है, क्योंकि प्रोडक्शन हाउस अपना 100 प्रतिशत दे चुका होता है.
क्या कभी ऐसा भी होता है कि जब इस तरह के बड़े बैनर फ़िल्में ऑफर करते है, तो किरदार के साथ थोड़ा समझौता करना भी सही लगता है?
अपनी बात करुं तो मेरे लिए मेरा किरदार सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है. बैनर कितना भी अच्छा हो, अगर किरदार अच्छा नहीं, तो क्या मायने है. बड़े बैनर की सबसे अच्छी बात ये होती है कि आपको इस बारे में पूरी तरह से भरोसा होता है कि आपका यह काम सभी तक पहुंचेगा, क्योंकि उनकी मार्केटिंग बहुत अच्छी होती है.एक्टर के तौर पर आपकी यही ख्वाहिश रहती है कि आपका काम ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. जो लोग कहते हैं कि वह अपने लिए एक्टिंग करते हैं, वो गलत बोलते हैं. फिर तो आप आईने के सामने एक्टिंग करके खुश रहो. फिल्म में काम करने की क्या जरूरत है.
फिल्म के निर्देशक शशांक का कहना है कि फिल्म का हर किरदार अपने आप में स्टैंडअप कॉमेडियन है?
(हंसते हुए )मैं खुद के बारे में ये बात नहीं कह सकती हूं, क्योंकि मैं फिल्म में व्हीलचेयर पर हूं. वैसे ये सच है. शशांक सर ने ही इसको सोचा है, लिखा है. वह जानते हैं कि उनके किरदार कैसे हैं. सभी बहुत ही अतरंगी किस्म के लोग हैं. एक भी ऐसा किरदार नहीं है, जिसको देखकर आपको लगे नहीं कि वह अतरंगी नहीं है.
जैसा कि आपने कहा कि इस तरह का किरदार आपने पहले नहीं किया था, क्या सेट पर आप पहले दिन नर्वस थी?
निश्चिततौर पर थी, जब तक आपको मौका नहीं मिलता है, तब तक आप अपने आपको भी साबित नहीं कर सकते हैं कि आप ठीक -ठाक हो कॉमेडी में, क्योंकि कॉमेडी करना आसान बात नहीं है. लोगों को रुलाना आसान है. मौजूदा दौर में कॉमेडी और मुश्किल हो गयी है, क्योंकि आज हम स्टैंडअप कॉमेडियन की कॉमेडी देखते है.कपिल शर्मा जैसे शोज है, जो हर हफ्ते लोगों को हंसा रहे है.कॉमेडी में आप इतने सारे शेड्स देख चुके हैं, उसमें एक जगह बनाने में नर्वसनेस तो होती ही है.एक एक्टर के तौर पर हम हमेशा सोचते हैं कि हमारा काम शटल होना चाहिए, तो यहां पर शटल होने की, जो उम्मीद थी वो पूरी तरह से मिट गयी. एक इंसान या एक एक्टर के तौर पर जो आप खुद पर अंकुश लगाते हैं, तो उसको तोड़कर मुझे ये किरदार करना था, तो इसलिए और मजा आया. अपनी ज़िन्दगी में जो मैं नहीं हूं. वो करने का अपना मजा है.
निजी जिन्दगी में आपके चेहरे पर हंसी कौन लाता है?
मेरे घर में सबकी कॉमेडी बहुत अच्छी है. मेरे बच्चें, मेरे पति हैं. आपको उनको देखकर लगेगा कि एकदम धीर -गंभीर से हैं, लेकिन हैं वो बहुत फनी. हम खूब एक दूसरे को हंसाते हैं, हंसते हैं. मेरे ससुराल में ऐसे -ऐसे लोग हैं. जो कुछ ऐसी लाइनें कह जाते हैं या मिमिक्री करते हुए ऐसी कहानियां बताते हैं कि हम हंसकर लोट -पोट हो जाते हैं. मेरे घर पर पूरा मनोरंजन है. स्क्रीन पर बात करूं तो मुझे अंगूर जैसी कॉमेडी बहुत अच्छी लगती थी. संजीव कुमार और देवें वर्मा की जबरदस्त कॉमेडी टाइमिंग थी या शतरंज के खिलाड़ी ही देख लीजिए. उसमें अमजद खान और संजीव कुमार की लाजवाब कॉमेडी थी. मुझे गुलजार जी की फिल्मों की कॉमेडी भी खूब पसंद है. ऋषिकेश दा की चुपके -चुपके, किशोर दा का हाफ टिकट सहित और सारा काम मेरा फेवरेट है. मैं बार -बार देखती हूं और बहुत हंसती हूं. मुझे कॉमेडी फ़िल्में बहुत पसंद हैं.
कई बार कॉमेडी को लेकर यह बातें सुनने को मिलती है आजकल की कॉमेडी में लोगों का मजाक ज्यादा बनाया जाता है?
ये बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है. लोगों को पसंद नहीं आता है, अगर उनके मोटापे पर बार -बार हंसा जाए, लेकिन ये परम्परा रही है. स्लैपस्टिक कॉमेडी में आप ये करते ही हैं. हर किसी पर तंज कसा जाता है. इसको नहीं छूना है. उसको नहीं छूना है.आजकल हम बहुत ज्यादा संवेदनशील हैं.ये पॉलिटिकली करेक्ट नहीं, तो ये सोशली नहीं. मुझे लगता है कि आज के दौर में कॉमेडी करना और मुश्किल हो गया है.आपको इन सारी बातों को ध्यान में रखकर लोगों को हंसाना है. ये बहुत भारी भरकम वाली जिम्मेदारी है.
विक्की, भूमि और कियारा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
अरे बहुत मजा आया. सभी इतने अच्छे बच्चें हैं. मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि आजकल कोई इक्का दुक्का काम करता है और उनको लगता है कि भाई हम बहुत बड़ी चीज हो गए. ये तीनों आज के दौर के सुपरस्टार्स हैं, लेकिन फिर भी उनका जो सेट पर व्यवहार था या अपने किरदार में जान लगाने की कोशिश और मेहनत थी. वो बिल्कुल ऐसा कहीं पर भी लगा नहीं कि उनके सिर पर कोई हवा है कि हम तीस मार खां हैं. मुझे मेरे थिएटर के दिन याद आ गए. घुलमिलकर जैसे सेट पर बात करते थे. लाइनें याद करते थे. हंसी मजाक कर कुछ क्रिएट करते थे. वैसा ही माहौल हमारे सेट का था. बहुत बड़ा श्रेय इन तीनों को जाता है. स्टार जब सेट पर होते हैं, तो उनका बर्ताव ये तय करता है कि सेट किस तरह से हो. ये तो हर कोई जानता है कि पदक्रम तो होती ही है. आप उसको अच्छा कहो या नहीं, लेकिन वो है जैसे उनका बर्ताव होता है. वैसे सबका हो जाता है. ये तीनों एक्टर बहुत ही अनुशासन के साथ जान लगाकर काम करने वाले हैं.तीनों बहुत ही अच्छे हैं. सबसे मेरे ज्यादा सीन विक्की के साथ हैं और ऐसा लगा ही नहीं कि मैं उससे पहली बार मिल रही हूँ.उसके साथ काम करने में बहुत मजा आया.
यह फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई है, ओटीटी को भविष्य बताया जा रहा है?
थिएटर के अनुभव की जगह कोई नहीं ले सकता है.घर पर आप एक बार बैठकर आप फिल्म नहीं देखते हैं. कभी कुछ कुछ करते रहते हैं. यहां आप पूरा फोकस करते हैं. थिएटर में एक साथ होकर भी आप फिल्म के साथ अकेले होते हैं. आपका पूरा ध्यान सिर्फ फिल्म पर होता है.
मैंने कहीं पढ़ा है कि आप मौजूदा दौर के ऑडिशन प्रोसेस में सबसे ज्यादा रिजेक्ट होती है?
हां ये कई बार होता है. मैं चाहती हूं कि मेरे किरदार को मैं निर्देशक के जरिए समझूं . ऐसा आजकल होता नहीं है. कास्टिंग डायरेक्टर्स के असिस्टेंट आते हैं, वो क्यूज दे रहे होते हैं. एक प्रकार से वो आपको समझाते हैं. मुझे वो प्रोसेस समझता नहीं है. जिस वजह से मैं ऑडिशन प्रोसेस को क्रैक नहीं कर पाती हूं. मुझे लगता है कि मैं अभिनय की अपनी पूरी क्षमता के साथ ऑडिशन नहीं दे पाती हूं. वैसे मैं इन रिजेक्शंस को सीरियसली नहीं लेती हूं, कि सोचने लगूं की मैं अच्छी एक्टर नहीं हूं,क्योंकि मैं खुद भी निर्देशिका हूं. कई बार मुझे अपने किसी किरदार के लिए दूसरा कोई एक्टर ज्यादा पसंद आ जाता है, इसका मतलब ये नहीं कि पहले वाले एक्टर को एक्टिंग नहीं आती है बात सिर्फ इतनी है कि वो एक्टर उस किरदार के ज्यादा करीब नहीं है. मैं बताना चाहूंगी कि गोविंदा मेरा नाम के लिए मुझे सामने से कॉल आया था. शशांक चाहते थे कि मैं ये किरदार करूं.
बतौर निर्देशिका आपका अगला प्रोजेक्ट क्या है और वो किस माध्यम के लिए है?
मैं लिख रही हूं. उम्मीद है कि अगले साल तक आए. हम कहानियां तो थिएटर को सोचकर ही बनाते है, लेकिन फिर रिलीज के वक़्त ही सही से बता पाउंगी. वैसे मैंने त्रिभंगा को ओटीटी के लिए ही शुरूआत से बनाया था.
एक्टर के तौर पर आनेवाले प्रोजेक्ट्स कौन से है?
एक मराठी वेब सीरीज है और एक हिंदी फीचर फिल्म. दोनों ही अगले साल आएंगे.