ऋत्विक घटक जयंती: नारीवाद का सूक्ष्म चित्रण करने वाले महान फिल्मकार
ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर 1925 में अविभाविजत भारत के ढाका में हुआ था. उन्होंने ऋत्विक के बगलार बंगा दर्शन, रोंगर गोलम को पुनर्स्थापित किया है और रामकिंकर पर अपनी अधूरी वृत्तचित्र को पूरा किया है.
सिनेमा की दुनिया में कई ऐसे दिग्गज हुए हैं जिन्होंने इंडस्ट्री में एक अमिट छाप छोड़ी है. इन्हीं में से एक नाम है ऋत्विक घटक. आज उनकी जयंती है. प्रमुख समकालीन बंगाली फिल्म निर्माताओं सत्यजीत रे, तपन सिन्हा और मृणाल सेन के साथ उन्हें भी याद किया जाता है. उन्हें खासतौर पर सामाजिक वास्तविकता, विभाजन और नारीवाद के सूक्ष्म चित्रण के लिए जाना जाता है. उन्हें फिल्म जुक्ति तक्को आर गप्पो (Jukti Takko Aar Gappo) के लिए 1974 में सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था. भारत सरकार ने उन्हें 1970 में कला के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया.
कई नाटकों का लेखन-निर्देशन किया
ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर 1925 में अविभाविजत भारत के ढाका में हुआ था. उन्होंने 1948 में अपना पहला नाटक कालो सायार (द डार्क लेक) लिखा और ऐतिहासिक नाटक नाबन्ना के पुनरुद्धार में हिस्सा लिया. 1951 में वे इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (IPTA) के साथ जुड़े. उन्होंने नाटकों का लेखन, निर्देशन किया और साथ ही उनमें अभिनय भी किया.
ऋत्विक घटक की चर्चित फिल्में
ऋत्विक घटक ने निमाई घोष की चिन्नामूल (1950) से अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में फिल्म उद्योग में प्रवेश किया. चिन्नामुल के बाद घटक की पहली पूर्ण फिल्म नागरिक (1952) बनी लेकिन इस रिलीज होने में काफी समय लग गया. दोनों ही फिल्में भारतीय सिनेमा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई. अजांत्रिक (1958) घटक की पहली व्यावसायिक रिलीज थी जो एक विज्ञान आधारित विषय वाली कॉमेडी-ड्रामा फिल्म थी. वहीं एक पटकथा लेखक के तौर पर फिल्म मधुमती (1958) उनकी सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता थी.
नौ निर्देशकों के लिए लिखीं 17 फीचर फिल्में
गेट बंगाल की रिपोर्ट के अनुसार, ऋत्विक घटक ने नौ निर्देशकों के लिए 17 फीचर फिल्मों की भी पटकथा लिखी थी. जिनमें से नौ रिलीज़ हुई और आठ छोड़ दी गईं. उन्होंने छह फीचर फिल्मों में भी छोटी भूमिकाएं निभाईं, जिनमें से तीन उनकी खुद की थी – सुवर्णरेखा, तितास एकती नादिर नाम और जुक्ति तक्को आर गोप्पो शामिल हैं.
नागरिक को रिलीज होने में लग गये 39 साल
एक असाधारण कलाकार और एक मार्क्सवादी ऋत्विक घटक केवल 51 वर्ष के थे जब 6 फरवरी, 1976 को कलकत्ता में उनकी मृत्यु हो गई. अगर उनकी पहली फीचर फिल्म नागरिक (1952-53) बनने के तुरंत बाद रिलीज़ हुई होती, तो भारतीय इतिहास का इतिहास सिनेमा अलग तरह से लिखा गया हो सकता था. 1955 में पाथेर पांचाली ने आकर इतिहास रच दिया, लेकिन ऋत्विक अपने पूरे जीवनकाल में नागरिक को रिलीज नहीं कर पाए. इसे 1982 में बनाए जाने के 30 साल बाद ही भारतीय दर्शकों के लिए उपलब्ध कराया गया था.