Rocket Boys Review: बहुत ऊंची उड़ान है इस रॉकेट बॉयज की, यहां पढ़ें रिव्यू

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर हम सभी भारतीय गर्व करते हैं . परमाणु ऊर्जा कार्यकम के जनको डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा और डॉक्टर विक्रम साराभाई के नाम से हर भारतीय परिचित है लेकिन इस सपने के पूरा करने के पीछे के उनके संघर्ष,जद्दोजहद और रुकावटों से अंजान है.

By कोरी | February 4, 2022 1:10 PM
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Rocket Boys Review

वेब सीरीज रॉकेट बॉयज

निर्देशक- अभय पन्नू

कलाकार- जिम सरभ, इश्वाक सिंह,रेसिना ,सबा, नमित, रजित कपूर और अन्य

रेटिंग -साढ़े तीन

भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर हम सभी भारतीय गर्व करते हैं . परमाणु ऊर्जा कार्यकम के जनको डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा और डॉक्टर विक्रम साराभाई के नाम से हर भारतीय परिचित है लेकिन इस सपने के पूरा करने के पीछे के उनके संघर्ष,जद्दोजहद और रुकावटों से अंजान है. सोनी लिव की 8 कड़ियों वाली यह वेब सीरीज इसी कहानी को कहती है. इसके साथ ही उनकी निजी जिंदगी के उथल पुथल को भी यह सामने लेकर आती है और सबसे महत्वपूर्ण यह कहानी इन दोनों महान वैज्ञानिकों की कहानी भर नहीं है बल्कि यह कमज़ोर स्वन्त्रत भारत के एक सशक्त भारत बनने की भी कहानी है.जिसे 1940 से 1963 इन दशकों के बीच के अलग अलग घटनाक्रम में दिखाया गया है.

सीरीज की शुरुआत चीन के हाथों मिली भारत की शिकस्त और उसके बाद परमाणु बम बनाने की होमी भाभा (जिम सरभ) के बात से शुरू होती है जिसका विरोध विक्रम साराभाई ( इश्वाक सिंह)करते हैं क्योंकि वे हिरोशिमा नागासाकी वाला दर्द मानवता के साथ फिर से होते नहीं देखना चाहते हैं.कहानी फिर फ्लैशबैक में चली जाती है.जिसके बाद इनदोनो महान वैज्ञानिकों की कहानी को पर्दे पर शुरू हो जाती है.

सीरीज का पहला एपिसोड देखने के बाद ही आपको इनसे से प्यार हो जाएगा और हर एपिसोड के बाद कहानी से और जुड़ाव बनता चला जाएगा. साइंस की बात करते हुए भी यह शो बोझिल नहीं लगता है बल्कि बहुत सिंपल तरीके से हर बात को असल जिंदगी के अनुभवों के साथ जोड़कर बताया गया है.जो इसे खास बनाता है. सरसरी तौर पर ही सही इस कहानी का हिस्सा एपीजे अब्दुल कलाम और सीवी रमन भी हैं.

अभिनय की बात करे तो अभिनय इस सीरीज की एक अहम यूएसपी है. जिम सरभ और इश्वाक सिंह ने अपने अपने किरदारों में कमाल कर गए हैं.यह कहना गलत ना होगा.वे हर फ्रेम में अपने किरदार को बखूबी जीते नज़र आते हैं.

रेसिना क्रेसेंडा और सबा आज़ाद ने अपने अभिनय से अपनी काबिलियत का बखूबी परिचय करवाया है.देब्यन्दु भट्टाचार्य का काम अच्छा है तो रजित कपूर,नमित दास सहित बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ बखूबी न्याय किया है. फ़िल्म का एक अहम कलाकार इसकी सिनेमेटोग्राफी भी है. जिसकी तारीफ करनी होगी. 1930 से 1963 तक के दशक को पर्दे पर जीवंत करती यह सीरीज हर दृश्य में उसी दौर को बखूबी जीता नज़र आया है. जो कहानी को मजबूती देता है.

सीरीज की खामियों की बात करें तो

सीरीज में पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू के किरदार को जिस तरह से कमज़ोर दिखाया गया है वो थोड़ा अखरता ज़रूर है. क्या ऐसा जानबूझकर किया गया है .यह सवाल उठता है. इसके अलावा सीरीज के बहुत सारे संवाद अंग्रेज़ी में है. जो सभी प्रकार के दर्शक वर्ग को शायद ही इस सीरीज से जोड़ पाए.जिस तरह का काम इस सीरीज के हर पहलू पर किया है.उस लिहाज से संगीत पक्ष थोड़ा कमज़ोर रह गया है लेकिन इन खामियों के बावजूद यह सीरीज बहुत खास है. जिसे हर किसी को देखनी चाहिए.

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