rupali ganguly new serial anupamaa : अभिनेत्री रुपाली गांगुली सात साल के अंतराल के बाद 13 जुलाई से प्रसारित होने वाले स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ में शीर्षक भूमिका निभाती नजर आएंगी. कोविड 19 जैसे मुश्किल हालात में रुपाली इस सीरियल की शूटिंग का अनुभव बता रही हैं. वह कहती हैं कि सबसे मुश्किल पहलू यह है कि अब वह अपने सात साल के बेटे को पहले की तरह प्यार नहीं कर पाएंगी. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…
मौजूदा जो हालात हैं उसमें शूटिंग को लेकर आप कितनी नर्वस थी क्योंकि आप सात साल के बच्चे की मां भी हैं ?
सच कहूं तो शूटिंग पर जाना है. रात को उत्साह में सोयी नहीं हूं. 10 मिनट के लिए भी नहीं. एक डर भी था. अपने बेटे को घर पर छोड़कर आने का. ये बात पता थी कि अब आप उसको पप्पियाँ झपियाँ जैसे पहले करते थे.वैसे नहीं कर पाऊंगी. दुनिया के और सभी काम में आप मास्क या पीपीई किट पहनकर कर सकते हैं लेकिन हम एक्टर्स के लिए वो सहूलियत नहीं है. डर है और रहेगा ही.यही वजह है कि मैंने तय किया है कि मैं अब अपने बेटे को ना गले लगाउंगी ना उसको चूमुंगी.खुद को उससे दूर ही रखूंगी.
लॉकडाउन के बाद शूटिंग का अनुभव कैसा रहा ?
ऐसा लगा किसी ने पॉज बटन दबा दिया हो और फिर से प्ले बटन दबा दिया हो. मैंने शूटिंग के वक़्त मास्क नहीं पहना तो एक अजीब सी फीलिंग आ रही है. तीन महीने में मास्क की आदत हो गयी थी. वो लगता है ना जैसे आप टाइट सी सलवार सूट बिना दुप्पटे के पहनकर चले जाते हो.वैसी वाली फीलिंग्स है जैसे कुछ पहना नहीं है.सोचा नहीं था कि मास्क की इतनी आदत पड़ जाएगी.यहां सेट पर मैक्सिमम तैयारियां हो रखी हैं.जो एक प्रोड्यूसर कर सकता है.उन्होंने वो सारी तैयारियां कर रखी हैं.थर्मल चेकिंग से सेनिटाइज तक।सेट पर थोड़े थोड़े अंतराल पर हमको काढ़ा दिया जाता है।गरम पानी का काउंटर भी है.सबकी पर्सनल चेयर है.
अनुपमा में आपकी शीर्षक भूमिका है क्या यही वजह थी जो आपने इस शो को हां कहा ?
सात साल में एक कमाल की ज़िंदगी हो जाती है.आप घर,गृहस्थी और बच्चे में इतना बिजी हो जाते हैं कि आपको वापस काम पर आने के लिए इंसेंटिव चाहिए होता है. मैं उन लकी लोगों में से हूं जिन्हें घर चलाने के लिए काम करने की ज़रूरत नहीं होती है.जो लोग डिलीवरी के तुरंत बाद काम पर आते हैं.मैं उन्हें कहीं से भी कमतर नहीं बता रही हूं.हां मुझे लक्जरी मिली कि मैं अपने मदरहुड को एन्जॉय करूं.हां एक महीने मैंने साराभाई की शूट की थी.उसमें मुझे आटे दाल का भाव समझ आ गया कि यार मुझसे नहीं हो पाएगा.घर से निकलना।बच्चे को किसी और पर छोड़ देना चाहे वह कितने भी अच्छे हो.मजबूरी में एक बार आप कर भी लो लेकिन शौकिया तौर तो बिल्कुल नहीं. अनुपमा का रोल इतना अच्छा था कि मैं मना ही नहीं कर पायी।बेटा सात साल का भी हो गया था.
आपके परिवार का कितना सपोर्ट है ?
डेली सोप है.बहुत सारा काम होगा इसको लेकर दुविधा में थी. मेरे पति ने मुझे सपोर्ट किया.मेरी सास 88 साल की है. बेटा 7 साल का है. कैसे सबको छोड़कर शूट पर जाऊं.उन्होंने कहा कि तुम जाओ शूट पर.मैं मैनेज करूँगा। (हंसते हुए)बोल तो दिया है देखते हैं कैसे करते हैं वो.
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‘अनुपमा’ एक मां और एक महिला की अनदेखी की कहानी है आप निजी ज़िन्दगी में इससे सहमत हैं ?
हां,हम सभी अपनी माँ को टेकेन फ़ॉर ग्रांटेड लेते हैं.हम सभी की ज़िंदगी हमारे मां के इर्द गिर्द ही घूमती है.कितने भी बड़े हो जाए चोट लगती है तो सबसे पहले मां ही बोलते हैं. सभी अपनी मां से बहुत प्यार करते हैं लेकिन ज़िन्दगी की भागदौड़ में हम भूल जाते हैं उनको जताना.कई बार क्या होता है कि हम अपने काम में बिजी रहते हैं पति,पत्नी,प्रेमी,प्रेमिका का फ़ोन आए तो हम बोलते हैं कि बिजी हैं.बाद में कॉल करेंगे और कॉल करते भी हैं लेकिन मां को हम काल बैक नहीं करते.उनसे प्यार करते हैं लेकिन जता नहीं पाते हैं.
‘अनुपमा’ करने के बाद क्या आप अपनी मां की अहमियत को समझने लगी हैं ?
जब मैंने शूटिंग शुरू की थी तो शुरुआत के एक दो दिन मैं बहुत रोयी थी.प्रोमो शूट जब हुआ था वो वाला जब आप खुद पढ़ी नहीं हो मेरी पढ़ाई को क्या समझोगी.कई बार हमने भी यही बात अपनी मां को कही है. मेरी चीजों को हाथ मत लगाओ.ये भी सुनाया ही है। दो दिन सेट पर तो मैं स्क्रिप्ट पढ़के खूब रोती थी.कई पुरानी बातें याद आने लगती थी.
सात साल के अंतराल के बाद डेली सोप से जुड़ना कितना बदलाव पाती हैं शूटिंग और सेट्स पर ?
मैं अपने आपको न्यूकमर की तरह पा रही हूं.शायद एक नया तरीका है एक्टिंग का.एक नया तरीका है मेकअप करने का.मेकअप बहुत अभी चकाचक वाला हो गया है.सबका अपना रूम.कहानी घर घर के वक़्त तो सारे लड़कियां एक कमरे में मेकअप करती थी और सारे लड़के एक कमरे में. तीस -तीस लोग एक साथ.साराभाई में मैं औऱ रत्नाजी एक रूम शेयर करते थे।सुमित और राजेश एक.अब सबका अपना रूम है.कैमरा और लाइट की टेक्नोलॉजी भी काफी विकसित हुई है. हां इंसान वही है प्यारे प्यारे।राजन शाही के साथ मैंने अपने टेलीविज़न करियर की शुरुआत 20 साल पहले की थी.वो तो वही हैं।उनका थॉट प्रोसेस भी वही है. इमोशनल लेवल भी वही है.
आप किसी सीरियल को फॉलो करती थी ?
कहां कुछ देखने को मिलता है।टीवी में सिर्फ छोटा भीम,कृष रोल नंबर 24 और भी बहुत सारे कार्टून यही देखती थी. बेटे की वजह से कुछ और टीवी पर देख ही नहीं सकती थी.
Posted By: Budhmani Minj