दर्शकों को फ़िल्म पसंद आएगी तो लगेगा मेहनत सफल हुई- सलमान खान
अभिनेता और निर्माता सलमान खान फ़िल्म अंतिम द फाइनल ट्रुथ की प्रमोशन में बिजी हैं. उनका कहना है कि अगर फिल्म दर्शकों को फ़िल्म पसंद आएगी तो लगेगा उनकी मेहनत सफल हुई.
अभिनेता और निर्माता सलमान खान की आगामी रिलीज को तैयार फ़िल्म अंतिम द फाइनल ट्रुथ जल्द ही सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है. सलमान खान इस फ़िल्म को अपनी फिल्म करार देते हैं.वे कहते हैं कि ये दो हीरो वाली फिल्म है.आयुष शर्मा के साथ मेरा भी अहम किरदार है. उनकी इस फ़िल्म ,कैरियर पर हुई उर्मिला कोरी से बातचीत
मराठी फिल्म में ऐसी क्या खास बात आपको जो आपको लगा कि इस पर हिंदी फिल्म अंतिम द फाइनल ट्रुथ बननी चाहिए
मैं राइटर का बेटा हूं तो सबसे पहले प्लाट देखता हूं. मुझे फ़िल्म का प्लाट पसंद आया लेकिन मराठी फिल्म में पुलिस वाले का जो किरदार है.उसके छह से आठ सीन थे और मुझे आयुष के किरदार से ज़्यादा वही पसंद आया था, तो मैंने उस किरदार को डेवलप करवाया.फ़िल्म की शूटिंग हम हरियाणा में करने वाले थे लेकिन लॉक डाउन की वजह से हम नहीं जा पाए.वैसे भी यह भारत के किसी भी गाँव की कहानी हो सकती है. जहां किसान आर्थिक परिस्थितियों से मजबूर हो अपनी जमीन बेच देता है और फिर उसी जमीन पर काम करने लगता है. इस फ़िल्म में दो किसान के बेटों की कहानी है. जो ऐसे हालात आने पर एक गलत रास्ता चुनता है जबकि दूसरा सही.फ़िल्म की शूटिंग महाराष्ट में हुई है, तो महाराष्ट्र का टच कहानी और बोलचाल में है.
आप इस फ़िल्म में सिख बनें हैं लोगों की भावनाएं आजकल बहुत आहत हो रही हैं ऐसे में कितनी सावधानियां बरती गयी है
हर फिल्म के किरदार को करते हुए सावधानी बरती जाती है. जब सिनेमा में किसी की संस्कृति और रिवाज को दिखा रहे हैं, तो उसे पूरे सम्मान के साथ दिखाए.इस फ़िल्म में किंग की तरह सिख को दर्शाया गया है.
फ़िल्म में आपके साथ अभिनेत्री थी लेकिन उनके साथ दृश्यों को हटाना पड़ा
फ़िल्म के जब रशेज देखें तो लगा कि मेरे किरदार का लव एंगल दिखाने से उसका प्रभाव कम हो जाएगा. दो गाने और कुछ सीन्स हटाने पड़े. बड़ी माफी हीरोइन जो थी उनसे मांगी और ये भी वादा किया कि दूसरी पिक्चर में काम करेंगे. एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दिया तो सबको पता है निभाता ही हूं.(हंसते हुए) कमाता हूं, फिर दूसरी तरफ से देना पड़ता है. लोग कहते हैं कि आपने कमिटमेंट की थी पैसे देने की. अरे तूने करवाया था यार तो की थी.
आयुष के परफॉरमेंस पर आपका क्या कहना है
आयुष का परफॉरमेंस देखकर मैं चकित रह गया. मुझे खुशी है कि मेरे परिवार के एक लड़के ने इतना अच्छा काम किया है. आप उसमें एक नुस्ख नहीं निकाल सकते हैं. इस मैच्योरिटी के साथ उसने एक्टिंग की है. मुझे फ़िल्म का प्लॉट बहुत पसंद आया था और सरदार का किरदार भी. मैं शुरुआत में फ़िल्म नहीं कर रहा था.मैंने एक दो एक्टर्स को फ़ोन भी किया फिर लगा कि किसी से फेवर क्या लेना.जब मुझे फ़िल्म के प्लाट और किरदार में इतना विश्वास है तो मुझे ही करना चाहिए.
आयुष कम उम्र में एक परिपक्व व्यक्तित्व रखते हैं उसमें बहन अर्पिता का कितना योगदान मानते हैं
बहुत ज़्यादा.वह बहुत ही केयरिंग पत्नी है.आयुष का बहुत ख्याल रखती है. बच्चों को भी बखूबी संभालती है.हमने कभी सोचा नहीं था कि वो इतनी केयरिंग पत्नी बनेगी. आयुष की डाइट ही नहीं बल्कि उसके फैशन सेंस का भी वही ख्याल रखती है.वही आयुष के कपड़े भी चुनती है.
आपके कपड़ों का चुनाव कौन करता है
मैं तो बिंग ह्यूमन के ही कपड़े पहनता हूं.नया जो भी लॉट आता है उसको कुछ दिन पहनने के बाद लोगों को दे देता हूं और मैं पुराना लॉट पहनता हूं.
सूर्यवंशी की कामयाबी के बाद ये बात फिर साबित हो गयी कि थिएटर का जादू बरकरार है
हमारे देश में थिएटर कभी बन्द नहीं हो सकते हैं. हमारे पास मनोरंजन का दूसरा कोई विकल्प नहीं है.जैसे विदेशों में है. कम खर्च में फैमिली के साथ आउटिंग का सिनेमा बहुत अच्छा जरिया है. बड़े पर्दे के साउंड और विजुअल में अपने हीरो को देखने का जो मज़ा है वो मोबाइल और लैपटॉप में फ़िल्म देखने का नहीं है .
थिएटर में टिकटों के दाम काफी बढ़े हुए हैं क्या आप अंतिम द ट्रुथ से टिकट के दामों में कमी करेंगे
मुझे जहां तक पता है कि सिंगल स्क्रीन थिएटर के नहीं बल्कि मल्टीप्लेक्स के दाम बढ़े हैं. उनकी भी गलती नहीं है.डेढ़ साल से कुछ कमाई नहीं हुई है.उन्हें भी अपना थिएटर मेन्टेन करना है.स्टाफ को पैसे देने है.खुद का घर चलाना है. कोरोना का कुछ नहीं कहा जा सकता है.कभी भी हम पर फिर से जम्प कर सकता है.मालूम होगा कि थिएटर 30 प्रतिशत ही लोग जा सकते हैं या बन्द भी हो सकते हैं तो लोगों को कमाई तो करनी ही होगी.वैसे जय हो के वक़्त मैंने 650 की टिकट को 250 रुपये करवाया था .उस वक़्त किसी ने तारीफ नहीं की थी .सारा नुकसान हमारा ही हुआ था तो इस बार जैसा थिएटर वाले तय करेंगे वही करूंगा.
फ़िल्म के 100 करोड़ क्लब में शामिल होने का प्रेशर है
हमने अपनी फिल्म बहुत शिद्दत से बहुत सोच बूझकर बनायी है.पापा को दिखायी उन्हें पसंद आयी उन्होंने कहा कि इसने ( आयुष) भी अच्छा काम किया है .जब आप किसी फिल्म को बहुत मेहनत से बनाते हैं और वह आपके परिवार वालों को पसंद आती है तो खुशी बहुत होती है.पापा की राय ली गयी.उनके हिसाब से फ़िल्म को बेहतर बनाने के लिए कांट छांट हुई है.अब दर्शकों को फ़िल्म पसंद आ जाए तो लगेगा मेहनत सफल हो गयी.
निर्देशक महेश मांजरेकर के साथ अनुभव कैसा रहा
वो कमाल का बंदा है तो उससे जुड़ा हर अनुभव खास ही होगा.एक्टर,डायरेक्टर,राइटर के साथ साथ सिंगर और पेंटर भी है.
आप भी पेंटर हैं,पेंटिंग में हाल ही में क्या कुछ खास किया है
लॉक डाउन में बहुत समय मिला था.उस वक़्त पेंटिंग नहीं बनायी थी बाद में बनायीं.जब मुझको टाइम नहीं मिला उस वक़्त मैंने पेंटिंग बनायी.फिल्मों के साथ साथ पेंटिंग से खुद को बहुत ज़्यादा मशरूफ रखा.कुलमिलाकर 35 से 36 पेंटिंग बनायी.अबु धाबी में प्रदर्शनी की भी प्लानिंग है.
फ़िल्म के आप एक्टर भी हैं निर्माता भी इतने सालों का अनुभव है तो क्या निर्देशन में भी अपनी राय रखते हैं
इतने सालों का अनुभव है इसलिए एक्टर और प्रोडक्शन में होने के बावजूद डायरेक्शन में किसी तरह की दखलंदाजी नहीं होती है. जो भी बातचीत होती है वो राइटिंग के वक़्त ही तय हो जाती है.
फ़िल्म पायरेसी अभी भी एक अहम मुद्दा बना हुआ है,जिससे इंडस्ट्री लगातार जूझ रही है
राधे हाईएस्ट पायरेटेड फ़िल्म रही है. वो फ़िल्म डिजिटल में रिलीज हुई थी.250 रुपये देकर 10 से 15 लोग फ़िल्म देख सकते थे इसके बावजूद जमकर पायरेसी हुई. जो लोग देखते हैं उनको पकड़ने से नहीं बल्कि जो ये करते हैं.उनको पकड़ना होगा.
टाइगर की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा
टाइगर की शूटिंग में ब्लास्ट,धूल,मिट्टी खूब हुआ है उस वक़्त तो कुछ नहीं हुआ लेकिन शूटिंग से पैकअप होने के बाद से धूल और मिट्टी की वजह से खांसी, आंख और नाक से पानी बहना शुरू हो गया. तीन चार दिन से तबीयत ठीक नहीं हैं.(हँसते हुए) अभी तो खांसी भी आती है तो लोग डर जाते हैं .