sarfira movie review अक्षय कुमार की इस विमान की यात्रा है सुखद ..अगर नहीं देखी है ओरिजिनल
सरफिरा कल सिनेमाघरों में दस्तक देगी. इस रीमेक फिल्म में क्या कुछ है खास. कहां खायी मात.जानिए इस रिव्यु में
फिल्म – सरफिरा
निर्माता- अबुंदांतिया एंटरटेनमेंट
निर्देशक -सुधा कोंगरा
कलाकार -अक्षय कुमार ,राधिका मदान ,सीमा विश्वास, परेश रावल,इरावती हर्षे,प्रकाश बेलवाड़ी और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग- ढाई
sarfira movie ओटीटी पर रिलीज हुई सूर्या स्टारर तमिल फिल्म सोरारई पोटरु का हिंदी रीमेक है.सूर्या स्टारर इस फिल्म ने अपने नाम पांच नेशनल अवार्ड किये थे,जिसमें बेस्ट एक्टर और बेस्ट फीचर फिल्म की कैटेगरी भी शामिल है. फिल्म की कहानी एयर डेक्कन के संस्थापक जी.आर. गोपीनाथ की जिंदगी पर आधारित है, जिन्होंने भारत के आम आदमी के लिए हवाई यात्रा को किफायती बनाने का ना सिर्फ सपना देखा बल्कि तमाम मुश्किलों को झेलते हुए उसे साकार भी किया था.फिल्म की कहानी रियल और प्रेरणादायी है और अक्षय कुमार का रीमेक लव, रियल और प्रेरणादायी कहानियों से जुड़ाव किसी से छिपा नहीं है.हिंदी रीमेक का निर्देशन भी सुधा कोंगरा ने किया है.कहानी जानदार है और पर्दे पर अक्षय कुमार की मेहनत भी दिखती है, लेकिन दिक्कत ये है कि ओटीटी पर सूर्या की फिल्म का हिंदी संस्करण भी मौजूद है. ऐसे में फिल्म देखते हुए कहानी के ट्विस्ट एंड टर्न या किरदार की जद्दोजहद आपको उस हद तक इमोशनल नहीं कर पाती कि आप सोचे कि अब क्या होगा. कैसे होगा.अगर साउथ वाली फिल्म आपने नहीं देखी है ,तो ही यह फिल्म आपका पूरी तरह से मनोरंजन करती है. जिसमें आप इस फिल्म के हर फ्रेम से जुड़े रोमांच और इमोशन को शिद्दत से महसूस कर सकेंगे.
सपनों को पूरा करने के जिद और जूनून की है कहानी
सरफिरा की कहानी कैप्टेन जी. आर.गोपीनाथ की जिंदगी और उन पर आधारित किताब सिम्पली फ्लाई से प्रेरित है. यह अंडरडॉग की प्रेरणादायी कहानी है.जिसने समाज ही नहीं बल्कि भ्रष्ट सरकारी सिस्टम से लड़कर अपने सपने को पूरा किया था.वो सपना,जो उसने ९० करोड़ की उस आबादी के लिए देखा था. जिसके लिए हवाई सफर महंगाई की वजह से एक सपना ही था. रीमेक फिल्मों में किरदार और जगह बदल दी जाती है. यहां भी जगह बदल दी गयी है.साउथ वाली साउथ के गांव की थी. यहां कहानी महाराष्ट्र के गांव में पहुंच गयी है. खैर शुरुआत वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार )और उसके दो साथियों द्वारा एक प्लेन को इमरजेंसी लैंडिंग करवाकर दुर्घटना को टालने से शुरू होती है और कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है.महाराष्ट्र के गांव में एक स्कूल शिक्षक के बेटे वीर म्हात्रे (अक्षय कुमार ) पर बातें हो रही है,जिससे शादी के लिए देखने के लिए रानी(राधिका )और उसका परिवार उसके गांव जा रहा है. रानी और उसके परिवार के साथ बातचीत में ही मालूम पड़ता है कि वीर पहले एयरफोर्स में था,लेकिन उसने नौकरी छोड़ दी है. रानी से मुलाकात होने के बाद वीर बताता है कि उसका सपना आम आदमी के लिए एक कम लागत वाली एयरलाइंस शुरू करने का है.रानी भी उसे बताती है कि उसका सपना खुद की बेकरी शुरू करने का है.रानी कहती है कि दोनों पहले अपने सपने को पूरा करेंगे उसके बाद शादी की सोचेंगे. दोनों अपने -अपने सपने को पूरा करने में जुट जाते हैं. साल निकल जाते हैं. रानी का बेकरी का बिजनेस चल पड़ता है. दोनों शादी भी कर लेते हैं. वीर का साथ रानी,मां ,दोस्त और उसके गांव वाले हर कदम पर देते हैं,लेकिन लेकिन वीर की राह की मुश्किलें कम ही नहीं होती हैं क्योंकि उसका सामना एयरलाइन इंडस्ट्री के सबसे बड़े बिजनेसमैन परेश गोस्वामी (परेश रावल) से है. जिसके हाथ में पूरा सरकारी तंत्र है और परेश गोस्वामी की पूरी कोशिश है कि वीर का सपना किसी भी कीमत पर पूरा न हो, क्या वीर आसमान तक पहुंच पाएगा या उसके नीचे की जमीन भी छीन ली जाएगी ? इसी जर्नी को फिल्म की कहानी दिखाती है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
यह एक प्रेरणादायी कहानी है और परदे पर इसे सिनेमैटिक लिबर्टी लेते हुए पूरे रोमांच के साथ उतारा गया है.ओरिजिनल फिल्म अगर आपने नहीं देखी है,तो फिल्म आपको रोमांच से भरती है. उत्साहित भी करती है और कई मौकों पर इमोशनल भी कर जाती है. फिल्म की कहानी रियल है.फिल्म में पूर्व राष्टपति अब्दुल कलाम आज़ाद के योगदान को दर्शाया गया है तो फिल्म में रतन टाटा के नाम का दो से तीन बार जिक्र कर उस वक़्त सरकारी महकमों में फैले भ्र्ष्टाचार के मजबूत तंत्र के बारे में भी बताया गया है. जिसके आगे इतना पावरफुल आदमी भी बेबस हो गया था. ऐसे में एक स्कूल शिक्षक के बेटे ने अपने सपने को कैसे पूरा किया होगा. यह हम बस सोच ही सकते हैं.फिल्म से के साथ न्याय करती खामियों की बात करें तो फिल्म की कहानी ही नहीं बल्कि बहुत हद तक उसका फ्रेम भी साउथ वाली फिल्म से मेल खाता है.फिल्म के कई अहम् दृश्य ओरिजिनल फिल्म की हूबहू कॉपी है. शुरुआत में अक्षय को सरफिरा दिखाने के लिए दोस्त के जनाजे में नाचते दिखाना थोड़ा अटपटा सा लगता है.फिल्म की खामियों में दिक्कत मराठी भाषा के साथ भी है. नॉन मराठी किरदार मराठी भाषा को बहुत ही कैरिकेचर ढंग से बोलते दिखे हैं.फिल्म का गीत -संगीत कहानी के अनुरूप है, लेकिन कोई गीत यादगार नहीं बन पाया है. फिल्म के संवाद से जुड़े वन लाइनर अच्छे हैं. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के साथ न्याय करती है.फिल्म के आखिर में सूर्या भी अपनी झलक दिखला गए हैं.आखिर में हिंदी सिनेमा और साउथ सिनेमा के बीच की दूरियां ओटीटी की वजह से लगभग खत्म हो गई हैं. ऐसे में हिंदी फिल्मों के कलाकारों को अब ओरिजिनल कहानियों पर पूरी तरह से फोकस करना ही सही फैसला होगा.
अक्षय सहित सभी कलाकारों का है बेहतरीन परफॉरमेंस
अभिनय की बात करें तो एक अरसे बाद परदे पर इतने इमोशनल किरदार में अक्षय नजर आये हैं और उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. किरदार से जुड़े हर इमोशन को उन्होंने हर फ्रेम में जिया है.राधिका मदान का काम भी उल्लेखनीय है.सीमा विश्वास और परेश रावल मंझे हुए कलाकार हैं और वहअपनी छाप छोड़ते हैं. इरावती हर्षे सहित बाकी के सभी कलाकारों ने भी अपनी -अपनी भूमिका के साथ बखूबी न्याय किया है.