Shammi Kapoor Birth Anniversary: 18 फ्लॉप फिल्मों के बाद खुद को किया रिइन्वेंट, कैसे बने सुपरस्टार

शम्मी कपूर ने अपने करियर में 18 फ्लॉप फिल्मों के बाद खुद को रिइन्वेंट किया और एक नए तरह के हीरो के रूप में उभरे, जिन्होंने बॉलीवुड में नया ट्रेंड सेट किया.

By Sahil Sharma | October 21, 2024 7:00 AM
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शम्मी कपूर का करियर संघर्ष और कामयाबी


Shammi Kapoor Birth Anniversary: बॉलीवुड के मशहूर कपूर परिवार से ताल्लुक रखने वाले शम्मी कपूर ने पहले साइंस में करियर बनाने का सोचा, लेकिन अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राज कपूर के नक्शे कदम पर चलकर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा. हालांकि, शुरुआत में शम्मी को संघर्ष का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनकी पहली 18 फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप साबित हुईं. लेकिन शम्मी ने खुद को एक नए अवतार में ढाला और बॉलीवुड को एक ऐसे हीरो से रूबरू करवाया, जिसने इंडस्ट्री में एक नई पहचान बनाई.

अलग तरह के हीरो का परिचय


शम्मी कपूर ने जेम्स डीन और एल्विस प्रेस्ली से प्रेरणा लेते हुए हिंदी सिनेमा में एक नए तरह के हीरो की छवि बनाई. वह न केवल अपने समय के हीरो की पारंपरिक छवि को तोड़ने में सफल हुए, बल्कि हिंदी फिल्मों के हीरो का पूरा पैटर्न बदल दिया. वह चुपचाप और सरलता से पेश आने वाले हीरो की छवि को छोड़कर एक फ्लैंबॉयंट और आत्मविश्वासी हीरो के रूप में उभरे, जिसे जीवन का आनंद लेने में कोई झिझक नहीं थी. उनके इस अनोखे स्टाइल ने आने वाली पीढ़ी के हीरो, जैसे जॉय मुखर्जी, जीतेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा, शाहरुख खान और उनके भतीजे रणबीर कपूर को भी प्रभावित किया.

Remembering shammi kapoor

‘जंगली’ से ‘तीसरी मंजिल’ तक का सफर


1950 के दशक के हीरो को शम्मी कपूर ने “कायर और आत्मदया में डूबा हुआ” माना और उनमें “स्पाइन” और “माचिज्मो” जोड़ने का फैसला किया. उनकी यह सोच हिट रही, और जंगली (1961), दिल तेरा दीवाना (1962), प्रोफेसर, चाइना टाउन (1962), ब्लफ मास्टर (1963), कश्मीर की कली (1964), तीसरी मंजिल (1966), ब्रह्मचारी (1968), प्रिंस (1969) जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया. इन फिल्मों के सदाबहार गाने भी आज तक लोगों की ज़ुबान पर हैं.

सफलता से पहले का संघर्ष


शम्मी कपूर ने जीवन ज्योति (1953) से डेब्यू किया था, लेकिन यह फिल्म फ्लॉप रही. इसके बाद उनकी 17 फिल्में भी कुछ खास कमाल नहीं कर पाईं. इस दौरान वह ऐतिहासिक रोमांस, कॉमेडी, थ्रिलर, और कॉस्ट्यूम ड्रामा जैसी विभिन्न शैलियों की फिल्मों में नजर आए, लेकिन सफलता उनसे दूर रही.

टर्निंग प्वाइंट: ‘तुमसा नहीं देखा’


1955 में गीता बाली से शादी के बाद भी शम्मी कपूर फिल्मों में सफलता नहीं पा सके और वह इंडस्ट्री छोड़कर असम की एक चाय बागान में नौकरी करने की सोचने लगे. लेकिन फिर नासिर हुसैन की स्क्रिप्ट और देव आनंद के फिल्म छोड़ने से शम्मी कपूर को तुमसा नहीं देखा (1957) का हीरो बनने का मौका मिला, और इस फिल्म ने उनके करियर को नई दिशा दी. इसके बाद उन्होंने लगभग एक दशक तक बॉलीवुड में रोमांटिक हीरो के रूप में राज किया, जिसमें उनके अनोखे डांस मूव्स ने भी खास भूमिका निभाई.

कॅरियर का नया चरण और यादगार किरदार


जैसे-जैसे नए स्टार्स का दौर शुरू हुआ, शम्मी कपूर ने खुद को परिपक्व किरदारों में ढाल लिया. वह मनोरंजन (1974) में एक टैवर्न मालिक बने, जमीर (1975) में घोड़े का ब्रीडर, परवरिश (1977) में अमिताभ बच्चन के फोस्टर फादर, विदाता (1982) में दिलीप कुमार के साथी ट्रेन ड्राइवर गुरबख्श और रॉकी (1981) में डांस जज के रूप में भी नज़र आए. उनकी आखिरी फिल्म रॉकस्टार (2011) थी, जिसमें उन्होंने अपने पोते रणबीर कपूर के साथ म्यूजिक उस्ताद का किरदार निभाया.


शम्मी कपूर एक बेहतरीन परफॉर्मर थे, एक महान कलाकार, जिन्होंने अपनी अदाकारी से हमें खूब हंसाया और गुदगुदाया. उनकी कलाकारी को आज भी याद किया जाता है. प्रभात खबर की पूरी टीम शम्मी कपूर की जयंती पर उन्हें दिल से श्रद्धांजलि अर्पित करती है.

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