मैथिली फिल्म लोटस ब्लूम्स को मिली IFFI में ऑफिशियल इंट्री, त्रासदी से भरी एक मां-बेटे की है कहानी
नीतिन चंद्रा की मिथिला मखान जहां राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुकी है, वहीं अचल मिश्र की गामक घर और धुईन अंतरराष्ट्रीय मंच पर मैथिली सिनेमा की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुकी है. इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है. प्रतीक शर्मा की लोटस ब्लूम्स.
आशीष झा. पटना. मैथिली सिनेमा ने अपने छह दशक के सफर में व्यावसायिक तौर पर तो कोई खास पहचान नहीं बना पायी, लेकिन समानांतर सिनेमा में आज मैथिली सिनेमा भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की कतार में अपनी मजबूत उपस्थति दर्ज करा चुकी है. नीतिन चंद्रा की मिथिला मखान जहां राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुकी है, वहीं अचल मिश्र की गामक घर और धुईन अंतरराष्ट्रीय मंच पर मैथिली सिनेमा की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुकी है. इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है. प्रतीक शर्मा की लोटस ब्लूम्स.
प्रतीक शर्मा की लोटस ब्लूम्स की शूटिंग पटना में हुई है
इस फिल्म का न केवल यूरोपीय देशों में वर्ल्ड प्रिमियर के लिए चयनित हुआ है, बल्कि भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के लिए इसे आधिकारिक प्रवेश मिल गया है. मैथिली सिनेमा के लिए यह एक स्वर्णिम पल है. अखिलेंद्र मिश्र को खल चरित्र में रखकर मैथिली में बनी प्रतीक शर्मा की लोटस ब्लूम्स की शूटिंग पटना और उसके आसपास के इलाके में हुई है. इस चयनित फिल्मों को गोवा में 20 से 28 नवंबर, 2022 तक आयोजित होने वाले 53वें फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया जाएगा.
प्रसिद्ध साहित्यकार उषाकिरण खान ने लिखा है संवाद
इससे पहले लोटस ब्लूम्स का चयन यूरोपीय देशों में 9 सितंबर से अगले साल सितंबर तक चलनेवाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के लिए भी हो चुका है. इस समारोह के तहत नॉर्वे के लॉरिन्सकॉग, ओस्लो आदि जगहों पर इस फिल्म का वर्ल्ड प्रीमियर होगा. प्रसिद्ध टीवी निर्देशक प्रतीक शर्मा की इस फिल्म का संवाद लिखनेवाली मैथिली की प्रसिद्ध साहित्यकार उषाकिरण खान कहती हैं कि यह एक बहुत ही भावनात्मक पल है. मैथिली सिनेमा के लिए यह बड़ी उपलब्धि है.
मां बेटे की त्रासदी की कहानी है
फिल्म की कहानी के संबंध में उषाकिरण खान कहती हैं कि यह एक मां और उसके बेटे की कहानी है. इसमें गरीबी, बाल मजदूरी, शिक्षा और लॉकडाउन के दौरान लोगों की त्रासदी को बखूबी तरीके से दिखाया गया है. यह एक ऐसे मां की कहानी है जो अपने बेटे को पढ़ाना चाहती है. वो अपने बेटे को इस वादे के साथ मालिक के बेटे के साथ सिंगापुर भेजती है कि वहां जाकर पढ़ाई करेगा. सिंगापुर में बाल मजदूर कर रहा उसका बेटा लॉकडाउन के दौरान भारत लौटता है. वो अपने बेटे से मिलना चाहती है, लेकिन मालिक बहाना बनाता रहता है. मां के मन का कमल कैसे खिला यह फिल्म का अंत बताता है.
मैथिली में कुछ अच्छा काम होता दिख रहा है
मैथिली में साहित्य की जमीन काफी उर्वरा होने के बावजूद सिनेमा के मामले में यह खासा पिछड़ा है. इस स्थिति से दुखी, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पाने वाली मैथिली फिल्म मिथिला मखान के निर्देशक नितिन नीरा चंद्रा कहते हैं कि मैथिली में कुछ अच्छा काम होता दिख रहा है. अचल मिश्र ने गामक घर बनायी है. यह आर्ट हाउस सिनेमा है. बिहार और मैथिली की कल्चर गामक घर और मैथिली मखान दोनों में है, पर इन फिल्मों को सिनेमाहाल उपलब्ध नहीं हैं.
ओटीटी के प्लेटफॉर्म ने नया जीवन दिया
वैसे ओटीटी के प्लेटफॉर्म ने आज दर्शक और निर्माता दोनों के सामने सार्थक विकल्पों का एक और रंगीन गुलदस्ता लाकर रख दिया है. इससे मैथिली जैसे तमाम क्षेत्रीय भाषाई सिनेमा को नया जीवन मिल रहा है. मिथिला मखान जैसी मैथिली फिल्म को जहां सिनेमा घर नहीं मिल पा रहे थे, वो इस मंच पर काफी दर्शकों को पाने में सफल रही है. अब ओटीटी पर हिंदी-अंग्रेजी सबटाइटल्स के साथ मैथिली फिल्म आ रही है, इस वजह से कोई भी इन क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को देख सकता है.