Sunflower Review
वेब सीरीज- सनफ्लावर
निर्देशक- विकास बहल और राहुल सेनगुप्ता
प्लेफॉर्म- जी 5
कलाकार- सुनील ग्रोवर,रणवीर शौरी, आशीष विद्यार्थी,डायना,गिरीश कुलकर्णी, सलोनी खन्ना
रेटिंग- ढाई
क्वीन और सुपर 30 जैसी फिल्मों के निर्देशक विकास बहल ने सनफ्लावर से ओटीटी प्लेटफार्म पर अपनी शुरुआत की है. सीरीज की कहानी मुम्बई की हाउसिंग सोसाइटी के एक फ्लैट में रहने वाले राज कपूर (अश्विनी कौशल) के मौत से शुरू होती है. किलर कौन है ?
यह पहले एपिसोड में साफ है लेकिन सस्पेंस इस बात में है कि क्या किलर इस मर्डर से खुद को बचा लेगा और पुलिस के शक ही सुई सोनू सिंह (सुनील ग्रोवर) पर ही अटकी रहेगी. सीरीज देखते हुए आप जो भी सोचते हैं कहानी और किरदार उससे एकदम अलग ही रुख अख्तियार करते हैं.
हर हाउसिंग सोसाइटीज की तरह इस सोसाइटी में भी अच्छे, बुरे, टेढ़े-मेढ़े तो कुछ अतरंगी से किरदार हैं जिनकी कहानियां मर्डर वाली मूल कहानी के साथ अलग अलग ट्रैक पर चल रही है. एक साथ बहुत कुछ चल रहा है. कई सारे सोशल मैसेजेस और ब्लैक कॉमेडी दिखाने में मर्डर मिस्ट्री का जो मुख्य ट्रैक है उससे रोमांच गायब हो गया है. यह बात सीरीज देखते हुए अखरती है और यही इस सीरीज की सबसे बड़ी खामी लगती है. सीरीज खत्म होती है लेकिन आपकी जिज्ञासा नहीं. शायद सीजन 2 में सभी सवालों के जवाब मिले.
मुम्बई की हाउसिंग सोसायटीज में मुस्लिम, ट्रांसजेंडर, तलाकशुदा, बैचलर, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले, लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के साथ किस तरह का सौतेला व्यवहार किया जाता है. यह सीरीज इस मुद्दे को भी कहानी में उठाती है इसके साथ पेरेंटिंग, शादी में हावी पुरुष सत्ता पर भी सवाल उठाती है.
इस सीरीज की सबसे बड़ी खूबी इसकी उम्दा कास्टिंग है. बड़े रोल हो या कुछ मिनटों वाला किरदार हर कलाकार खास है. सबसे पहले बात सुनील ग्रोवर की जो इस सीरीज की लाइफलाइन हैं. सोनू सिंह के किरदार को उन्होंने अपने एक्सप्रेशन, बॉडी लैंग्वेज,लुक और संवाद से बहुत ही खास बना दिया है.
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रणवीर शौरी,आशीष विद्यार्थी,मुकुल चड्ढा का अभिनय बढ़िया हैं तो गिरीश कुलकर्णी ने अपने स्वैग वाले पुलिसिया किरदार में एक अलग ही छाप छोड़ी है. बाई के किरदार में नज़र आईं अभिनेत्री अन्नपूर्णा सोनी ने कम स्क्रीन टाइम में भी अपनी चमक दिखायी है. बाकी के किरदार भी अपने अभिनय की खुशबू से इस सनफ्लॉवर को सराबोर किया है फिर चाहे डायना, गुरलीन, पैड़ी,आँचल,मिसेज आहूजा और वॉचमैन सहित सभी किरदार.
कमज़ोर कहानी और स्क्रीनप्ले के बावजूद यह सीरीज अगर बोझिल नहीं लगती है तो इसका श्रेय कलाकारों के अभिनय को ही जाता है. सीरीज के संवाद अच्छे बन पड़े हैं. हालात से नंगा मुंह से बहे गंगा हो या मरे हुए आदमी और फ्रीज एक बराबर है. एक ठंडा होता है एक ठंडा करता है. सीरीज का तकनीकी पक्ष मजबूत है. सिनेमेटोग्राफी, संगीत से लेकर बाकी पहलू कहानी और किरदारों के साथ न्याय करते हैं.