Tapan Sinha Birth Anniversary: न्यू थिएटर्स में नौकरी के लिए लगवानी पड़ी थी पैरवी
Tapan Sinha Birth Anniversary: संयोग से इस कहानी का पहला फिल्मी संस्करण उसी समय (1946में) बनाया गया था, जिसमें बर्ट लैंकेस्टर ने अपनी पहली भूमिका निभायी थी और विलियम कॉनराड एवा गार्डनर और अन्य ने अभिनय किया था. तपन की स्क्रिप्ट को उनके दोस्तों में से ज्यादा लोग पसंद नहीं करते थे, लेकिन इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ और उन्होंने लिखना जारी रखा.
Tapan Sinha Birth Anniversary: साल 1942 में गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन और 1943-44 के बंगाल के भीषण अकाल के बाद कलकत्ता में उथल-पुथल मची हुई थी. इसी मुश्किल समय में तपन सिन्हा को सिनेमा का आकर्षण इतना शक्तिशाली लगा कि वे इसे अनदेखा नहीं कर सकते थे. वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्सुक थे, लेकिन साल 1946 में उन्होंने खुद को प्रतिष्ठित न्यू थिएटर्स स्टूडियो के द्वार पर पाया. फिल्मों में शामिल होने का फैसला अचानक या किस्मत का खेल नहीं था. न्यू थिएटर से संपर्क करने से पहले तपन ने इस पर गहराई से विचार किया था. तपन में अपने पिता के साथ अपनी योजनाओं को साझा करने का साहस नहीं था, लेकिन उन्होंने अपनी मां को भरोसे में लिया.
तपन अपने फैसले पर अडिग रहे
जगदीश भट्टाचार्य न्यू थिएटर्स में मैनेजर थे और अपने समय के प्रमुख वैज्ञानिक और करीबी पारिवारिक मित्र डॉ सुधींद्र नाथ सन्याल के करीबी परिचित थे. डॉ सान्याल ने तपन के बारे में भट्टाचार्य को लिखा और तपन को स्टूडियो में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. फिजिक्स में एमएससी करने के बाद तपन ने साउंड डिपार्टमेंट में खुद को फिट पाया. हालांकि, एक अनौपचारिक साक्षात्कार के दौरान विभाग के तकनीशियनों ने तपन को फिल्म उद्योग में शामिल होने से मना कर दिया, क्योंकि इसमें कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था. बावजूद इसके तपन अपने फैसले पर अडिग रहे. आखिरकार, उन्हें 70 रुपये के मासिक वेतन पर एसोसिएट साउंड तकनीशियन के पद पर नौकरी मिली. न्यू थिएटर्स में तपन की सिनेमा की तकनीक में औपचारिक ट्रेनिंग शुरू हुई. साउंड डिपार्टमेंट में मुकुल बोस (दिग्गज साउंड रिकॉर्डिस्ट और फिल्म निर्देशक नितिन बोस के भाई ), लोकेन बसु और अतुल चटर्जी के साथ-साथ बानी दत्ता सहित कई तकनीकी दिग्गज थे, जिनके अधीन तपन एसोसिएट के रूप में शामिल हुए. स्टूडियो में अनौपचारिक माहौल ने तपन को इन सभी प्रतिभाशाली तकनीशियनों से सीखने का मौका दिया.
तपन की स्क्रिप्ट को उनके दोस्तों में से ज्यादा लोग पसंद नहीं करते थे
न्यू थिएटर्स बंगाली फिल्म उद्योग की रचनात्मक प्रतिभा का केंद्र था. बिमल रॉय को ऋषिकेश मुखर्जी, नबेंदु घोष और असित सेन जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अपने साथ लेकर बॉम्बे जाना बाकी था. रॉय तब तक अपनी कलात्मक रूप से बारीक और व्यावसायिक रूप से सफल बंगाली फिल्म उदयेर पाथे(टुवर्ड्स द लाइट,1944) की बदौलत प्रसिद्धि पा चुके थे. हमराही(उदयेर पाथे का हिंदी संस्करण) के सेट पर काम करते समय तपन को रॉय को करीब से देखने का मौका मिला. रॉय ने तपन में एक रचनात्मक और कल्पनाशीलता अक्स देखा. तपन ने रॉय से फिल्म की पटकथा उधार ली और इसे कई बार ध्यान से पढ़ा, जिसने बाद में उनकी अपनी फिल्मों के लिए पटकथा लिखना शुरू करने में उनकी मदद की. न्यू थिएटर्स में काम करने से तपन में अपनी फिल्में बनाने की इच्छा और बढ़ गयी. उन्होंने स्क्रिप्ट लिखना शुरू कर दिया. उनकी पहली स्क्रिप्ट अर्नेस्ट हेमिंग्वे की 1927 की लघु कहानी, द किलर्स पर आधारित थी. संयोग से इस कहानी का पहला फिल्मी संस्करण उसी समय (1946में) बनाया गया था, जिसमें बर्ट लैंकेस्टर ने अपनी पहली भूमिका निभायी थी और विलियम कॉनराड एवा गार्डनर और अन्य ने अभिनय किया था. तपन की स्क्रिप्ट को उनके दोस्तों में से ज्यादा लोग पसंद नहीं करते थे, लेकिन इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ और उन्होंने लिखना जारी रखा.
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न्यू थिएटर्स में दो साल तक काम करने के बाद तपन कलकत्ता के मूवीटोन नाम एक नये स्टूडियो में चले गये, जो उस समय प्रारंभिक अवस्था में था. तपन के गुरु बानी दत्ता, पहले से ही चीफ साउंड रिकॉर्डिस्ट के रूप में वहां चले गये थे. एक स्टूडियो को शुरू से ही स्थापित करने की जिम्मेदारियों ने तपन को तकनीकी रूप से रचनात्मक व्यक्ति के रूप से विकसित होने में मदद की. सिनेमाई माध्यम पर उनकी महारत का श्रेय काफी हद तक न्यू थिएटर्स और कलकत्ता मूवीटोन में बिताये गये उनके वर्षों को दिया जा सकता है.