फ़िल्म – अमर सिंह चमकीला
निर्देशक-इम्तियाज़ अली
कलाकार- दिलजीत दोसांझ,परिणीति चोपड़ा,अनुराग अरोड़ा,अंजुम बत्रा,अपिंदरदीप सिंह,उदयवीर सिंह और अन्य
प्लेटफार्म नेटफ़्लिक्स
रेटिंग- साढ़े तीन
80 के दशक के पंजाब में अमर सिंह चमकीला सबसे लोकप्रिय नाम था ..उसे पंजाब का एल्विस प्रेसली भी कहा जाता था लेकिन उसपर अश्लील गीतों को गाने का भी आरोप था .. माना जाता है कि उसी वजह से २७ साल की उम्र में उसे और उसकी दूसरी पत्नी अमरज्योत को मार दिया गया था.. निर्माता निर्देशक इम्तियाज़ अली की फिल्म अमर सिंह चमकीला उसी विवादित सिंगर को श्रद्धांजलि देती है, लेकिन बिना किसी को सही या गलत ठहराते हुए यह फिल्म इमोशन के साथ कही गयी है.. यही वजह है कि यह फिल्म आपको छू जाती है.. दिलजीत का अभिनय, रहमान का संगीत और इम्तियाज का निर्देशन इस फिल्म को और खास बना गया है..
पंजाब के सबसे विवादित लेकिन लोकप्रिय सिंगर की है कहानी
फिल्म की कहानी की शुरुआत (दिलजीत दोसांझ) और उसकी पत्नी अमरज्योत (परिणीति चोपड़ा) की हत्या से ही होती है.. उसके बाद कहानी फ़्लैशबैक और वर्तमान में आती – जाती चलती रहती है ..बचपन में दलित धनी राम (चमकीला का असली नाम )अपने आसपास उन्हीं शब्दों को सुनते हुए वह बड़ा हो रहा था और वह उन्हीं शब्दों को लेकर गानों की लाइंस भी बनाता था ..बड़े होने पर अमर सिंह एक फैक्ट्री में जुराबें बनाते दिखता है ,लेकिन उसने तय कर रखा है कि उसे संगीत में ही कुछ करना है, क्योंकि उसे पता है कि लोगों की पसंद क्या है .. वह एक लोकप्रिय लोक कलाकार से वह जुड़ता है ..उसके लिए गाने लिखता है, लेकिन उसे नौकरों वाले दूसरे काम भी करने पड़ते हैं .. क़िस्मत से उसे एक दिन स्टेज पर परफॉर्म करने का मौक़ा मिल जाता है और उसका नाम चमकीला भी.. जिसके बाद उसका जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगता है .. वह फिर अमरज्योत (परिणीति चोपड़ा) के साथ अपनी जोड़ी अखाड़े यानी स्टेज पर बनाता है .. यह जोड़ी ज़िंदगी में भी बन जाती है .. चमकीला की प्रसिद्धि उसके अखाड़े को कनाडा और लंदन तक पहुंचा देती है ..उस वक़्त सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से ज़्यादा उसके शोज़ में भीड़ जुटती है.. चमकीला की कहानी के विलेन धर्म के ठेकेदार हैं .. वह मांग करते हैं कि वह अश्लील गाने बंद कर दें .. वरना जान से जाएगा.. शुरुआत में वह भी डर जाता है और ऐसे गाने बनाने से तौबा भी कर लेता है,लेकिन लाइव शोज़ में जब दर्शक उससे वैसे गानों की मांग करते हैं ,तो वह एक सच्चे आर्टिस्ट की तरह वह दर्शकों की माँग को ठुकरा नहीं पाता है .. धर्म के ठेकेदारों की चेतावनियां बढ़ने लगती हैं .. उसके करीबी उससे शोज़ को कुछ समय ना करने की सलाह देते हैं ,लेकिन वह साफ़ कहता है कि बहुत मेहनत के बाद यहां तक पहुंचा हूं और तय कर लेता है कि बिना गाए जीते जी मर जाने से अच्छा है कि मरकर ज़िंदा रहना.. क्या वह मरकर जिन्दा रह पाया शायद हां क्योंकि तभी उसकी कहानी लोगों तक पहुंची है..
फ़िल्म की खूबियां और ख़ामियां
निर्देशक इम्तियाज़ अली ने इससे पहले एक गायक और गीतकार की जिंदगी पर फिल्म रॉकस्टार बनायीं थी लेकिन इस बार वह रियल लाइफ के एक सिंगर की कहानी को परदे पर ले आए हैं..जो जाति से चमार था और आर्थिक रूप से भी बहुत कमज़ोर तबके से आता था , लेकिन यह फ़िल्म चमकीला या उसके संघर्ष का महिमा मंडन नहीं करती है.. जब चमकीला के किरदार को सुरिंदर का किरदार बोलता है कि मैंने साथ क्या बिठा लिया तू मेरे बराबर का हो गया, तो चमकीला इतना ही कहता है कि चमार हूं, लेकिन भूखे नहीं मरूंगा.. फिल्म जाति के भेदभाव को गुस्से या भाषण बाजी के बजाय बहुत सरलता से सामने ले आती है..चमकीला के अश्लील गानों को गाने की इमेज को फिल्म साफ़ करने की कोशिश तो नहीं करती है,लेकिन उसके पीछे की वजह को सशक्त ढंग से सामने लाती है.. फ़िल्म बहुत ही मजबूती से मोरल पुलिसिंग के सवाल को भी सामने लेकर आयी है .. जो कहीं ना कहीं आज भी सामायिक लगता है..चमकीला के किरदार का फ़िल्म में एक संवाद है कि हर किसी की सही ग़लत को सोचने की औक़ात नहीं होती है .. मुझ जैसे को तो बस जैसे तैसे करके ज़िंदा रहना होता है.. इस दुनिया में ज़्यादातर मेरे जैसे छोटे लोग हैं ..आप जैसे कम हैं .. छोटे लोगों को यही सब पसंद आता है क्योंकि वो यही सब देख रहे होते हैं..फिल्म का यह संवाद चमकीला के अश्लील गाने की वजह दे गया है, तो चमकीला से इतर सोच रखने वालों को भी फिल्म में जगह मिली है..अनुराग अरोरा का पुलिसिया किरदार फ़िल्म में कहता है दुनिया में ज़्यादातर लोग गंदे और बुरे है.. ज़्यादातर लोगों को कचरा पसंद है ,तो क्या करें उन्हें दे दें ..कुलमिलाकर फिल्म हर फ्रेम में इस बैलेंस को बनाकर चलती है..बिना किसी जजमेंट और बड़े स्टेटमेंट के ८४ के दंगों और उसके बाद के पंजाब के सामाजिक और राजनीतिक हालात को भी फ़िल्म छूती है ..फ़िल्म की शूटिंग रियल लोकेशन पर हुई है .. जो इस फ़िल्म को रियलिटी के और क़रीब लेकर चला गया है ..फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी और लुक पूरी तरह से 70 और 80 के दशक के साथ न्याय करता है ..संगीत इस फ़िल्म का अहम किरदार है और इम्तियाज अली ने संगीतकार ए आर रहमान ,गीतकार इरशाद कामिल और गायक मोहित चौहान के साथ मिलकर इसे यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ..उन्होंने ओरिजिनल गानों में भी बहुत अच्छे से चमकीला के गीत और उसके व्यक्तित्व को जोड़ा है .. फ़िल्म में अमर सिंह चमकीला के ओरिजिनल गानों को भी उसी तरह से रखा गया है .. फ़िल्म में पंजाबी गीतों के अंग्रेजी अनुवाद लगातार स्क्रीन पर दिखाए गये हैं ताकि दर्शकों को भाषा को लेकर कोई दिक़्क़त ना हो ..ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म में चमकीला की पहली पत्नी का पक्ष बहुत ही हल्के तरीक़े से रखा गया है.. पहली पत्नी के बच्चे का जिक्र फिल्म में नहीं किया गया है..फ़िल्म कई जगहों रॉकस्टार की याद दिलाती है ..फ़िल्म में एनीमेशन के स्केच का प्रयोग रॉकस्टार में भी बहुत हद किया गया था .. इश्क़ मिटाए लाजवाब गीत बन पड़ा है लेकिन उस गीत में रॉकस्टार के सड्डा हक़ गीत की छाप मिलती है .. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है..
दिलजीत का दिल जीतने वाला परफॉरमेंस
अभिनय की बात करें तो दिलजीत दोसांझ अमर सिंह चमकीला के किरदार में बहुत गहरे उतरे हैं.. चूँकि वह ख़ुद भी पंजाब से हैं और सिंगर भी हैं ,तो उनके लिए अपनी पर्सनालिटी को पीछे रखकर किसी और सिंगर के किरदार से जुड़े हर पहलू को बारीकी के साथ सामने लाना आसान नहीं रहा होगा ..फ़िल्म में चमकीला के रियल परफॉरमेंस फुटेज को भी जोड़ा गया है ,जिससे यह बात साफ़ दिखती है कि कितनी सहजता के साथ दिलजीत ने चमकीला की भूमिका को आत्मसात कर लिया है .. निर्देशक इम्तियाज़ अली ने यह बात कई बार दोहरायी है कि दिलजीत के बिना यह फ़िल्म नहीं बन सकती थी और फ़िल्म देखते हुए आपको यह बात शिद्दत से महसूस होती है.. परिणीति चोपड़ा ने फ़िल्म में दिलजीत का बहुत अच्छा साथ दिया है..स्टेज पर आत्मविश्वास से भरी दिखती हैं, जबकि स्टेज से बाहर वह शर्मीली और मासूम सी लगती हैं..अंजुम बत्रा का अभिनय भी क़ाबिले तारीफ़ है ..अनुराग अरोड़ा सहित बाक़ी के सारे कलाकारों ने भी ईमानदारी से अपने हिस्से की भूमिका को जिया है.