100 years of mohammed rafi:महान फनकार मोहम्मद रफी की आज 100 वीं जयंती है. सुरों के इस जादूगर के साथ गायक उदित नारायण ने अपनी सुरों की जर्नी हिंदी सिनेमा में शुरू की थी. उस किस्से को साझा करने के साथ -साथ लेजेंड्री सिंगर के साथ अपने जुड़ाव पर भी उन्होंने उर्मिला कोरी से बातचीत की. बातचीत के प्रमुख अंश
रेडियो से रफी साहब की आवाज से जुड़ा
हर भारतीय की तरह मैं भी रेडियो से ही महान फनकार मोहम्मद रफी साहब से जुड़ा था. परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि मेरे किसान पिताजी रेडियो ले पाए.उस वक्त रेडियो भी लक्जरी हुआ करता था. आसपास जमींदारों के घर से रेडियो में रफी साहब के गाने की आवाज आती थी. दूर से खड़े होकर उनकी आवाज को सुनता था. उनकी आवाज से बहुत आकर्षित होता था. पांच सात साल की उम्र रही होगी. आप बोल सकती हैं कि जहां उनकी आवाज सुनाई दें.मैं बस बैठ जाता था और उनको सुनने लगता था. यह उनकी आवाज का जादू था.
बिना टिकट लिए रफी साहब का शो देखने पहुंच गया था
यह उस वक्त की बात होगी.मैं मुंबई आया ही था. मालूम पड़ा है कि सायन के षणमुखानंद हॉल में रफी साहब का प्रोग्राम है. उस वक़्त संघर्ष का दौर था इसलिए टिकट खरीदकर रफ़ी साहब का शो देखने के पैसे नहीं थे, लेकिन दिल में था कि बस उनकी झलक को देखना ही है. फिर क्या था. मैं षणमुखानंद पहुंच गया और गार्ड्स को धोखा देकर किसी तरह उस ग्रीन रूम की खिड़की तक पहुंच गया था. जहां वह रिहर्सल कर रहे थे और मैंने उस मखमली आवाज वाले शख्सियत को सामने से देखा,जिसे सुनकर मैं बड़ा हुआ था .मैंने बस उस पल को आंखों में बसा लिया था.
जब राजू भाई ने रफी साहब के साथ गाने का ऑफर दिया
आप इसे किस्मत कहिये या भगवान् और मेरे बड़ों का आशीर्वाद जिस आवाज को सुनते हुए मैं बड़ा हुआ था. मुझे मेरे प्लेबैक सिंगिंग में पहला मौका उन्ही के साथ मिला था. मैं सोचकर देखता हूं तो लगता है कि भगवान ने क्या कमाल की स्क्रीनप्ले लिखा था.मैं 1979 में मुंबई आ चुका था. उस वक्त के जितने भी संगीतकार थे. सभी के घरों के चक्कर काटता था. इन्ही में से एक अपने राजू भाई यानी राजेश रोशन थे.राजू भाई ने एक दिन कहा कि आते रहो. देखते हैं क्या होता है.शायद उनके मन में आ चुका था कि वह मुझे मौका देंगे। हमेशा की तरह एक दिन मैं उनसे मिलने के लिए गया और उन्होंने कहा कि रफी साहब के साथ गाना गाओगे। मैं बता नहीं सकता कि मैं खुश जितना था नर्वस भी उतना था. पूरे दिन मेरे मन में बहुत कुछ चल रहा था.
रफी साहब ने बहुत हौंसलाअफजाई की थी
अगले दिन ताड़देव में रिकॉर्डिंग पर जाने से पहले मैं मंदिर गया, फिर मैं रिकॉडिंग पर गया था. रफी साहब सफेद सफारी सूट में थे. उनको देखते हुए उनके पैरों को छू लिया और बताया कि आज उनके साथ मेरा भी कोरस में गाना है. मैं बहुत नर्वस हूं. उस वक्त मैं 24 साल का था. उन्होंने हौसलाअफजाई करते हुए कहा था कि तुमको देखकर मुझे अपने बचपन की याद आ रही है. मैंने भी कोरस से अपनी शुरुआत की थी. आप खुशकिस्मत हो कि आपको दो तीन लाइन खुद की तो मिल रही है .मुझे तो शुरुआत ग्रुप में गाने का मौक़ा मिला था,उन्होंने बहुत दुआएं दी थी. गाने की रिकॉर्डिंग के बाद उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई. बर्खुदार ऐसे ही आगे बढ़ोगे. बस मेहनत करते रहो और ईमानदारी मत छोड़ना.
रफी साहब मेरे लिए लकी साबित हुए
रफी साहब के साथ वाला गाना फिल्म 19-20 का था. मोहम्मद रफी साहब और उषा मंगेशकर जी के साथ मेरी भी कुछ लाइन थी.गीत अमित खन्ना ने उस गीत को लिखा था. रफ़ी साहब मेरे लिए फ़रिश्ते की तरह थे. मैं बताना चाहूंगा कि इस गाने के बाद से ही मुझे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,कल्याण जी आनंद जी,पंचम जी ने एक दो लाइनें कोरस में ही सही गवानी शुरू कर दी. उनके 100 वे जन्मदिन पर मैं यही कहूंगा कि ऐसे फनकार तो स्वर्ग में ही होंगे और वहीं से हमको दुआएं दे रहे होंगे.