निर्माता निर्देशक विनोद तिवारी की फ़िल्म कन्वर्श़न एक बार फिर सुर्खियों में है. लव जिहाद के मुद्दे पर बनी यह फ़िल्म पिछले तीन महीने से सेंसर बोर्ड में फ़िल्म सर्टिफिकेशन के लिए अटकी पड़ी है. विनोद तिवारी साफतौर पर इसे सेंसर बोर्ड की मनमानी बता रहे हैं. जो ना सिर्फ आर्थिक बल्कि मानसिक तौर पर भी उनके लिए नुकसानदेह साबित हो रही है. उर्मिला कोरी की हुई बातचीत
फ़िल्म सर्टिफिकेशन के लिए आपने कब सेंसर बोर्ड में भेजा था और पूरा मामला क्या रहा
जुलाई में मेरा पहला मेल गया था. उन्होंने जो भी डॉक्युमेंट्स मांगे.हमने सब दे दिए हैं.सेंसर बोर्ड का 35 दिनों का समय होता है.वो वे लोग बहुत पहले ही पूरे कर चुके हैं.ढाई से तीन महीने हो चुके हैं.अब तक 40 मेल मैंने भेज दिए हैं लेकिन किसी एक का जवाब नहीं आया है. 8 सितंबर को जब मेरी फिल्म की स्क्रीनिंग हुई थी तो उन्होंने कहा कि थोड़ा विषय हार्श है.मैंने बोला मैं ऑडियो म्यूट करने को तैयार हूं . सीन की कांट छांट की भी मेरी मंजूरी है. उसके बाद कोई प्रोसेस आगे नहीं बढ़ा.कोई जवाब ही नहीं आया.
फ़िल्म लव जिहाद के मुद्दे पर है क्या सेंसर बोर्ड को विषय की संवेदनशीलता से परेशानी है
मैं तो पूछ ही रहा हूं कि उन्हें क्या परेशानी है.कोई संवाद कोई सीन पर परेशानी है या पूरी फिल्म ही रिजेक्ट है.वो कुछ तो बोले लेकिन वो कुछ जवाब नहीं देते हैं.ये सेंसर बोर्ड के इतिहास में पहली बार होगा कि उन्होंने तीन से चार बार स्क्रीनिंग कर ली और हमसे चार बार स्क्रीनिंग फीस भी जमा करवा ली जबकि सर्टिफिकेशन फीस के लिए एक बार पैसे जमा करने होते हैं.हमने तीन बार ऑफिशियली पैसे जमा किए हैं.50 हज़ार हर बार.
इस देरी की वजह से आपका कितना नुकसान हो चुका है
500 थिएटर्स तक मेरी पब्लिसिटी पहुंच चुकी थी लेकिन देरी की वजह से वो अब मेरे साथ में नहीं है.मेरी फिल्म का बजट 5 से 6 करोड़ का है अगर फ़िल्म सेंसर नहीं होती है तो मुझे पूरा 6 करोड़ का नुकसान है. इस महीने की आठ तारीख की रिलीज डेट्स थी. कोविड की वजह से यूएफओ मुझे 50 प्रतिशत डिस्काउंट दे रहा था.जो 22 तारीख तक आखिरी था.इस महीने तीन रिलीज डेट्स मैंने रखी लेकिन मैं रिलीज नहीं कर पाया क्योंकि कोई जवाब ही नहीं आया है.ऐसे में कोई और व्यक्ति होता तो आत्महत्या कर लेता था.आप मुझे आत्महत्या पर मजबूर कर रहे हैं. जिन लोगों के पैसे लेकर मैंने ये फ़िल्म बनायी है. वे अपने पैसे मांग रहे हैं.मैं बहुत परेशान हूं.क्या 5 -7 करोड़ की फ़िल्म का प्रोड्यूसर प्रोड्यूसर नहीं होता है. वो भी लोन पर पैसे लेकर फ़िल्म बनाता है.मेरी यह फ़िल्म लव जिहाद की गंदी सोच पर प्रहार करती है किसी जाति और धर्म को बुरा नहीं बोलती है तो फिर दिक्कत क्यों है. राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फ़िल्म में लव जिहाद को बढ़ावा दिया गया है.क्या क्या डायलॉग थे फ़िल्म में .इसी सेंसर बोर्ड ने उस फिल्म को पास किया था. मेरे पास डायलॉग की कटिंग है मैंने वो भी भेज चुका हूं कि देखिए परेश रावल क्या बोल रहे हैं. परेश रावल के किरदार ने फ़िल्म में बोला है कि इनका खून ही खराब है. हमने तो ऐसा कुछ ना बोला ना दिखाया है. मेरी कहानी काल्पनिक तो है नहीं माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मना है. विक्टिम्स के एफिडेविट हैं, जिसमें उन्होंने बताया है कि हमारे साथ लव जिहाद ऐसा हुआ है.
तो क्या छोटे फिल्मकारों को लेकर सेंसर बोर्ड का रवैया पक्षपाती है
हां, बड़े लोगों के लिए खुद ये कमिटी तय करके उनकी फ़िल्म को सेंसर बोर्ड में पास करवाते हैं ताकि इनकी नौकरी खतरे में ना पड़े.विवादास्पद पंजाबी फिल्म मूसा जट्ट को इन्होंने एक हफ्ते में पास किया है.
प्रोड्यूसर गिल्ड बॉडी का क्या आपको सपोर्ट मिला है
इम्पा ने पहले ही सेंसर बोर्ड को मेल लिख दिया है लेकिन ये इतने निर्लज्ज हो चुके हैं कि किसी मेल का जवाब इनको देना ही नहीं है.अधिकारिकतौर इनको कुछ बोलना ही नहीं है.इम्पा ने इनको मेल में लिखा है कि एक प्रोड्यूसर का कितना नुकसान होता है.इम्पा ने भी यही लिखा है कि आप एक प्रोड्यूसर को प्रताड़ित कर रहे हैं.
सेंसर बोर्ड ने सेंसर सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया अगर ऐसा होता है तो आपका अगला कदम क्या होगा
खारिज बताइए और उसका कारण दीजिए.उसके बाद मैं पब्लिक प्लेटफार्म पर अपनी बात लेकर जाऊंगा.हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट है.वहां लड़ाई लड़ेंगे.भारत का नागरिक हूं.मुझे भी कुछ अधिकार मिले हैं.