IIउर्मिला कोरीII
पिछले कुछ दिनों से लगातार ये खबरें आ रही है कि फिल्मों और सीरियलों की शूटिंग अगले महीने के अंत तक शुरू हो जाएगी. प्रोड्यूसर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने शूटिंग के गाइडलाइन्स का एक ड्राफ्ट तैयार कर सरकार के सामने पेश किया है. फेडेरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्प्लॉइज के प्रेसिडेंट बी एन तिवारी भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं लेकिन वे यह बताते हैं कि मुंबई में कोरोना वायरस का कहर कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है. ग्रीन ज़ोन रेड जोन बनते जा रहे हैं. लगातार संख्या में इजाफा हो रहा है. ऐसे में शूटिंग शुरू होने में जून के बजाय अगस्त या सितम्बर तक का समय भी जा सकता है मतलब साफ है कि अपने पसंदीदा सीरियलों और फिल्मों को देखने के लिए दर्शकों को और इंतज़ार करना पड़ेगा.
इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों की मानें तो लॉकडाउन खत्म होकर शूटिंग जब भी शुरू होगी. कामगारों का संकट खत्म नहीं होने वाला है बल्कि बकरार रहने वाला है. सोशल डिस्टेंसिंग के तहत पहले यूनिट में जहां 150 से 200 की टीम काम करती थी. अब इस संख्या में 40 प्रतिशत तक की कमी होगी.
आईएफटीपीसी के चैयरमैन और कई सीरियलों के निर्माता जे डी मजीठिया कहते हैं. कोरोना से बचने के लिए सबसे ज़रूरी सोशल डिस्टेंसिंग है. ऐसे में हमें कम लोगों के साथ शुरुआत में काम करना ही होगा. स्टाफ कम करने पड़ेंगे. हर किसी को शुरुआत में परेशानी का सामना करना पड़ेगा. इंडस्ट्री एक बार रफ्तार पकड़ेगी तो फिर से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा.
फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्प्लॉइज के प्रेसिडेंट बी एन तिवारी कहते हैं हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि कोई भी वर्कर्स बेरोजगार ना रहे. यूनिट छोटी होगी तो निर्माता को उनसे दो शिफ्ट में काम लेना होगा. रोटेशन पालिसी के तहत सभी को काम दिया जाएगा. बी एन तिवारी आगे बताते हैं कि काम के साथ साथ 5 लाख वर्कर्स की सुरक्षा भी सबसे अहम है.
लॉकडाउन के बाद कामगारों को 8 घंटे की शिफ्ट से ज़्यादा काम नहीं देना चाहिए क्योंकि कोरोना के इस दौर में उनकी इम्यून सिस्टम अच्छा रहना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. ऐसे में उनसे ज़रूरत से ज़्यादा काम नहीं लिया जाना चाहिए. लॉकडाउन खत्म होने के बाद कामगारों को उनकी तनख्वाह हर महीने दी जानी चाहिए. 90 दिनों वाला समय जो अब तक लिया जाता है. वो गलत है. अभी तक कई चैंनलों के लगभग एक साल से ज़्यादा बकाया पैसे वर्कर्स को देने हैं. उनका भी भुगतान होना चाहिए और सबसे अहम कामगारों को 50 लाख का बीमा. चंद निर्माताओं ने इसका क्यों हौवा बना रहे हैं. मुझे नहीं पता है.’
उन्होंने आगे कहा,’ हर आदमी को 50 लाख ज़्यादा लग रहा है जबकि जान की कीमत 50 करोड़ से भी ज़्यादा है. जिसके घर का मरता है. उसको पता चलता है. सेट का करोड़ का बीमा होता है तो इंसान का क्यों नहीं. कुछ निर्माता कहते हैं वे 10 लाख में फ़िल्म या शो बना लेते हैं तो क्या करें वर्कर्स की जान की कीमत 50 रुपये रखें. फेडरेशन अपनी इन ज़रूरी मांगों को पूरा होने के बाद ही अपने कर्मचारियों को शूटिंग पर जाने देगा. प्रोड्यूसर भी जिंदा रहना चाहिए तकनीशियन्स भी. काम होगा तो ही सबको फायदा है. ये बात भी को समझना होगा.’
शूटिंग शुरू होने से पहले हर दिन इन बातों का ख्याल रखा जाएगा. ड्राफ्ट में इन बातों का भी जिक्र है…
शूटिंग शुरू होने से पहले पूरे सेट को सैनिटाइज किया जाएगा. सेट से जुड़ी हर चीज़ सेनिटाइज होगी.
सेट से जुड़े हर किसी की थर्मल चेकिंग होगी।उसके बाद ही उन्हें सेट पर जाने दिया जाएगा. मास्क और ग्लव्स सभी के लिए अनिवार्य होंगे. डॉक्टर और एम्बुलेंस सेट पर हमेशा मौजूद रहेंगे।सेट के बाथरूम और टॉयलेट कुछ कुछ घंटों में सेनिटाइज हो.
शूटिंग शुरू होने से पहले पहले टेक्निकल डिपार्टमेंट जाएगा अपना काम करेगा.उसके बाद लाइट डिपार्टमेंट वो भी अपना काम करके बाहर आ जाएगा।सेट पर हमेशा मौजूद नहीं रहेंगे.उसके बाद डायरेक्टर और कैमरामैन जाएंगे.उसके बाद कोई ज़रूरत उनको लगेगी तो वो टेक्निकल टीम से संपर्क कर उसे अपने हिसाब से करवाएंगे. एक्टर्स के साथ उनकी बड़ी टीम नहीं होगी।हमेशा मेकअप टचअप नहीं होगा.
रिहर्सल मास्क लगाकर किया जाएगा।उस वक़्त साउंड रिकार्डिस्ट, कैमरामैन और डायरेक्टर ही वहां मौजूद रहेंगे. अस्सिटेंट बहुत कम सेट पर मौजूद रहेंगे.