Grahan review : भावनात्मक कहानी बयां करती है ये पीरियड ड्रामा सीरीज
Grahan review : ग्रहण की कहानी लेखक सत्य व्यास की किताब चौरासी से प्रेरित है. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगो की पृष्ठभूमि वाली यह सीरीज मूल रूप से पिता और बेटी के भावनात्मक रिश्ते की कहानी है.
Grahan review
वेब सीरीज- ग्रहण
निर्देशक-रंजन चंदेल
प्लेटफार्म- डिज्नी प्लस हॉटस्टार
कलाकार- जोया हुसैन, पवन मल्होत्रा, अंशुमान पुष्कर, वामिका गब्बी,सत्यकाम आनंद,टीकम जोशी और अन्य
रेटिंग ढाई
ग्रहण की कहानी लेखक सत्य व्यास की किताब चौरासी से प्रेरित है. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उस वक़्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगो की पृष्ठभूमि वाली यह सीरीज मूल रूप से पिता और बेटी के भावनात्मक रिश्ते की कहानी है लेकिन तथ्य और कल्पना के मेल से बनी इस कहानी में 84 के दंगों का दर्द, राजनीति का विकृत स्वरूप, कट्टरता का जहर, नफरत, प्यार , पश्चताप,जातिवाद, लिंग भेद,गरीबी, सिस्टम की सहित कई विषयों को भी छुआ गया है.
यह कहानी आईपीएस ऑफिसर अमृता सिंह( जोया हुसैन)की है. झारखंड में चुनाव नजदीक है. सत्ता पक्ष के नेता केदार(सत्यकाम आनंद)विपक्ष के नेता संजय सिंह ( टीकम जोशी)के बढ़ते रसूख को देखते हुए 84 के दंगों की जांच के फिर से आदेश दे देता है. जिसमें विपक्ष के नेता का नाम हमेशा ही आया है लेकिन उसके खिलाफ कभी कोई सबूत नहीं मिल पाया.
अमृता को जांच कमिटी का प्रमुख बनाया गया है. जांच में दंगों की एक पुरानी तस्वीर उसे मिलती है जो उसके पिता(पवन मल्होत्रा)की होती है. क्या उसके पिता ने सिखों की हत्या की है. अपने युवा दिनों में ऋषि रंजन अब गुरसेवक सिंह क्यों बन गया है क्यों वह यह ज़िन्दगी जी रहा है. अमृता अपने पिता से सच जानना चाहती है लेकिन उसके पिता किसी भी कीमत पर तीन दशक पुराने इस राज को जाहिर नहीं करना चाहते हैं. क्या है वह राज? यही आगे की कहानी है.
कहानी को 2016 और 80 के कालखंड में कही गयी है. कहानी अतीत और वर्तमान से गुजरती रहती है. मौजूदा दौर की वेब सीरीज से इस सीरीज का विषय काफी अलग है इसके लिए मेकर्स को तारीफ करनी होगी जो उन्होंने समकालीन साहित्य को चुना और इतिहास के उस काले अध्याय को अपनी कहानी में जोड़ा है. जिस पर बहुत कम फिल्मों में बात हुई है. उस पर बात होते रहनी चाहिए ताकि अतीत का वो गुनाह सभी को सीख दें. सीरीज के संवाद में ये कहा भी गया है कि राजनीति में कुछ बदलता नहीं है बस टलता है और माहौल देखकर इतिहास खुद को दोहराता है.सीरीज पर आए तो समय के दोनों कालखंड कहानी में बखूबी पेश किए गए हैं.
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खामियों की बात करें तो कहानी का विषय जितना सशक्त और दिल को छू लेने वाला है परदे पर वह उस तरह से प्रभाव नहीं छोड़ पायी है. लेखनी कमज़ोर रह गयी है।कई बार कहानी खींची खींची सी जान पड़ती है. कहानी में दोहराव है साथ ही हिन्द नगर, डीएसपी मंडल जैसे कई घटनाक्रम कहानी में बेवजह से मालूम पड़ते हैं. अगर मेकर्स इसे और सीमित एपिसोड्स में बनाते तो यह सीरीज प्रभावी बन सकती थी. सीरीज की रफ्तार धीमी है. पहले के दो एपिसोड कहानी से जुड़ाव कर देते हैं लेकिन फिर कहानी बिखरती जान पड़ती है. आखिरी के दो एपिसोड कमज़ोर रह गए हैं खासकर सातवां एपिसोड.
अभिनय की बात करें तो पवन मल्होत्रा ने ग्रहण में एक बार फिर उम्दा परफॉर्मेंस दी है. जोया ने अमृता के किरदार में जंची है तो अंशुमान पुष्कर ने अपने किरदार को बखूबी जिया है. बाकी के कलाकारों का काम भी सराहनीय है. संवाद अच्छे बन पड़े हैं हम अक्सर दुनिया में चीजों को काले और सफेद में देखते हैं पर सच उसके बीच का रंग होता है. अमित त्रिवेदी के गीत कहानी के तालमेल बिठाते हैं. कुलमिलाकर सीरीज का कमज़ोर लेखन इस सीरीज को औसत बना गया है लेकिन अपने विषय की वजह से यह सीरीज एक बार देखी ज़रूर जानी चाहिए.