गढ़वा : राष्ट्रीय पटल पर एक बार फिर झारखंड का नाम सुर्खियों में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में गढ़वा जिले के रंका अनुमंडल स्थित सिंजो गांव निवासी आदिम जनजाति के पारा शिक्षक हीरामन कोरवा की तारीफ की. हीरामन ने 12 साल के अथक प्रयास और परिश्रम के बाद विलुप्त होती ऑस्ट्रो-एशियाई परिवार की जनजातीय कोरवा भाषा को संरक्षित करने के उद्देश्य से ‘कोरवा भाषा शब्दकोश’ तैयार किया है.
50 पन्नों के इस शब्दकोश में पशु पक्षियों से लेकर सब्जी, रंग, दिन, महीना, घर गृहस्थी से जुड़े शब्द, खाद्य पदार्थ, अनाज, पोशाक, फल सहित अन्य कोरवा भाषा के शब्द और उनके अर्थ शामिल किये गये हैं. प्रधानमंत्री ने हीरामन के कार्य को देश के लिए मिसाल बताया है.
झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं, जिनमें से नौ जनजातियां कोरवा सहित अन्य आदिम जनजाति वर्ग में आती हैं. 2011 में कोरवा आदिम जनजाति की आबादी 35 हजार 606 के आसपास थी. यह आदिम जनजाति मुख्य रूप से पलामू प्रमंडल के रंका, धुरकी, भंडरिया, चैनपुर, महुआटांड़ सहित अन्य प्रखंडों में निवास करती है.
इस समाज में शिक्षित लोगों की संख्या गिनी-चुनी है, इस कारण सरकार की ओर से मिलनेवाली सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं. कोरवा जनजाति के देवी-देवताओं में सिग्री देव, गोरिया देव, भगवान शंकर और पार्वती हैं. खुड़िया रानी इस पहाड़िया कोरवा आदिवासी समुदाय के सर्वोच्च देवता हैं.
पलामू के सांसद बीडी राम ने कहा कि हीरामन कोरवा द्वारा तैयार ‘कोरवा भाषा शब्दकोश’ विलुप्त होती आदिम जनजाति कोरवा की भाषा व संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए वरदान साबित होगा. सांसद ने बताया कि उक्त पुस्तक का लोकार्पण एक नवंबर 2020 को हुआ था.
साथियों! आइये अब बात करते हैं झारखंड की कोरवा जनजाति के हीरामन जी की. हीरामन, गढ़वा जिले के सिंजो गांव में रहते हैं. आपको यह जानकार हैरानी होगी कि कोरवा जनजाति की आबादी महज छह हजार है, जो शहरों से दूर पहाड़ों और जंगलों में निवास करती है. अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए हीरामन जी ने एक बीड़ा उठाया है.
उन्होंने 12 साल के अथक परिश्रम के बाद विलुप्त होती, कोरवा भाषा का शब्दकोश तैयार किया है. उन्होंने इस शब्दकोश में, घर-गृहस्थी में प्रयोग होनेवाले शब्दों से लेकर दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले कोरवा भाषा के ढेर सारे शब्दों को अर्थ के साथ लिखा है. कोरवा समुदाय के लिए हीरामन जी ने जो कर दिखाया है, वह देश के लिए एक मिसाल है.
पेशे से पारा शिक्षक हीरामन बताते हैं कि समय के साथ समाज के लोग कोरवा भाषा को भूलने लगे हैं. यह बात उन्हें बचपन से ही कचोटती थी. जब उन्होंने होश संभाला, तभी से उन्होंने कोरवा भाषा के शब्दों को एक डायरी में लिपिबद्ध करना शुरू कर दिया था. आर्थिक तंगी के कारण 12 साल तक यह शब्दकोश डायरियों में सिमटा रहा. फिर आदिम जनजाति कल्याण केंद्र (गढ़वा) और पलामू के मल्टी आर्ट एसोसिएशन के सहयोग से कोरवा भाषा शब्दकोश छप सका.
Posted By : Sameer Oraon