Jharkhand News, Garhwa News, गढ़वा (पीयूष तिवारी) : राजनीति के प्लेटफार्म पर बातें बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन धरातल पर उसे उतारते- उतारते हवा निकल जाती है. इसके उदाहरण के रूप में गढ़वा जिले के प्रसिद्ध बंशीधर मंदिर को देखा जा सकता है. जिले के नगरउंटारी (अब श्रीबंशीधर नगर) में स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए यहां बंशीधर महोत्सव की शुरुआत की गयी थी. इसके साथ-साथ इसके विकास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गयी, लेकिन सभी घोषणाएं हवा-हवाई ही साबित हुई है.
गढ़वा के बंशीधर मंदिर के विकसित करने की योजना जहां हवा- हवाई साबित हो रही है, वहीं पिछले 3 साल से बंशीधर महाेत्सव के आयोजन नहीं होने से लोगों ने सवाल भी उठाने लगे हैं. लोगों का कहना है जब हर साल चतरा के इटखोरी महोत्सव का अायोजन हो सकता है, तो बंशीधर महोत्सव के आयोजन को लेकर जनप्रतिनिधि रुचि क्यों नहीं दिखाते हैं.
बंशीधर मंदिर को विकसित करने को लेकर सरकार की तरफ से करोड़ों रुपये खर्च भी किये गये, लेकिन यह ऐतिहासिक मंदिर अब उपेक्षा की वजह से फिर से पूर्ववत स्थिति में पहुंच गयी है. लगातार 2 साल नगरउंटारी में दो-दो दिन का भव्य बंशीधर महोत्सव का आयोजन किया गया था. पहला आयोजन 26 व 27 मार्च, 2017 को तथा दूसरा आयोजन 24 व 25 मार्च, 2018 को किया गया था.
कला, संस्कृति एवं पर्यटन विभाग की ओर से पहले बंशीधर महोत्सव के आयोजन में 42.37 लाख रुपये तथा दूसरे आयोजन में 49.65 लाख रुपये खर्च किये गये थे. पहले आयोजन का उद्घाटन मुख्यमंत्री तथा दूसरे आयोजन का उद्घाटन राज्यपाल ने किया था, लेकिन इन 2 साल के बाद जिले के लोग अगले महोत्सव का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन, 3 साल से बंशीधर महोत्सव का आयोजन नहीं हुआ है. साल 2019, 2020 एवं 2021 में महोत्सव का आयोजन नहीं किये जाने से लोग निराश हो गये हैं.
बंशीधर मंदिर जिले के नगरउंटारी मुख्यालय में स्थित है. पहले बंशीधर महोत्सव के आयोजन वर्ष 2017 में ही इसका नाम बदलकर बंशीधर मंदिर के नाम पर ही श्रीबंशीधर नगर कर दिया गया था. इससे न सिर्फ नगरउंटारी क्षेत्र बल्कि पूरे गढ़वा जिले की पहचान देशस्तर पर इस मंदिर की बदौलत बन गयी थी. लेकिन, अब फीकी पड़ती नजर आ रही है. नाम बदलने के अलावे इसे मथुरा, वृंदावन आदि की तर्ज पर विकसित करते हुए श्रीकृष्ण सर्किट से जोड़ने की योजना बनायी गयी थी.
तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इसे हवाई मार्ग से जोड़ने की घोषणा भी की थी. इस ऐतिहासिक मंदिर के साथ- साथ जिले के प्रसिद्ध गढ़देवी मंदिर और केतार भगवती मंदिर को लेकर भी महोत्सव का आयोजन किया जाना था. लेकिन, सभी ठंडे बस्ते में चला गया है.
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पर्यटन के क्षेत्र में भी गढ़वा जिले के अन्य स्थल जिसमें सुखलदरी, गुरुसिंधू, सरुअत, राजा पहाड़ी आदि को भी विकसित करने की घोषणाएं हुई थी, लेकिन इस पर काम नहीं किया जा सका. झारखंड के अलावे यूपी, छत्तीसगढ़ व बिहार की सीमा भी श्रीबंशीधर नगर से सटी हुई है. इस वजह से यहां हर दिन काफी संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. यदि इसे श्रीकृष्ण सर्किट से जोड़कर विकास के कार्य कर दिये जाते, तो पूरे जिले के लोगों को रेाजगार के लिए दूसरा ठौर तलाशना नहीं पड़ता.
श्रीबंशीधर मंदिर में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा 32 मन यानी 1280 किलोग्राम अष्टधातु से बनी हुई है. सबसे दिलचस्प व रोचक बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण यहां अपनी इच्छानुसार आये हैं. कहीं भी पहले मंदिर बनता है, तब देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती है, लेकिन यहां पहले भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा लायी गयी. उसके बाद मंदिर का निर्माण किया गया. प्रतिमा की विशेषता है कि इसकी चमक आज भी यथावत है. प्रतिमा पर किसी तरह की पॉलिस नहीं की जाती है. बावजूद भगवान की प्रतिमा की चमक आज तक धूमिल नहीं हुई है.
श्रीबंशीधर मंदिर की स्थापना 1885 में हुई थी. किदवंतियों के अनुसार, नगरउंटारी गढ़ के तत्कालीन रानी शिवमानी कुंवर भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उपवास रख भगवान की आराधना में लीन थीं. भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान स्वयं रात में रानी के स्वप्न में प्रकट हुए और बताया कि वे सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला के दुद्धी थाना क्षेत्र के शिवपहरी नामक पहाड़ी पर जमीन के नीचे है.
स्वप्न के अनुसार, रानी ने खुद फावड़ा चलाकर खुदाई कार्य का शुभारंभ किया और खुदाई में भगवान की स्वप्न की तरह ही मनमोहक छवि वाली प्रतिमा मिली. इसे हाथी पर रख नगरउंटारी लाया गया. रानी प्रतिमा को अपने गढ़ के भीतर ले जाना चाहती थी, लेकिन दरवाजे के समक्ष हाथी बैठ गया और फिर उठ नहीं सका. भगवान की इच्छा जान वहीं प्रतिमा रख पूजन का कार्य आज तक किया जा रहा है.
Posted By : Samir Ranjan.