गढ़वा : गढ़वा शहर के मां गढ़देवी अस्पताल पर कारवाई के बाद जिले में खुले सभी निजी नर्सिंग होम के संचालकों में हड़कंप मच गया है. वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य विभाग की ओर भी उंगली उठ रही है. गढ़वा जिले में वर्तमान में कुल निबंधित निजी अस्पताल 110 है. लेकिन इसमें रोचक बात यह है कि इसमें से 55 अस्पताल सिर्फ गढ़वा शहर एवं आसपास के सटे क्षेत्रों में संचालित हो रहे हैं.
गढ़वा जैसे छोटे से शहर में इतनी संख्या में नर्सिंग होम सह अस्पताल के संचालन की अनुमति मिलने की वजह से स्वास्थ्य विभाग से जुड़े वरीय अधिकारी भी संदेह के घेरे में हैं. गढ़वा सदर अस्पताल 100 बेड का बनाया गया है. उसके बावजूद इतने निजी नर्सिंग होम का संचालन व उनके आर्थिक स्रोत कई सवाल खड़ा करता है. प्रशासन को चाहिए कि इसके पीछे किन लोगों की भूमिका है? इस मुद्दे पर गहराई से जांच हो.
गढ़वा शहर में अस्पताल सह नर्सिंग होम संचालन के निबंधित 55 अस्पतालों के अलावे करीब दो-तीन दर्जन अस्पताल ऐसे भी हैं, जो चोरी-छुपे बिना निबंधन के ही चल रहे हैं. हैरत की बात तो ये है कि यहां कई अस्पतालों में बगैर विशेषज्ञ चिकित्सकों के महिलाओं का प्रसव हो रहा है. यहां एक गौर करने वाली बात ये भी है कि गढ़वा जिले में जितने निजी अस्पताल चल रहे हैं, उतने यहां चिकित्सक भी नहीं हैं.
एक तरफ जहां गढ़वा शहर एवं आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में निजी अस्पतालों का निबंधन कर दिया गया है, तो वहीं दूसरी ओर गढ़वा जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में एक भी अस्पताल का निबंधन नहीं हुआ है. जबकि अस्पतालों की सबसे ज्यादा जरूरत ऐसे ही क्षेत्रों में है.
जिले के सुदूरवर्ती क्षेत्र भंडरिया, बड़गड़, रमकंडा व डंडा प्रखंड में एक भी निजी अस्पताल का निबंधन नहीं किया गया है. जबकि धुरकी, सगमा, विशुनपुरा एवं बरडीहा जैसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों में मात्र एक-एक निजी अस्पताल के संचालन की अनुमति दी गयी है. इसी तरह नगरउंटारी में आठ, भवनाथपुर, रंका व मझिगांव में पांच-पांच, मेराल में छह, चिनियां में चार, खरौंधी, रमना एवं डंडई में तीन-तीन अस्पताल निबंधित हैं. तो वहीं कांडी एवं केतार प्रखंड में दो-दो निजी अस्पताल निबंधित हैं.
गढ़वा जिले में संचालित निजी अस्पताल अपने को भव्य दिखाने के लिए बोर्ड पर अपने नाम के साथ रिसर्च सेंटर जोड़ दिये जाते हैं. जबकि अस्पतालों को रिसर्च सेंटर की मान्यता नहीं मिली है. इसके अलावे शहर में कुछ ऐसे भी निजी अस्पताल हैं, जो अपने दो-दो नाम रखकर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं. उपायुक्त आवास एवं कार्यालय के बगल में चंद्रिका अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर का बोर्ड लगा हुआ है. जबकि उसे मान्यता सिर्फ चंद्रिका अस्पताल के रूप में मिली हुई है. इसी तरह इस अस्पताल का एक नाम झारखंड हॉस्पिटल भी रखा गया है. जबकि इस नाम से जिले में किसी निजी अस्पताल को मान्यता नहीं मिली हुई है.
गढ़वा के अधिकांश निजी अस्पतालों का मुख्य आय का स्रोत महिलाओं के का सिजेरियन प्रसव कराना है. अस्पताल के बोर्ड पर एमबीबीएस डॉक्टरों के नाम तो अंकित हैं, लेकिन मरीजों का इलाज झोला छाप डाक्टर ही करते हैं. कुछ अस्पतालों को छोड़ दिया जाए तो किसी भी अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं.
निजी अस्पतालों में महिलाओं के प्रसव के बाद मनमाने तरीके से फी व दवा के नाम पर राशि की वसूली की जा रही है. बताया जाता है कि स्वास्थ्य सहिया व एएनएम की सेटिंग से महिलाएं प्रसव कराने के लिये सदर अस्पताल के बजाय इन अस्पतालों में पहुंचा दी जाती हैं. जहां बेहतर सुविधाओं का नाम पर हजारों रूपये उनसे वसूल लिये जाते हैं. उपायुक्त द्वारा जांच के बाद सील किये गये मां गढ़देवी अस्पताल के मामले में भी यही बात सामने आयी है कि यहां अनुबंध पर सेवारत एएनएम ही महिला मरीज को प्रसव के लिये भेजती थी. इस वजह से उस एएनएम को जेल भी भेज दिया गया है.
वहीं इस पूरे मामले पर गढ़वा के डीसी से सवाल किया गया तो उन्होंने कार्रवाई करने की बात कही. उन्होंने कहा कि बिना किसी कागज़ात और कुशल चिकित्सक के अस्पताल खोल कर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं, उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा. उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
रिपोर्ट- पीयूष तिवारी