गया. प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के शीर्ष नेता सह पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रमोद मिश्रा एवं अनिल यादव को बिहार एसटीएफ एवं सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने गिरफ्तार कर लिया है. गया में एक ही परिवार के चार लोगों को फांसी पर लटकाने वाले इन दोनों माओवादिओं को गया जिले के टिकारी थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया गया है. इनकी गिरफ्तारी के बाद सीआरपीएफ की कोबरा टीम प्रमोद से पूछताछ कर रही है. दोनों गिरफ्तार नक्सली कई कांडों के वांछित आरोपित है तथा उक्त दोनों नक्सली के विरुद्ध कांड दर्ज करते हुये अग्रिम कार्रवाई की जा रही है. उक्त दोनों नक्सलियों से पूछताछ कर आगे की कार्रवाई भी की जा रही है.
गुप्त सूचना पर हुई कार्रवाई
घटना के संबंध में बताया जाता है कि नक्सली प्रमोद मिश्रा उर्फ लव कुश अपने साथी अनिल यादव के साथ गया के टिकारी प्रखंड के पड़री के जरही टोला अपने रिश्तेदार के यहां आये थे. बिहार एसटीएफ को यह सूचना मिली थी कि माओवादी के शीर्ष नेता टिकारी थाना क्षेत्र में कहीं छुपे हैं. इसके बाद बिहार एसटीएफ एवं सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने छापेमारी कर इनको गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद अब इनकी निशानदेही पर नक्सली संगठन से जुड़े अन्य सहयोगियों और हथियारों का पता लगाने के लिए गया. जिले के इमामगंज, बांकेबाजार और डुमरिया थाना क्षेत्र में एक साथ कई ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है.
प्रमोद मिश्रा के घर पर इओयू ने भी की थी छापेमारी
माओवादी संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रमोद मिश्रा उर्फ मदन जी की संगठन में एक अलग पहचान थी. मीटिंग से लेकर कार्य योजना बनाने तक की जिम्मेवारी प्रमोद मिश्रा की थी. उनके कासमा स्थित आवास पर इओयू की टीम ने भी छापेमारी की थी. हालांकि क्या हासिल हुआ यह अब जानकारी नहीं दी गयी. औरंगाबाद जिले की बात करें, तो एक नहीं बल्कि दर्जनों मामले दर्ज हैं. औरंगाबाद एसपी स्वप्ना जी मेश्राम ने बताया कि औरंगाबाद जिले के विभिन्न थानों में वर्ष 2014 से लेकर 2022 तक 22 मामले प्रमोद मिश्रा पर दर्ज किये गये हैं. मदनपुर थाने में 17, देव थाने में चार और अंबा थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गयी है.
झारखंड पुलिस ने सरकार को भेजा था एक करोड़ रुपये के इनाम का प्रस्ताव
जानकारी के मुताबिक, कुछ साल पहले पुलिस ने माओवादियों के इस्टर्न रीजनल ब्यूरो का मुख्यालय कहे जाने वाले झारखंड के सारंडा के जंगलों में दबिश डाली थी. उस वक्त प्रमोद मिश्रा वहां मौजूद थे, जो पुलिस को चकमा देकर वहां से निकल भागे थे. इसके बाद से झारखंड की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़ी थी. झारखंड की पुलिस प्रमोद मिश्रा को गिरफ्तार करने के प्रति किस हद तक गंभीर थी, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस ने उन पर एक करोड़ के इनाम का प्रस्ताव सरकार को भेज रखा था.
चार लोगों की हत्या और घर बम से उड़ाने का है आरोप
14 नवंबर 2021 को डुमरिया के मोनबार जंगल से सटे इलाके में रहने वाले सरयू सिंह भोक्ता के घर हमला किया था. सरयू सिंह भोक्ता के दोनों बेटे सतेंद्र और महेंद्र और उनकी पत्नी मनोरमा देवी और सुनीता की हत्या कर दी था. इसके बाद चारों शव को फंदे पर लटका दिया. फिर बम से घर भी उड़ा दिया. वारदात के बाद नक्सलियों ने घर के बाहर एक पर्चा भी चिपकाया था. उसमें लिखा था, “इंसानियत के हत्यारे, गद्दारों और विश्वासघातियों को सजा-ए-मौत देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. ये हमारे चार साथियों अमरेश, सीता, शिवपूजन और उदय की हत्या का बदला है. षड्यंत्र के तहत 4 नक्सली को पूर्व में जहरखुरानी करके मरवाया गया था. वे एनकाउंटर में नहीं मारे गए थे. विश्वासघात के आरोप में 4 लोगों को सूली पर चढ़ा दिया. गद्दारों व विश्वासघातियों को ऐसी ही सजा दी जाएगी. इस हत्या में कुख्यात नक्सली प्रमोद मिश्रा और उसके साथी आरोपी हैं.
कभी सोहन दा, तो शुक्ला जी बन जाता प्रमोद
नक्सली समूह माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया में मिश्रा को पार्टी के अंदर सोहन दा, शुक्ला जी, कन्हैया, जगन भरत, नूर बाबा, बीवी जी, अग्नि, और बाण बिहार के नाम से जाना जाता है. इसे दिल्ली संचालन का भी प्रभारी बनाया गया था. प्रमोद मिश्रा हरियाणा, पंजाब और जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों में आंदोलन को सक्रिय करने में काफी मदद की थी. 2008 में गिरफ्तारी हुई थी, लेकिन प्रमोद मिश्रा को 2017 में सबूत के अभाव में रिहा कर दिया गया था. तब से वह अचानक से फरार हो गया था. देश के दक्षिणी राज्यों में सक्रिय हो गया था. इसके घर और रिश्तेदारों के घरों पर लगातार सुरक्षा एजेंसियों की छापेमारी होते रही है.
संगठन में पद को लेकर चल रहा था विवाद
प्रमोद मिश्रा की दूसरी बार गिरफ्तारी नक्सली संगठन के लिए एक बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि मिश्रा झारखंड के सारंडा स्थित भाकपा माओवादी के झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के कमांडर यानी सुप्रीमो पद की रेस में थे. इस पद के लिए मिश्रा के अलावा माओवादियों के पोलित ब्यूरो के एक और सदस्य मिसिर बेसरा भी दावेदार थे. कहा यह भी जा रहा है कि इस पद को लेकर दोनों में रस्साकशी चल रही थी. इसे लेकर संगठन में भी विवाद चल रहा था. उनकी गिरफ्तारी को इस विवाद से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
मुकदमे प्रमाणित नहीं हुए तो हो गये थे रिहा
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 2006 में भाकपा माओवादी का पोलित ब्यूरो सदस्य बनने के बाद पहली बार उनकी गिरफ्तारी 2008-09 में हुई थी. गिरफ्तारी के बाद लंबे समय तक वे औरंगाबाद समेत बिहार के सारण और अन्य जेलों के अलावा दूसरे राज्यों की जेलों में रहे. इस दौरान उन पर दर्ज मुकदमों की लंबे समय तक सुनवाई चली, लेकिन किसी भी मुकदमें में उन पर कोई आरोप प्रमाणित नहीं हो सका.आखिरकार अंतिम तौर पर वर्ष 2017 में औरंगाबाद से ही उनकी रिहाई हुई.
रिहाई के बाद हो गये थे भूमिगत
रिहाई के बाद प्रमोद मिश्रा अपने गांव कासमा में ही अपने नाम पर एक आश्रम प्रमोदाश्रम बनाकर रह रहे थे. एक साल तक वे आश्रम में ही रहे, लेकिन फिर वे अचानक आश्रम से इस कदर गायब हुए कि परिजनों तक को पता नहीं चला. गायब होने के बाद यह माना गया कि आश्रम में रहना उनके लिए खतरे से खाली नहीं रह गया था, लिहाजा वह भूमिगत होकर फिर से संगठन में चले गये. इसके बाद औरंगाबाद, गया और आसपास के जिलों के अलावा झारखंड के सीमावर्ती जिलों में होनेवाली हर नक्सली घटना में प्रायः उनका नाम आता रहा. इस तरह से भूमिगत होने के बाद से ही औरंगाबाद और आसपास के जिलों के विभिन्न थानों में उन पर दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज हो गये.
इधर-उधर शरण लेते रहे
कहा जा रहा है कि नक्सली कमांडर संदीप यादव के जिंदा रहने तक प्रमोद मिश्रा झारखंड की सीमा पर स्थित बिहार के छकरबंधा के जंगली इलाके में माओवादियों के संगठन को मजबूत करने में लगे थे. जून 2022 में छकरबंधा के इलाके को सुरक्षाबलों ने जब खाली करा दिया तो यह खबर निकल कर सामने आयी थी कि प्रमोद मिश्रा सारंडा चले गये हैं. इसके बाद पुलिस को भी यह पता नहीं चल पा रहा था कि प्रमोद कहां हैं. उसके बाद अचानक उनकी गिरफ्तारी हो गयी.