बौद्ध धर्मगुरु 14वें दलाईलामा ने बोधगया में आयोजित तीन दिवसीय टीचिंग कार्यक्रम के माध्यम से विश्व बिरादरी को एक बड़ा संदेश दिया. इसमें दलाई लामा ने व्यक्ति को जीवन मूल्यों को समझते हुए शांति की दिशा में अग्रसर होने का तो पाठ पढ़ाया ही, तिब्बत की स्वायतता को लेकर भी अप्रत्यक्ष रूप से चौतरफा घेराबंदी करने की पूरी कोशिश कर डाली.
दलाईलामा ने कालचक्र मैदान में अपने प्रवचन के दौरान बौद्ध परंपरा व दर्शन का प्रसार विश्व के ज्यादातर देशों में होने की बात कही व खास कर पश्चिमी देशों में इसका प्रभाव बढ़ने का भी संकेत दिया. उनकी टीचिंग को सुनने पहुंचे लगभग 50 देशों के अनुयायियों के समक्ष दलाई लामा ने बौद्ध परंपरा व बौद्ध महाविहारों को नुकसान पहुंचाने के चीन सरकार के कृत्य को उजागर करते हुए कटघरे में भी खड़ा किया है. दलाईलामा ने चीन सरकार के बारे में कहा कि वह बौद्ध परंपरा के खिलाफ है, जबकि चीन के ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं.
दलाई लामा ने तिब्बत की समस्या को भी पटल पर रखा और इसे अवसर में बदलने की सीख देने के बहाने विश्व के लोगों को तिब्बत की स्वायतता की मांग की ओर ध्यान आकृष्ट करा दिया. बोधगया की धरती से दलाईलामा ने यह भी संदेश दिया कि बौद्ध परंपरा का शासन बरकरार रहेगा, बल्कि और ज्यादा प्रसार होगा, चाहे कोई कितना भी नुकसान पहुंचाने का प्रयास करे.
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दलाई लामा ने 27 दिसंबर को यहां पालि व संस्कृत परंपरा के बौद्ध भिक्षुओं को एक मंच पर लाने के पंचवर्षीय कार्यक्रम का शुभारंभ किया. इसके इस एजेंडे में तिब्बत की प्राचीन संस्कृति की रक्षा करना भी शामिल है. इसका असर यह होगा कि पालि परंपरा से जुड़े दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के भिक्षु भी अपने अनुयायियों को तिब्बत की संस्कृति की रक्षा के प्रति प्रेरित करेंगे. इसकी सुगबुगाहट रविवार को कालचक्र मैदान में टीचिंग सुन रहे यूएसए, रूस व हंगरी के अनुयायियों के वक्तव्य से परिलक्षित होती दिखी. उन्होंने भी दलाई लामा से सहमति जताते हुए विश्व को शांति की राह पर चलने की बात कही.