Pitru Paksha 2022 in Gaya: पितृपक्ष में गयाजी पिंड दान करने से पितर को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. सोलह दिन तक चलने वाला यह श्राद्धपक्ष विशेष कर पितर के तर्पण के लिए पवन भूमि है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है. इस दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान कर्म किया जाता है. पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी, कौवे आदि को आहार दने की परंपरा है. गरुड़ पुराण में इसके महत्व को बताया गया है कि क्यों श्राद्ध में पंचबलि कर्म करना चाहिए. पंचबलि कर्म के अंतर्गत ही उपरोक्त पशु पक्षी को आहार प्रदान किया जाता है.
पितृपक्ष में पंचबलि कर्म किया जाता है. अर्थात पांच जीवों को भोजन दिया जाता है. बलि का अर्थ बलि देने नहीं बल्कि भोजन कराना भी होता है. श्राद्ध में गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता है. हमारे पितर किसी भी योनि में हो सकते हैं, इसलिए पंचबलि कर्म किया जाता है.
गाय को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है. घर से पश्चिम दिशा में गाय को पलाश के पत्तों पर गाय को भोजन कराया जाता है, तथा गाय को ‘गौभ्यो नम:’ कहकर प्रणाम किया जाता है. पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया है. अथर्ववेद के अनुसार- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत है. गाय में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है, जो भाग्य को जागृत करने की क्षमता रखती है. गाय को अन्न और जल देने से सभी तरह के संकट दूर होकर घर में सुख, शांति और समृद्धि के द्वारा खुल जाते हैं.
कुत्ते को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है. कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं. कुत्ता आपकी राहु, केतु के बुरे प्रभाव और यमदूत, भूत प्रेत आदि से रक्षा करता है. कुत्ते को प्रतिदिन भोजन देने से जहां दुश्मनों का भय मिट जाता है, वहीं व्यक्ति निडर हो जाता है.
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छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है. कौआ यमराज का प्रतीक है. यमलोक में ही हमारे पितर रहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया है. कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है. पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था, इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती. कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है. इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है.
पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता. उनके बिल हों, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता है. इससे सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती है.
देवबलि अर्थात पत्ते पर देवी देवतों और पितरों को भोजन परोसा जाता है. बाद में इसे उठाकर घर से बाहर उचित स्थान रख दिया जाता है.
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
मो. 8080426594/9545290847