भगवान विष्णु की पावन नगरी गयाजी यानी मोक्षधाम में पितरों को पिंडदान की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. पितृ पक्ष दिवंगत आत्माओं की शांति और उन्हें प्रसन्न करने, क्षमा मांगने और पितृ दोष (पूर्वजों का श्राप) से छुटकारा पाने के लिए होता है. इस दौरान श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं. इस तरह के अनुष्ठान फल्गु नदी में किए जाते हैं और उसके बाद विष्णुपद मंदिर, गया में विशेष प्रार्थना की जाती है. इस वर्ष 28 सितंबर से शुरू होने वाले मेले के लिए प्रशासनिक तैयारी शुरू कर दी गई है. तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने के लिए गया रबर डैम, शहर के घाट, सड़कें, मदिरों आदि की साफ-सफाई अभी शुरू कर दी गई है. साथ ही इनके सौंदर्यीकरण का भी काम किया जा रहा है.
54 वेदी स्थल सुरक्षित बचे हैं
प्राचीन काल में गया में 365 पिंड वेदियां व दर्शनीय स्थल हुआ करते थे. इनमें से 360 स्थलों को वेदी स्थल के रूप में मान्यता थी. लेकिन सही से रखरखाव नहीं होने व अतिक्रमण होने से शहर में अब केवल 54 वेदी स्थल ही सुरक्षित बचे हैं, जहां देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड संपन्न कर रहे हैं.
पितृपक्ष मेले में हर वर्ष आते हैं 10 से 15 लाख तीर्थयात्री
नारद पुराण, वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख भी वर्णित है. वैसे तो यहां सालों भर पिंडदान के लिए देश-विदेश के लोग आते रहे हैं. लेकिन विशेषकर आश्विन मास में 17 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पितृपक्ष मेले का आयोजन सालों से होता आ रहा है. हाल के कुछ वर्षों में इस मेले में देश-विदेश से 10 से 15 लाख तक तीर्थयात्री आते हैं.
360 वेदियों पर पिंडदान करने का नियम
गया दर्पण पुस्तक की माने तो प्राचीन समय में चंद्रमा की वार्षिक 360 कलाओं को आधार बनाकर 360 वेदियों पर पिंडदान करने का नियम था. शास्त्रीय रूप से गया का विस्तार पांच कोस यानी 15 किलोमीटर में माना गया है. इसके विभिन्न भागों में ये 360 वेदियां स्थित थीं. वर्तमान में इनकी संख्या सिमट कर केवल 54 रह गयी है. इनमें भी कई वेदियां जीर्णोद्धार को तरस रही हैं.
तीर्थयात्रियों से तीन माह पहले से पंडा समाज के लोग करते हैं संपर्क
मेला शुरू होने के करीब तीन महीना पहले से ही पंडा समाज व उनके यजमान का एक-दूसरे के बीच संपर्क व संवाद शुरू हो जाता है. इस बार भी पंडा द्वारा अपने यजमानों से संपर्क शुरू किया गया है. पंडा समाज के लोगों की माने तो इस वर्ष पितृपक्ष मेले में 15 लाख तक तीर्थयात्री पहुंच सकते हैं. तीर्थ वृति सुधारणी सभा के महामंत्री मणिलाल बारीक ने बताया कि गयाजी डैम, सीता पुल के बन जाने से बीते वर्ष 2022 में इस मेले में 12 लाख से अधिक पिंडदानी यहां आकर अपने पितरों के मोक्ष प्राप्ति की कामना के उद्देश्य से पिंडदान व श्राद्धकर्म का कांड कर्मकांड संपन्न कर चुके हैं.
28 सितंबर से शुरू हो रहा मेला
17 दिवसीय पितृपक्ष मेला इस बार 28 सितंबर से शुरू हो रहा है. इस मेले का समापन 15 अक्तूबर को होगा. अलग-अलग तिथियों को अलग-अलग वेदी स्थलों पर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का विधान है. पिंडदान का कर्मकांड करा रहे पंडित भानु कुमार शास्त्री के अनुसार गयाश्राद्ध में मुंडनकर्म का निषेध माना गया है. उन्होंने कहा कि वायु पुराण में यह वर्णित भी है.
मलमास शुरू होने के बाद गया में बढ़ने लगी भीड़
मलमास शुरू होने के बाद से पितृपक्ष मेला क्षेत्रों में पिंडदानियों की तेजी से भीड़ बढ़ने लगी है. देश के विभिन्न राज्यों से काफी तीर्थयात्री फल्गु नदी तट के देवघाट, गदाधर घाट, विष्णुपद क्षेत्र, सीता कुंड सहित कई अन्य वेदी स्थलों पर अपने पितरों के आत्मा की शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में पूरा कर रहे हैं.
अधिमास में पिंडदान का है विशेष महत्व
वायु पुराण सहित कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में अधिमास में पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है. उन्होंने कहा कि अधिमास में पिंडदान करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को न केवल वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है, बल्कि पिंडदान का कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं को भी पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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पितृ पक्ष मेले के प्रमुख आकर्षण
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पवित्र डुबकी : अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गयाजी आए श्रद्धालु फल्गु नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाने सहित सभी अनुष्ठान अत्यंत भक्ति के साथ करते हैं.
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भोजन प्रसाद : पितृपक्ष मेला में पहुंचे लोग अपने पूर्वजों के लिए भोजन प्रसाद बनाते हैं. जिसमें आम तौर पर लापसी, खीर, दाल, पीली लौकी की सब्जी और चावल होते है. इस भोजन को तांबे या चांदी के बर्तन में बनाया जाता है. इसके बाद इसे सूखे पत्तों या केले के पत्तों पर कौआ को खाने के लिए रखा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यदि कौआ उड़कर भोजन खा लेता है तो प्रसाद स्वीकार कर लिया जाता है, क्योंकि पक्षी को पूर्वजों की आत्माओं या यम का दूत माना जाता है. इसके अलावा यह खाना पुजारी, कुत्ते और गाय को भी खिलाया जाता है.
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मन्दिरों में पूजा : गया शहर में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जिनकी पूजा करने के लिए देश विदेश से लोग आते हैं. पितृ पक्ष मेले के दौरान आए लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इन मंदिरों में देवताओं की पूजा करते हैं. ऐसा पूर्वजों की शांति के लिए किया जाता है.
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श्राद्ध कर्म : श्राद्ध कर्म अनुष्ठान में पूर्वजों को पिंड अर्पित किया जाता है. इस अनुष्ठान का निर्देश में नदी में खड़े होकर अपने हाथों से पानी छोड़ा जाता है फिर सोने की पुतली या शालिग्राम पत्थर के रूप में भगवान विष्णु और मृत्यु के देवता भगवान यम की पूजा की जाती है.
इन वेदी स्थलों पर पिंडदान का है विधान
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28 सितंबर (भाद्रपद चतुर्दशी) – पुनपुन पांवपूजा या गोदावरी श्राद्ध.
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29 सितंबर (भाद्रपद पूर्णिमा) – फल्गु स्नान श्राद्ध एवं पूजा खीर का पिंड.
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30 सितंबर (आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि )- प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबली.
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01 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि) – उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिव्हालोल व गदाधर जी का पंचामृत स्नान.
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02 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि) – बोधगया के सरस्वती स्नान व पंचरत्न दान, तर्पण, धर्मारण्य, मातंगवापी, व बौद्ध दर्शन.
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03 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि) – ब्रह्मसरोवर श्राद्ध, काकबलि श्राद्ध, तारक ब्रह्म का दर्शन व आम्रसिंचन
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04 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि) – विष्णुपद स्थित 16 वेदी में रूद्र पद, ब्रह्म पद, विष्णुपद श्राद्ध व पांव पूजा.
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05 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि) – 16 वेदी में कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गाहर्पत्यागनी पद व आहवनयाग्नि पद.
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06 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि) – 16 वेदी में सूर्यपद, चंद्र पद, गणेश पद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्नि पद व दघिची पद.
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07 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि) – 16 वेदी में मतंग पद, क्रौंच पद, इंद्र पद अगस्त्य पद कश्यप पद, गजकर्ण पद, दूध तर्पण व अन्नदान.
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08 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी तिथि) – राम गया श्राद्ध, सीताकुंड (बालू का पिंड) सौभाग्य दान व पांव पूजा.
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09 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष दशमी तिथि) – गया सिर, गया कूप (त्रिपिंडी श्राद्ध), पितृ व प्रेत दोष निवारण श्राद्ध.
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10 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि) – मुंड पृष्ठ श्राद्ध (आदि गया) धौतपद श्राद्ध व चांदी दान.
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11 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि) – भीम गया, गौ प्रचार व गदा लोल श्राद्ध.
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12 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि) – विष्णु भगवान का पंचामृत स्नान, पूजन, फल्गु में दूध तर्पण व दीपदान.
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13 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि) – वैतरणी श्राद्ध, तर्पण व गोदान.
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14 अक्तूबर (आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि) – अक्षयवट श्राद्ध (खीर का पिंड) शैय्या दान, सुफल व पितृ विसर्जन.
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15 अक्तूबर (आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि) – गायत्री घाट पर दही चावल का पिंड, आचार्य को दक्षिणा व पितृ विदाई.