अपने पूर्वजों की जड़ की खोज में साउथ अफ्रीका के केपटाउन में रह रहे शनील हरिचरण गुरुवार को अतरी थाना क्षेत्र के सारसू गांव पहुंचे. मगध विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के प्रोफेसर पूर्व विभागाध्यक्ष मनीष सिन्हा ने उनकी इस यात्रा का समन्वय किया.
प्रो सिन्हा ने बताया कि शनिल हरिचरण के परनाना के पिताजी बुलाकी रजवार जुलाई 1864 में कोलकाता बंदरगाह से ब्लाइनहिम नामक जहाज पर गिरमिटिया मजदूर के रूप में साउथ अफ्रीका के नटाल गये थे. उसी जहाज पर खरिया नामक महिला भी थी, जिनसे साउथ अफ्रीका पहुंचने पर बुलाकी ने विवाह किया. शनिल इन्हीं के वंशज हैं और केपटाउन विश्वविद्यालय में नेल्सन मंडेला स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के डायरेक्टर हैं.
शनिल नेल्सन मंडेला की पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे तथा रंग भेद की नीति के खिलाफ भूमिगत हो कर उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया था, जिसका वृतांत पेंगुइन प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है, जिसके वे सह संपादक हैं.
सारसू गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने शनिल का भव्य स्वागत किया. इस मौके पर प्रो मनीष सिन्हा तथा नादरीगंज के पूर्व बीडीओ अमरेश मिश्रा ने ग्रामीणों से शनिल का परिचय करवाया. शनिल ने अपनी टूटी फूटी हिंदी में ग्रामीणों से वार्तालाप किया और कहा कि यहां आकर वह भाव विभोर हैं. उनके पास शब्द नही हैं जिनके माध्यम से वह अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें. उन्होंने कहा कि लगभग 168 वर्ष समयांतराल के कारण उनके प्रत्यक्ष परिवार की खोज तो शायद असंभव है, पर, उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पूरा गांव ही उनका परिवार है.
प्रो सिन्हा ने कहा कि बुलाकी रजवार 1864 में गये थे जो कि 1857 के विद्रोह के कुछ ही वर्षों के बाद की ही घटना है. इसमें इस क्षेत्र के रजवारों की सक्रिय भूमिका थी. संभव है कि बुलाकी का साउथ अफ्रीका प्रवसन का संबंध रजवार विद्रोह से हो जिस पर और शोध की आवश्यकता है. अमरेश मिश्रा ने अपने प्रशासनिक अनुभव से क्षेत्र की विशेषताओं से शनिल को परिचय कराया. इस अवसर पर सारसू पंचायत के मुखिया रूपेंद्र कुमार, सरपंच प्रतिनिधि सुनील कुमार, पंचायत समिति सदस्य अशोक कुमार, पंच रामाशीष राजवंशी, जेठियन के दिनेश सिंह व रंजीत कुमार और सारसू के बाबू सिंह की भागीदारी उल्लेखनीय रही.