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गिरिडीह : नगर निगम क्षेत्र से दर्जनाधिक सरकारी कुएं गायब, गर्मी में बुझती थी बड़ी आबादी की प्यास

जानकारी के मुताबिक शहरी क्षेत्र में दो दशक पूर्व तक 30-40 सरकारी कुएं थे. इन कुओं के पानी का उपयोग संबंधित इलाकों की बड़ी आबादी करती थी. शहरी क्षेत्र में चापाकलों की संख्या कम रहने एवं वाटर ट्रीटमेंट प्लांटों से शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति कम रहने की स्थिति में इस पानी का इस्तेमाल करते थे.

सूरज सिन्हा, गिरिडीह : गिरिडीह नगर निगम क्षेत्र स्थित कई सरकारी कुएं गायब हो गये हैं. कई सरकारी कुओं में कूड़ा-कचरा डाल कर उनका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया है. ऐसे में कल तक जो कुएं लोगों की प्यास बुझाते थे, आज कूड़ेदान में तब्दील हो गये हैं. इस पर न तो सरकारी महकमा का कोई ध्यान है और न ही यहां के जनप्रतिनिधियों का. यही वजह है कि एक के बाद एक कुएं गायब होते जा रहे हैं और उसकी जमीन पर अतिक्रमण कर लिया जा रहा है.

दो दशक पूर्व में शहरी क्षेत्र में थे 30-40 कुएं

जानकारी के मुताबिक शहरी क्षेत्र में दो दशक पूर्व तक 30-40 सरकारी कुएं थे. इन कुओं के पानी का उपयोग संबंधित इलाकों की बड़ी आबादी करती थी. शहरी क्षेत्र में चापाकलों की संख्या अपेक्षाकृत कम रहने एवं वाटर ट्रीटमेंट प्लांटों से शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति कम या बाधित रहने की स्थिति में लोग इन्हीं कुओं के पानी का इस्तेमाल किया करते थे. शहरी क्षेत्र के बड़ा चौक, मकतपुर, पचंबा, बिशनपुर, गांधीचौक, बक्सीडीह, बाभनटोली, बरवाडीह समेत अन्य स्थानों में कुएं के पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों में किया जाता था. वर्तमान में सरकारी कुआं के अस्तित्व को बचाने की मांग तेज होने लगी है.

जलस्तर नीचे चले जाने से सूख गये कई कुएं

शहरी क्षेत्र की आबादी बढ़ने एवं फ्लैट व आवास बनने से लोग अपने घरों में डीप बोरिंग कराने लगे. पानी की खपत बढ़ने से जलस्तर घटने लगा और आसपास स्थित कुएं धीरे-धीरे सूखने लगे. इस बीच नगर परिषद और बाद में नगर निगम समेत अन्य संबंधित विभागों ने इन कुओं के संरक्षण का कोई उपाय नहीं किया. हालांकि कई सामाजिक संगठनों ने सरकारी महकमों से कुओं को गहरा कराने की मांग की थी, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई. कुओं को गहरा किया जाता तो इनका अस्तित्व बचा रहता. पूरी तरह सूख चुके कुएं में लोग लोग कूड़ा-कचरा फेंकने लगे. कुछ ही वर्षों में दर्जनाधिक कुएं कूड़े से भर दिये गये. जिन सूखे कुंओं का अभी कुछ अस्तित्व बचा है, वे कूड़ेदान के रूप में इस्तेमाल किये जा रहे हैं.

कई कुओं का अस्तित्व हो गया समाप्त

जानकार बताते हैं कि शहरी क्षेत्र के गांधी चौक, मकतपुर, बड़ा चौक, केंद्रीय पुस्तकालय के पास, इंदिरा कॉलोनी, राजपूत मुहल्ला, बोड़ो समेत पचंबा में कई कुओं का अस्तित्व समाप्त हो गया है. बताया जाता है कि जिस वक्त इन कुओं की स्थिति अच्छी थी, उस वक्त घरों के अलावा दुकानों व ठेले वाले इसके पानी का उपयोग करते थे. कई भार वालों की आजीविका भी इन कुओं पर निर्भर थी.

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नगर निगम क्षेत्र में हैं 24 तालाब

नगर निगम क्षेत्र में सरकारी तालाबों की संख्या 24 है. हालांकि एक दशक पूर्व कुछेक तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो गया. निगम सूत्रों के मुताबिक रानी तालाब, बुढ़वा आहर तालाब, लखारी तालाब, बरमसिया तालाब, महादेव तालाब, झगरी तालाब, मानसरोवर तालाब, बोड़ो तालाब, सीताराम उपाध्याय पार्क तालाब, हरिजन टोला तालाब, ललकी तालाब, जोरबाद मुहल्ला तालाब, धोबिया अहरी तालाब, चुरचुरवा तालाब, हरिजन टोला तालाब, मोहलीचुआं तालाब, चैताडीह तालाब, बक्सीडीह तालाब, अंबाटांड़ तालाब, परातडीह तालाब, सरैयाडीह तालाब, नौवाअहरा, डोमाअहरा तालाब व भोरंडीहा में बुढ़वा आहर तालाब आदि हैं.

नगर निगम को सरकारी कुओं को हैंडओवर नहीं किया गया है. नगर निगम की ओर से सरकारी कुओं का निर्माण नहीं कराया गया है. किस एजेंसी ने सरकारी कुओं का निर्माण कराया है, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है. सर्वे नहीं होने के कारण शहरी क्षेत्र में अवस्थित सरकारी कुओं का वास्तविक डाटा निगम के पास नहीं है. महापर्व छठ के बाद सरकारी कुओं का सर्वे कर निगम को हैंडओवर करने की मांग जिला प्रशासन से की जायेगी. इसके बाद सरकारी कुओं का जीर्णोद्धार कराया जायेगा. जिन कुओं में कूड़ा-कचरा डाला गया है, उसकी सफाई करायी जायेगी. साथ ही उक्त कुओं के आस-पास रहने वाले लोगों को नोटिस भी दिया जायेगा.

स्मृता कुमारी, उप नगर आयुक्त

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