गिरिडीह, राकेश सिन्हा : जैनियों के पूज्य मुनि आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज शनिवार (28 जनवरी, 2023) को अपना मौन व्रत तोड़ेंगे. पिछले 557 दिनों से श्री प्रसन्न सागर जी पारसनाथ पर्वत की सर्वोच्च चोटी पर स्थित गुफा में तपस्या में लीन थे. पारसनाथ टोंक के पास स्थित गुफा में उन्होंने मौन व्रत धारण करते हुए 496 दिनों का निर्जला उपवास भी रखा था. उन्होंने 61 दिनों तक लघु पारणा की, जबकि इस दौरान 15 दिनों तक लगातार निर्जला उपवास पर थे. आचार्य प्रसन्न सागर जी शनिवार को सुबह पारसनाथ पर्वत से नीचे मधुबन में पहुंचेंगे. जहां भव्य समारोह का आयोजन किया गया है. 557 दिन बाद उनके मुख से पहला वचन क्या निकलेगा, यह सुनने के लिए श्रद्धालु बेचैन हैं.
3500 दिन से ज्यादा उपवास पर रहे प्रसन्न सागर जी
प्रसन्न सागर जी मध्य प्रदेश के छतरपुर के रहने वाले हैं. उनका जन्म 23 जुलाई 1970 को हुआ था और 12 अप्रैल 1986 में मात्र 16 वर्ष की आयु पर इन्होंने ब्रह्मचार्य व्रत रखा. इसके बाद 18 अप्रैल 1989 में इन्होंने मुनि दीक्षा ली. फिर 23 नवंबर 2019 में आचार्य पद हासिल हुआ. प्रसन्न सागर जी ने अब तक एक लाख किलोमीटर से भी ज्यादा की पैदल यात्रा की है. जबकि दीक्षा काल से 3500 दिन से ज्यादा उपवास पर रहे. कहते हैं कि इस तरह की कठिन व्रत की साधना जैन तीर्थंकर भगवान महावीर ने की थी.
स्वयं को बदलों है मूल सिद्धांत
मौन व्रत में जाने से पहले इन्होंने अपने मूल सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा था कि मैं चाहता हूं कि यदि तुम्हे कोई एक चीज बदलना है तो सिर्फ अपने आप को बदलो, तुम्हारे बदले बिना संसार नहीं बदलेगा. साधु-संतों की चर्चा करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया था कि साधु-संतों की जरूरत है, पर इतनी नहीं है जितनी संख्या में आज नजर आते हैं. आज देश में 60 लाख साधु-संत विचरण कर रहे हें. यदि वे छह को ही बदल दें तो धरती स्वर्ग बन जायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. भारत के भविष्य पर उनका मानना है कि भारत के भविष्य को वे शिखर की उंचाइयों पर देख रहे हैं. उन्हें विश्वास है कि देश आध्यात्मिक उंचाइयों पर होगा और विश्व गुरु कहलायेगा.
कई उपाधियों से हुए हैं सम्मानित
आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज कई उपाधियों से अब तक सम्मानित हो चुके हैं. गुजरात सरकार ने साधना महोदधि की उपाधि से विभूषित किया. जबकि वियतनाम विश्वविद्यालय से इन्हें डॉक्ट्रेट की मानक उपाधि मिली है. इंडिया बुक रिकाॅर्ड, एशिया बुक रिकाॅर्ड और गिनिज बुक रिकाॅर्ड में भी विभिन्न कृतियों के कारण इनका नाम दर्ज है. मानवीय मूल्यों की रक्षा, परस्पर मैत्री, वात्सल्य व शांति का संदेश के कारण भी इन्हें सम्मानित किया गया है. ब्रिटेन की संसद में सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा आचार्य प्रसन्न जी को भारत गौरव सम्मान से भी सम्मानित किया गया है.