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गिरिडीह : जनरल कैटेगरी में एडमिशन कराने को मजबूर आदिवासी विद्यार्थी, नहीं बन रहा आवासीय व जाति प्रमाण पत्र

गिरिडीह जिला अंतर्गत गावां के आदिवासी विद्यार्थी इन दिनों काफी परेशान हैं. आवासीय व जाति प्रमाणपत्र नहीं बनने के कारण प्लस टू हाई स्कूल में एडमिशन कराने में परेशानी हो रही है. अब तो आदिवासी विद्यार्थी जनरल कैटेगरी में एडमिशन कराने को मजबूर हैं.

गांवा (गिरिडीह), विनोद पांडेय : आवासीय, जाति आदि प्रमाणपत्र नहीं बन पाने से गिरिडीह जिला अंतर्गत गावां प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा व नौकरी आदि में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सुदूर क्षेत्रों में स्थित गांव तिलैया, खैनियापहरी, बलथरवा, दुधपनियां, ओड़पोडो व डुमरझारा आदि गांवों में रह रहे आदिवासी परिवार के काफी संख्या में बच्चे जाति आवासीय आदि से वंचित हैं. यहां के छात्र-छात्राओं को अनुसूचित जनजाति का होने के बावजूद जनरल कैटेगरी से प्लस टू उच्च विद्यालय में नामांकन लेना पड़ रहा है. यही स्थिति का सामना उन्हें विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी करना पड़ रहा है. आदिवासी छात्र-छात्राएं जेनरल कैटेगरी का शुल्क देकर प्लस टू विद्यालय में नामांकन करवाने को विवश हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें छात्रवृत्ति व सरकार द्वारा प्रदत्त अन्य सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं. सरकारी नौकरियों में भी वे आरक्षण के लाभ से वंचित हो जा रहे हैं.

किस प्रकार की हो रही है परेशानी

इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी परिवार वर्षों से वहां रह रहे हैं. इनके पूर्वज दशकों पूर्व सुदूर जंगली भूभागों में आकर बस गये थे. इनके पास जमीन से संबंधित खतियान आदि नहीं है. वर्ष 1961- 62 में अंचल या वन विभाग द्वारा पट्टा दिया है. तब से वे स्थायी तौर पर घर बनाकर वहां रह रहे हैं. वहीं आस-पास की समतल जमीन पर कृषि, पशुपालन, पत्तल, रस्सी आदि बनाने के अलावा मेहनत मजूरी कर जीवनयापन करते आ रहे हैं. दो दशक पूर्व इन क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर अत्यंत गिरा हुआ था. क्षेत्र में उग्रवाद चरम सीमा पर था. विद्यालयों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी. इस क्षेत्र के लोगों ने उग्रवाद का जान पर खेलकर विरोध भी किया था. फलत: वर्तमान में क्षेत्र में शांति हैं. इस समय विद्यालयों की स्थिति सुधरी है और इन आदिवासी परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हुए हैं, लेकिन प्रमाणपत्र की समस्या इनके आगे बढ़ने में बाधक बन रही है. दो सप्ताह पूर्व अपने अधिकार के लिए हजारों की संख्या में आदिवासी समूह के लोग प्रखंड सह अंचल कार्यालय के समक्ष रैली व जनसभा कर गावां अंचल कार्यालय व अनुमंडल कार्यालय खोरिमहुआ में ज्ञापन भी सौंपा चुके हैं, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है. लोगों का कहना है कि आवासीय बनाने के लिए जहां खतियान की मांग की जा रही है, वहीं जाति के लिए भी खतियान व जमीन रजिस्ट्री से संबंधित डीड मांगा जा रहा है, जिसमें जाति का जिक्र हो. उक्त कागजातों के अभाव में उनके आवेदन को रद्द कर दिया जा रहा है.

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जनरल कैटेगरी में छात्र-छात्राओं ने किया है आवेदन

इस समय प्रमाण पत्रों के अभाव में इन क्षेत्रों के आदिवासी छात्र-छात्राओं को जनरल कैटेगरी में प्लस टू विद्यालय में नामांकन लेकर पढ़ाई करनी पड़ रही है. उक्त क्षेत्र के छोटू हांसदा, पिता स्वर्गीय बाबूलाल हांसदा, दुर्गा सोरेन, पिता बुधु हांसदा ने गावां में इंटर में नामांकन लिया है. लेकिन, जाति प्रमाण पत्र के अभाव में उनका जेनरल कैटेगरी से नामांकन हुआ है. जगना सोरेन, पिता सुखु सोरेन उउवि पसनौर में जेनरल कैटेगरी में नामांकन करवा कर पढ़ रहे हैं. इसी प्रकार रेणु कुमारी, पिता दासो हांसदा एवं सुनीता कुमारी पिता सुनील हांसदा, ललिता कुमारी पिता घुड़का सोरेन जाति प्रमाणपत्र के अभाव में प्रोजेक्ट कन्या उवि गावां में जेनरल कैटेगरी में नामांकन लेकर पढ़ाई करने को विवश हैं. उक्त छात्र-छात्राओं ने बताया कि प्रमाण पत्र बनवाने के लिए प्रज्ञा केंद्रों में खतियान, जमीन की डीड या नौकरी से संबंधित सर्विस बुक की कॉपी मांगी जा रही है. इन कागजातों के अभाव में उनका आवेदन रद्द कर दिया जा रहा है.

क्या है राज्य सरकार का दिशा निर्देश

स्थानीय निवासी के लिए राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट दिशा निर्देश दिया गया है. सात अप्रैल, 2016 को कैबिनेट की बैठक में कार्मिक विभाग ने इस संदर्भ में संकल्प लेते हुए 18 अप्रैल को इसे प्रकाशित किया था. संकल्प में साफ है कि प्रमाणपत्र के लिए खतियान जरूरी नहीं है. प्रमाणपत्र उसे जारी किया जा सकता है, जो स्थानीय प्रमाणपत्र जारी करने के संदर्भ में तय छह मानकों में एक पर भी खरा उतरता है. इसके लिए वैसे लोग, जो झारखंड की भौगोलिक सीमा में निवास करता हो. स्वयं या पूर्वज के नाम से खतियान में नाम दर्ज हो. भूमिहीन के मामले में उसकी पहचान संबंधित ग्रामसभा द्वारा होगी. किसी व्यापार, नियोजन एवं अन्य कारणों से झारखंड में 30 साल या अधिक अवधि से निवास कर रहा हो अथवा चल या अचल संपत्ति अर्जित की हो. ऐसे व्यक्ति की पत्नी या संतान को प्रमाणपत्र जारी होगा. झारखंड सरकार द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त संस्थानों, निगम आदि में नियुक्ति एवं कार्यरत पदाधिकारी व कर्मचारी या उसकी पत्नी-पति या संतान हों. भारत सरकार का पदाधिकारी या कर्मचारी, जो झारखंड में कार्यरत हो, उसकी पत्नी या संतान को प्रमाणपत्र जारी किया जायेगा. झारखंड में किसी संवैधानिक या विधिक पदों पर नियुक्त व्यक्ति या उसकी संतान को भी इसका लाभ मिलेगा. ऐसा व्यक्ति, जिसका जन्म झारखंड में हुआ होता, जिसने मैट्रिकुलेशन या समकक्ष स्तर की पूरी शिक्षा झारखंड स्थित मान्यता प्राप्त संस्थानों से पूरी की हो.

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कहां आ रही है परेशानी

इस समय आवेदकों से खतियान के लिए प्रज्ञा केंद्र व हल्का कर्मचारी खतियान के लिए विशेष दबाव देते हैं व अक्सर टालमटोल कर उन्हें परेशान किया जाता है. सबसे अधिक परेशानी जाति प्रमाणपत्र बनाने में आ रही है. आवेदकों को जाति प्रमाणपत्र बनाने के लिए आवासीय प्रमाणपत्र के अलावा जाति से संबंधित कोई दस्तावेज आवेदन में लगाना होता है, जिसमें संबंधित जाति का जिक्र हो. इसके लिए भी खतियान या जमीन रजिस्ट्री से संबंधित डीड मांगा जाता है, जिसे लोग जमा नहीं कर पा रहे हैं. इसके कारण स्थानीय बन जाता है, लेकिन जाति प्रमाणपत्र नहीं बन पाता है. हालांकि इसके लिए भी ग्राम सभा के माध्यम से बनाने का स्पष्ट निर्देश है, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण यह सब नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण गरीब आदिवासी परिवार के बच्चों को आरक्षण, छात्रवृति आदि का लाभ नहीं मिल पा रहा है.

क्या कहते हैं लोग व जनप्रतिनिधि

इस संबंध में पूर्व विधायक राजकुमार यादव ने कहा कि गरीब आदिवासी परिवारों का प्रमाणपत्र नहीं बनना भारी चिंता का विषय है. इस दिशा में विभागीय पदाधिकारियों को ध्यान देते हुए इसका हल निकालना चाहिए. सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी परिवार के बच्चों के साथ हो रहे इस क्रूर अन्याय को भाकपा माले बर्दाश्त नहीं करेगी. मामले में जन आंदोलन किया जायेगा.

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ग्राम सभा का आयोजन कर हल निकाला जाए : मुन्ना सिंह

वहीं, विधायक प्रतिनिधि मुन्ना सिंह ने कहा कि वर्तमान सरकार में विभागीय पदाधिकारी आम लोगों की समस्याओं से कटे हैं. आदिवासी समाज लगातार आवाज उठाता रहा है, लेकिन इस दिशा में ठोस पहल नहीं किया जाना चिंता का विषय है. इनकी समस्याओं का निराकरण पदाधिकारी शीघ्र करें. मामले में ग्राम सभा का आयोजन कर उसका हल निकाला जाए.

समाधान की दिशा में पहल की जरूरत : अजय कुमार सिंह

गावां के बीस सूत्री अध्यक्ष अजय कुमार सिंह ने कहा कि इस संबंध से वरीय पदाधिकारियों से मिलकर समाधान की दिशा में पहल की जायेगी. आवश्यकता पड़ने पर सरकार के पास भी पत्राचार किया जायेगा, जिससे प्रमाणपत्र संबंधित अड़चनों को दूर किया जा सके. बीस सूत्री के सभी सदस्य संबंधित क्षेत्रों में जाकर उनकी समस्याओं का अध्ययन करेंगे.

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प्रमाण पत्र जारी नहीं करना घोर अन्याय : रमेश हांसदा

बलथरवा के सामाजिक कार्यकर्ता रमेश हांसदा ने कहा कि हमलोग लंबे समय से प्रमाण पत्र व वनाधिकार को लेकर आंदोलनरत हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है. प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाना घोर अन्याय है. यदि मामले का शीघ्र समाधान नहीं हुआ, तो पूरे समाज के लोग प्रखंड सह अंचल कार्यालय के समक्ष अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ जायेंगे.

संज्ञान में है मामला : अंचलाधिकारी

इस मामले में गावां के बीडीओ सह सीओ महेंद्र रविदास ने कहा कि मामला संज्ञान में है. सुदूर क्षेत्रों में रह रहे आदिवासी छात्र-छात्राओं के प्रमाण-पत्रों के लिए पहल की जा रही है. पट्टा के आधार पर स्थानीय बनाने का कार्य किया जा रहा है, लेकिन पट्टा में जाति का उल्लेख नहीं होने के कारण जाति प्रमाणपत्र बनाने में परेशानी हो रही है. इसके लिए कुछ स्थानों में ग्रामसभा करायी गयी है, जिसकी स्क्रूटनी की जा रही है. इसमें संबंधित स्थान में पांच रैयतों का भी हस्ताक्षर लेना है, जिसकी प्रक्रिया चल रही है. सारी प्रक्रिया पूर्ण होने पर प्रमाणपत्र निर्गत किया जायेगा.

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