गोड्डा, निरभ किशोर : आदिवासी दिवस आज पूरा देश व राज्य बड़े गर्व के साथ मना रहा है. आदिवासियों के साथ आज हर तबके के लोगों के लिए फक्र व सम्मान का दिन है. इस दिवस को मनाने के साथ ही हम वैसी हस्तियों को भी याद कर लेते हैं, जिनकी बदौलत दिवस सार्थक साबित हो रहा है. ऐसे ही एक हस्ती थे गोड्डा जिला अंतर्गत पथरगामा प्रखंड के महुआसोल गांव के स्वर्गीय परमेश्वर हेंब्रम.
आकर्षित करने वाली छवि ने संताल समेत बिहार में भी बनायी पहचान
सम्मिलित बिहार में 1977 के चुनाव जीतने के बाद स्वर्गीय हेंब्रम कर्पूरी ठाकुर के कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री के पद को लेकर शपथ लिया था. सीधे-साधे, कर्मठ, निष्ठावान व ईमानदार छवि के थे स्वर्गीय हेंब्रम. अपने विचार व आदर्श की तरह ही उनका स्वरूप भी था. लंबे कद-काठी के साथ आकर्षित करने वाली छवि ने संताल परगना ही नहीं बिहार प्रांत में जिले की पहचान बनाने का काम किया.
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मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के भी थे चहेते
सरल व्यक्तित्व के स्व परमेश्वर हेंब्रम जब मंत्री बनकर पहली बार अपने गांव महुआसोल मंत्रालय की गाड़ी से पहुंचे थे, तो देखने वालों की भीड़ लग गयी थी. आसपास के दर्जनों गांवों के लोग उन्हें गांधी ग्राम नामक स्थान से स्वागत करते हुए फूल-माला से लाद कर महुआसोल तक लाये थे. उनके करीबी गांव के ही नकुल हेंब्रम उस दिन को याद कर फूले नहीं समाते हैं. गांव आने के बाद महज कुछ ही दिनों में गांव तक बिजली सुव्यवस्थित करने का काम किया था. उनके काम करने की शैली की वजह से मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भी दिल से मानते थे. चुनाव हारने के बाद हेंब्रम ने हंबर कंपनी की साइकिल खरीदी थी. साइकिल से ही अपना सामाजिक कार्य आरंभ रखा. बताते हैं कि आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाज से कई मुख्यमंत्री बने, मगर ऐसे व्यक्तित्व की ओर किसी का भी ध्यान नहीं गया. ऐसे राजनीतिज्ञ के गांव की सड़क आज भी पक्कीकरण की प्रतीक्षा में है.
1977 में बरहेट विधानसभा से जनता पार्टी के टिकट पर बने थे विधायक
करीबी बताते है कि स्व परमेश्वर हेंब्रम जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में बरहेट विधान सभा से चुनाव लड़े थे. बरहेट के कुछ बंगाली परिवार ने आसपास चंदा इकट्ठा कर 6000 हजार की राशि चुनाव लड़ने के लिये दिया था. इसके साथ अपने पांच कटहल के पेड़ को बेचकर प्राप्त राशि से चुनाव लड़े. हेंब्रम लोगों द्वारा भाड़े की राशि से उपलब्ध करायी गयी जीप के साथ बांस व कद्दू से बनाये गये चौंगा को भोंपू बनाकर प्रचार किया व अच्छे वोट से जीते थे..उनके मित्र ललमटिया के बैंजामिन मुर्मू बाेरियो से चुनाव जीते थे.
शालिनी टुडू से मंत्री बनने के बाद हुई थी शादी
स्वर्गीय हेंब्रम चुनाव जीतने के बाद करीब ढाई से तीन माह के लिये बिहार के उर्जा मंत्री के पद पर रहे. मंत्री बनने के बाद उनकी शादी महुआसोल से करीब दस किमी दूर पथरकानी गांव में शालिनी टुडू से शादी हुई थी. शालिनी टुडू बताती है कि वो पढ़ी-लिखी नहीं है. उनके पति भी अंडर मैट्रिक ही थे, मगर उनकी हर विषय में पकड थी. ईमानदारी की वजह से लोगों की भीड़ काम के लिये लगी रहती थी. महुआसोल ही नहीं बरहेट के आसपास गांव के लोगों की समस्या के साथ गांव तक बिजली की व्यवस्था करने का काम किया. कम दिनों में ही क्षेत्र के लोगों की समस्या का समाधान किया.
17 साल के पेंशन से वंचित रहीं शालिनी, सुमरित मंडल व बैंजामिन मुर्मू ने की थी पहल
परमेश्वर हेंब्रम की मृत्यु वर्ष 1986 में पीलिया रोग से ग्रसित होकर हुई थी. उनका इलाज दुमका के मोलपहडी नामक अस्पताल में चल रहा था. उस वक्त उनकी पत्नी शालिनी टुडू साथ थी. पति की मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया. कई वर्ष बाद स्थानीय समाजसेवी सह पूर्व जिप सदस्य पश्चिम सियाराम भगत जो गोड्डा के पूर्व विधायक सुमरित मंडल के प्रतिनिधि थे, उनके द्वारा शालिनी टुडू से कुछ कागजात लेकर विधायक से पटना विधानसभा में पहल कराया था.
विधायक अमित मंडल के दादा थे सुमरित मंडल
बता दें कि सुमरित मंडल गोड्डा विधायक अमित मंडल के दादा थे. सुमरित मंडल की पहल के बाद उनके दोस्त रहे बोरियो विधायक बेंजामिन मुर्मू द्वारा बिहार विधानसभा में पेंशन को लेकर पहल किया गया था. सियराम भगत ने बताया कि एक मंत्री के परिवार को करीब 17 साल तक परेशानी व मुफलिसी की जद में रहना पडा. 2003 में पत्नी के नाम पेंशन की स्वीकृति हुई. इस दौरान की राशि पर सरकार को ध्यान देनी चाहिए. वहीं, स्वर्गीय परेमश्वर हेंब्रम की पत्नी शालिनी टूडू ने बताया कि 17 साल तक पेंशन नहीं मिला. सरकार की ओर से उनके पेंशन की राशि एकमुश्त ऐरियर के रूप में भी भुगतान नहीं किया गया है. इसके साथ ही आने-जाने का कूपन व अन्य सुविधा से भी वंचित है.