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स्वतंत्रता संग्राम में 22 बार जेल गये थे रामदेनी सिंह, अंग्रेज जज ने कुर्सी छोड़कर छू लिया था पैर

Azadi Ka Amrit Mahotsav: बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 22 बार रामदेनी सिंह की गिरफ्तारी हुई और जेल भेजे गये, लेकिन ब्रिटिश सरकार की कोई दमनकारी कार्रवाई उन्हें रोक नहीं सकी. रामदेनी सिंह डॉ राजेंद्र प्रसाद समेत देश के बड़े नेताओं के प्रिय रहे.

Azadi Ka Amrit Mahotsav: 1857 की क्रांति के बाद विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी. देश में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन तेज होने लगा था. इसी दौरान 1880 के दशक में गोपालगंज के बरौली प्रखंड के देवापुर की धरती से भारत मां के एक वीर सपूत रामदेनी सिंह ने किशोरावस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में बगावत की लहर पैदा कर अंग्रेज अफसरों की नींद उड़ा दी. उनके तेवर से अंग्रेजों में खलबली मच गयी. उन्हें रोकने के लिए अंग्रेज सिपाहियों की कई टीम लगा दी गयी, लेकिन उनके आंदोलन की रफ्तार नहीं थमी.

22 बार किए गए थे गिरफ्तार 

बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 22 बार उनकी गिरफ्तारी हुई और जेल भेजे गये, लेकिन ब्रिटिश सरकार की कोई दमनकारी कार्रवाई उन्हें रोक नहीं सकी. आंदोलन के दौरान अंग्रेजों को चुनौती देते हुए उन्होंने अपनी टीम के साथ गोपालगंज-छपरा रेलवे लाइन को उखाड़ दिया. इस दौरान भी अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. आंदोलन की उनकी सफल रणनीति से अंग्रेजों को काफी भय हो गया था. गोपालगंज, सीवान व छपरा में अंग्रेज उनके आंदोलन को कुचलने का प्रयास करने लगे, लेकिन उन्होंने ऐसा होने नहीं दिया. जब भी सामना हुआ, अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया. कुछ ही दिनों में वे देश के शीर्ष नेताओं के साथ आंदोलन में शामिल होने लगे.

रामदेनी सिंह डॉ राजेंद्र प्रसाद के काफी करीबी थे

रामदेनी सिंह डॉ राजेंद्र प्रसाद के काफी करीबी थे. 1917 में हुए चंपारण आंदोलन को सफल बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभायी थी. काफी संख्या में लोगों को लेकर वे चंपारण पहुंचे थे. महात्मा गांधी व डॉ राजेंद्र प्रसाद चंपारण जाने के क्रम में अक्सर देवापुर में रामदेनी सिंह के यहां रात बिताते थे. यहीं आंदोलन की रणनीति तय होती थी. असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन में भी इनकी सक्रिय भूमिका रही. देश आजाद होने तक रामदेनी सिंह का अंग्रेज विरोधी आंदोलन जारी रहा. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद घोषित हो गया, तब उन्होंने राहत की सांस ली.

रामदेनी सिंह देश के बड़े नेताओं के प्रिय रहे

लोग बताते हैं कि आजादी के बाद भी रामदेनी सिंह डॉ राजेंद्र प्रसाद समेत देश के बड़े नेताओं के प्रिय रहे. राष्ट्रपति बनने के बाद राजेंद्र बाबू ने कई बार उन्हें दिल्ली आमंत्रित किया. देश आजाद होने के बाद सरकार ने उन्हें पेंशन समेत कई सुविधाएं देने का फैसला लिया. रामदेनी सिंह ने कोई भी सुविधा लेने से इन्कार कर दिया. उन्होंने कहा कि मैंने भारत मां की सेवा की है. यह मेरा कर्तव्य है. इसके बदले में मैं कुछ भी नहीं ले सकता हूं. पूरे देश में उनके इस समर्पण की सराहना की गयी. आजादी के महानायक रामदेनी सिंह आजीवन संघर्ष की आग में जलकर देश व समाज को रोशनी देते रहे. 1954 में 90 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.

अंग्रेज जज ने कुर्सी छोड़कर छू लिया पैर

उनकी कहानी नयी पीढ़ी के लिए एक मिसाल है. जानकार बताते हैं कि वे जमींदार घराने से थे. उस समय देश में काफी गरीबी थी. अपनी जमीन बेचकर रामदेनी सिंह ने सौ से अधिक गरीबों की बेटियों की शादी करायी थी. एक गरीब की बेटी की शादी के लिए तत्कालीन सारण जिले में अपनी जमीन की रजिस्ट्री कराने गये थे. रजिस्ट्री हो जाने के जमीन खरीदने वाले से कहा कि रुपया मुझे नहीं चाहिए. एक लड़की की शादी है. उसके पिता यहां आये हुए हैं. यह रुपया उन्हीं को दे दिया जाये. उस लड़की के लिए ही मैंने अपनी जमीन बेची है. एक अंग्रेज जज यह बात सुन रहा था. उसने अपनी कुर्सी से उठकर रामदेनी सिंह का पैर पकड़ लिया और कहा कि पूरे जीवन में आप जैसा व्यक्ति नहीं देखा.

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