गोरखपुर. उत्तर प्रदेश सरकार के बजट में गौ संरक्षण आधारित प्राकृतिक खेती के लिए धन की व्यवस्था होने पर कृषि विभाग की उम्मीद जाग गई है. बुंदेलखंड और गंगा नदी के अलावा अब अन्य नदियों के किनारे भी इस तरह की खेती की जा सकती है. गोरखपुर जिले से गुजरने वाली राप्ती और रोहिन नदी के किनारे गौ आधारित प्राकृतिक खेती की जाएगी. कृषि विभाग ने खेती के लिए उपयुक्त 5000 हेक्टेयर जमीन चिन्हित कर ली है. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. खरीफ के मौसम में किसान खेती की शुरुआत करेंगे.
कृषि विभाग द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को प्रदेश सरकार ने मंजूरी देते हुए केंद्र सरकार के पास भेजा है. अभी तक यह खेती बुंदेलखंड और गंगा किनारे की जा रही है. कृषि विभाग द्वारा गोरखपुर के खोराबार, ब्रह्मपुर, सरदारनगर , सहजनवा, कैंपियरगंज के किसानों को गौ संरक्षण आधारित प्राकृतिक खेती देखने और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए गंगा किनारे के जिलों में भेजा जाएगा. पहले चरण में 25 फरवरी को 50 किसानों को बसों से भेजा जा रहा है. उप कृषि निदेशक अरविंद सिंह ने बताया कि गौ संरक्षण आधारित प्राकृतिक खेती के लिए गोरखपुर में राप्ती और रोहिन नदी के किनारे 5000 हेक्टेयर जमीन खेती योग्य चिन्हित कर प्रस्ताव भेजा गया था.
प्रदेश सरकार ने इसको लेकर मंजूरी दे दी है. बस केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने का इंतजार है. कृषि विभाग की मानें तो बुंदेलखंड और गंगा नदी के अलावा अन्य नदियों के किनारे भी इस तरह से खेती की जा सकती है. इसी को आधार मानते हुए विभाग के अधिकारियों ने सर्वे करते हुए राप्ती और रोहिन नदी के किनारे एक दर्जन से अधिक गांवों में खेती योग्य जमीन चिन्हित कर प्रदेश सरकार के पास प्रस्ताव भेजा था. इन खेतों में किसान को आधारित जीवामृता और बीजामृत का प्रयोग कर बेहतर उत्पाद कर सकेंगे. कृषि विभाग के अधिकारियों की माने तो केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद खरीफ की फसल से खेती की शुरुआत कर दी जाएगी. अगर किसी कारणवस केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने में देरी होती है तो चिन्हित खेतों में विभाग किसानों से जड़हन व मसूर की खेती कराएगा.
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जीवामृत खाद तैयार करने के लिए किसानों को एक दिन के गाय का गोबर, गोमूत्र, बरगद और पीपल के नीचे की आधा किलो मिर्ची एक किलो गुड़ और एक किलो बेसन का घोल तैयार करना होगा. उसे 200 लीटर पानी में मिलाकर ड्रम में रख देना है. गर्मी के मौसम में तीन से चार दिन में जैविक खाद बन कर तैयार हो जाती है. जिसका छिड़काव हर एक महीने पर किसान अपने खेतों में कर सकते हैं. बीजामृत बनाने के लिए इन सामान को इकट्ठा करके उन्हें बिना पानी में मिलाए सुखाना होता है किसान इसे बीज में मिलाकर खेतों में बुवाई करते हैं.
रिपोर्ट – कुमार प्रदीप,गोरखपुर